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Tuesday, October 14, 2025
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क्या UP सरकार सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगी शिक्षकों के लिए TET की अनिवार्यता को? जानें पीछे की वजह

यूपी में टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) को लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। इसी कड़ी में बीजेपी नेता और विधान परिषद सदस्य (MLC) देवेंद्र प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की है।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया ऐतिहासिक फैसले में कक्षा 1 से 8 तक पढ़ाने वाले सभी शिक्षकों के लिए टीचर एलिजिबिलिटी टेस्ट (TET) पास करना अनिवार्य कर दिया है। इस निर्णय से उत्तर प्रदेश में लाखों शिक्षकों के सामने संकट खड़ा हो गया है। खासतौर पर प्राइमरी और जूनियर स्कूलों में कार्यरत वे शिक्षक प्रभावित होंगे, जिनमें से अनुमानित 2 लाख शिक्षक अब तक TET परीक्षा पास नहीं कर पाए हैं। इसी मुद्दे को लेकर बीजेपी नेता और एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया है।

बीजेपी एमएलसी देवेंद्र प्रताप सिंह ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को एक पत्र भी सौंपा है। इस पत्र में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करने की मांग की है। उन्होंने लिखा है कि सुप्रीम कोर्ट ने सिविल अपील संख्या 1685/2025 (अंजुमन इशात-ए-तालीम ट्रस्ट बनाम महाराष्ट्र राज्य व अन्य) में जो निर्णय पारित किया है, उसके तहत परिषदीय शिक्षकों के लिए टीईटी (TET) पास करना अनिवार्य कर दिया गया है।

देवेंद्र प्रताप सिंह ने यह भी स्पष्ट किया कि शिक्षक चयन के विभिन्न समयों में अलग-अलग शैक्षणिक योग्यताएं और मानदंड निर्धारित किए गए थे—जैसे इंटरमीडिएट के साथ बीटीसी, स्नातक के साथ बीटीसी, और 2011 के बाद स्नातक के साथ बीटीसी/बीएड के साथ-साथ टीईटी और सुपरटेट की भी अनिवार्यता रही है।

अपने पत्र में देवेंद्र प्रताप सिंह ने आगे लिखा है कि अब इंटरमीडिएट, बीपीएड/सीपीएड और बीएड (प्राथमिक स्तर) जैसी योग्यताएं टीईटी परीक्षा के लिए मान्य नहीं रह गई हैं। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से उत्तर प्रदेश के लगभग 1.5 लाख शिक्षकों और उनके परिवारों के भविष्य पर संकट मंडरा रहा है। इससे शिक्षक समुदाय में भारी निराशा और असहमति फैल रही है।

उन्होंने जोर देकर कहा कि शिक्षकों को उनकी नियुक्ति के समय निर्धारित अर्हता, योग्यता और सेवा शर्तों के अनुसार ही देखा जाना चाहिए, यही न्यायोचित और उचित होगा।

इसलिए उन्होंने मुख्यमंत्री से अनुरोध किया कि इस संवेदनशील परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार पूरी तैयारी के साथ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दाखिल करे। साथ ही उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार अपने विधायी अधिकारों का प्रयोग करते हुए इस विषय में नया कानून बनाए या आवश्यक संशोधन करे। इससे न केवल शिक्षकों का सामाजिक जीवन सुरक्षित रहेगा, बल्कि सरकार की जनप्रियता में भी वृद्धि होगी।

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