
Bihar Election Result 2025: बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए ने शानदार जीत दर्ज की है। 243 सीटों में से भाजपा को 89, जदयू को 85, लोजपा को 19 और रालोद को 4 सीटें मिलीं। वहीं महागठबंधन को भारी नुकसान हुआ, जहां राजद सिर्फ 25, कांग्रेस 6, CPI(ML)L 2 और CPM व IIP को एक-एक सीट मिली। अब सवाल उठ रहा है कि क्या चुनाव जीतने के बाद भी किसी विधायक की सदस्यता चुनाव आयोग रद्द कर सकता है? इसका जवाब कानून और संविधान के प्रावधानों में स्पष्ट मिलता है।
चुनाव आयोग के अधिकार क्या हैं?
संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को चुनावों की निगरानी, संचालन और नियंत्रण का अधिकार प्राप्त है। यह अधिकार मतदान प्रक्रिया के दौरान ही नहीं, बल्कि नतीजे आने के बाद भी लागू रहते हैं। यदि प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी या कानूनी उल्लंघन पाया जाता है तो आयोग सीधे कार्रवाई कर सकता है या राज्यपाल को अनुशंसा भेज सकता है।
चुनाव खर्च के उल्लंघन पर कार्रवाई
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 10A के अनुसार, हर उम्मीदवार को अपने चुनाव खर्च का सटीक और समय पर ब्योरा देना अनिवार्य है। यदि कोई विधायक यह नियम तोड़ता है, तो चुनाव आयोग उसके शपथ लेने के बाद भी 3 साल तक के लिए उसे अयोग्य घोषित कर सकता है।
भ्रष्ट आचरण साबित होने पर विधायकी रद्द
यदि अदालत या चुनाव आयोग को रिश्वतखोरी, धमकी, गलत प्रचार, पेड न्यूज या सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग जैसे भ्रष्ट आचरणों के सबूत मिलते हैं, तो निर्वाचित विधायक की सदस्यता रद्द की जा सकती है। ऐसे मामलों की शुरुआत आमतौर पर चुनाव याचिका से होती है और आरोप सिद्ध होने पर परिणाम चाहे जो हों—विधायक अयोग्य हो जाता है।
गंभीर अपराध में दोषी ठहराए जाने पर स्वतः अयोग्यता
जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 के तहत, यदि कोई विधायक किसी अपराध में दोषी ठहराया जाता है और उसे कम से कम 2 साल की सजा मिलती है, तो वह बिना किसी अतिरिक्त आदेश के स्वतः अयोग्य हो जाता है। इसमें चुनाव आयोग की भूमिका नहीं होती—कानून अपने आप लागू हो जाता है।
अन्य संवैधानिक आधार
अनुच्छेद 191 के अनुसार, यदि कोई विधायक भारतीय नागरिकता खो देता है, मानसिक रूप से अस्वस्थ पाया जाता है, दिवालिया हो जाता है या लाभ का पद धारण करता है, तो चुनाव परिणाम आने के बाद भी उसकी विधायकी समाप्त हो सकती है।

