Indian Army Caste Census: भारतीय सेना में जाति आधारित रेजीमेंटों की एक बड़ी विरासत है. इसी बीच आइए जानते हैं कि क्या भारतीय सेना में कभी जाति आधारित जनगणना हुई है या नहीं.

Indian Army Caste Census: हाल ही में कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने एक रैली में कहा कि भारतीय सेना में उच्च जातियों का प्रतिनिधित्व लगभग 10% है, जबकि 90% आबादी (पिछड़े वर्ग, दलित और आदिवासी) का प्रतिनिधित्व कम है। इस बयान के बीच सवाल उठता है कि क्या भारतीय सेना ने कभी जाति आधारित जनगणना करवाई है या नहीं।
भारतीय सेना में जाति आधारित जनगणना
स्वतंत्र भारत में भारतीय सेना ने कभी भी जाति आधारित जनगणना नहीं कराई। आज सशस्त्र बलों में भर्ती योग्यता, शारीरिक मानकों और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व के आधार पर ही होती है।
हालांकि, अगर हम ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन की बात करें तो उस समय ‘मार्शल रेस’ की अवधारणा लागू की गई थी। इसके तहत मुख्य रूप से कुछ विशेष समूहों से ही सैनिकों की भर्ती की जाती थी, जिससे जाति और क्षेत्र आधारित रेजीमेंटों का निर्माण हुआ, जैसे कि सिख रेजीमेंट और राजपूत रेजीमेंट।
साल 1881 से 1931 तक भारत की राष्ट्रीय जनगणना में जाति का रिकॉर्ड शामिल था और ब्रिटिश भारतीय सेना ने अप्रत्यक्ष रूप से इस डेटा का इस्तेमाल अपने भर्ती पैटर्न को निर्देशित करने के लिए किया था।
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ब्रिटिश काल में जाति और भर्ती
ब्रिटिश काल में औपनिवेशिक सरकार ने कुछ समुदायों को ‘मार्शल रेस’ यानी लड़ाकू नस्ल के रूप में वर्गीकृत किया। इन समुदायों को स्वाभाविक रूप से बहादुर, मजबूत और वफादार माना जाता था। इसी वजह से सिख, गोरखा, राजपूत, जाट, पठान और डोगरा जैसे समूहों को सैन्य सेवा में प्राथमिकता दी जाती थी।
स्वतंत्रता के बाद भर्ती प्रणाली
1947 में भारत की आजादी के बाद नवगठित भारतीय सेना ने जाति आधारित भर्ती का परंपरागत तरीका बंद कर दिया। अब भर्ती प्रक्रिया ‘भर्ती योग्य पुरुष जनसंख्या सूचकांक’ के आधार पर संचालित होती है, जिससे सभी राज्यों और क्षेत्रों का उनके योग्य जनसंख्या अनुपात के अनुसार प्रतिनिधित्व सुनिश्चित होता है। आज सेना में ध्यान जाति या समुदाय पर नहीं, बल्कि योग्यता, प्रदर्शन और शारीरिक फिटनेस पर दिया जाता है।
जाति आधारित रेजीमेंटों की विरासत
आज कुछ जाति आधारित या फिर क्षेत्र आधारित रेजीमेंटों का अस्तित्व ब्रिटिश काल की विरासत का ही एक बड़ा परिणाम है. जैसे महार रेजीमेंट जिसकी स्थापना 1941 में डॉ बी आर अंबेडकर के प्रयासों के बाद की गई थी. इसका उद्देश्य महार समुदाय के सैनिकों को प्रतिनिधित्व देना था. शुरुआत में यह एक विशिष्ट समुदाय की रेजीमेंट थी लेकिन बाद में व्यापक सैन्य ढांचे में इसे शामिल कर लिया गया था. आज इसमें सामान पदों पर भर्ती की जाती है. इसी तरह मद्रास रेजीमेंट, असम रेजीमेंट और बिहार रेजीमेंट जैसी क्षेत्रीय रेजीमेंट अपने-अपने क्षेत्रों के अलग-अलग समुदायों से भर्ती करती है.

