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Tuesday, October 14, 2025
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शादी और मेहंदी का अटूट रिश्ता: हिंदू-मुस्लिम दोनों परंपराओं में क्यों मानी जाती है शुभ?

मेहंदी की पारंपरिकता हिंदू और मुस्लिम शादियों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो दुल्हन की सुंदरता, खुशियों और शुभता का प्रतीक है। यह एक सजावटी, प्यार और नए जीवन के शुभारंभ का प्राकृतिक और पावन तरीका है।

मेहंदी परंपरागत: भारतीय संस्कृति और खासकर हिंदू विवाह के या मुस्लिम विवाह के संदर्भ में, मेहंदी की अहमियत को नकारना असंभव है। मेहंदी सिर्फ एक सजावट नहीं है, बल्कि दुल्हन की रौनक और विवाह की शुभता का प्रतीक है। इसलिए दोनों धर्मों में मेहंदी का महत्व है, जिससे उचित रूप से कहा जा सकता है, “मेहंदी नहीं तो शादी नहीं।”

भारत में मेहंदी की परंपरा मुगल साम्राज्य के दौरान ज़मानत खाती है। 15वीं सदी में जब मुगल साम्राज्य भारत आया, तब से यह परंपरा धीरे-धीरे लोकप्रिय हो गई। इतिहासकारों के मुताबिक, 17वीं सदी में दुल्हनों के हाथ-पैर पर मेहंदी लगाना एक सामान्य बात बन गई थी। मज़ेदार बात यह है कि उस समय नाई की पत्नी ही महिलाओं को मेहंदी लगाती थी।

हालांकि, मेहंदी का प्रारंभ भारत में नहीं, बल्कि उत्तरी अफ्रीका और मध्य पूर्व से हुआ था। पिछले 5000 वर्षों से इसे सौंदर्य साज सजावट के रूप में प्रयोग किया जा रहा है।

हिंदू धर्म और मेहंदी
हिंदू परंपराओं में मेहंदी का महत्व सिर्फ़ विवाह तक सीमित नहीं है. करवा चौथ जैसे व्रतों में विवाहित महिलाएं मेहंदी लगाती हैं. कई धार्मिक चित्रों में देवी-देवताओं की हथेलियों पर भी मेहंदी के बिंदु और डिज़ाइन देखे जा सकते हैं.

फिर भी, सबसे खास और पवित्र अवसर विवाह ही माना जाता है. विवाह से पहले आयोजित मेहंदी की रस्म न केवल एक उत्सव है, बल्कि दुल्हन की सुंदरता और नए जीवन की समृद्धि का प्रतीक भी है.

हिंदू विवाह और मेहंदी की रस्म
शादी से एक दिन पहले होने वाली यह रस्म पूरे परिवार और सहेलियों के लिए उत्सव का अवसर होती है. दुल्हन के हाथों, पैरों और कलाइयों को खूबसूरत डिजाइनों से सजाया जाता है. कई बार दूल्हे के हाथों पर भी मेहंदी रचाई जाती है, खासकर राजस्थान और गुजरात जैसे इलाकों में.

यह रस्म संगीत, नाच-गाने और हंसी-मज़ाक के साथ मनाई जाती है. दुल्हन की हथेलियों पर गहरे लाल रंग की मेहंदी समृद्धि, प्रेम और सौभाग्य का प्रतीक मानी जाती है.

इस्लाम में मेंहदी की अहमियत 
इस्लाम में मेहदी को नेमत और सौंदर्य का एक बड़ा महत्व माना जाता है। पैगंबर हजरत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इसे सुन्नत और ताबर्रुक (भलाई का संकेत) कहा है। उन्होंने बताया कि औरत की पहचान उसके जेवरों और सजावट से होती है, और मेहदी इसमें सबसे शुद्ध तरीका है।

मेहदी न केवल सौंदर्य देती है, बल्कि खुशी और सुकून का संदेश भी है। महिलाएं अपने हाथ-पैरों पर मेहदी लगाकर खुशी और इबादत के मौके पर अल्लाह की नेमत का शुक्रिया अदा करती हैं। यह ईद, निकाह और अन्य खुशी के अवसरों में खुशी की पहचान मानी जाती है।

पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि “मेहदी से सजावट करो, यह तुम्हें शुद्ध और खुशहाल बनाती है।” इसलिए मुसलमान इसे सुन्नत और आत्मिक सुकून के साथ अपनाते हैं।

मुस्लिम निकाह और मेंहदी की रस्म 

मुस्लिम निकाह में मेंहदी की रस्म खुशी और बरकत की अलामत है. दुल्हन के हाथ-पैरों में मेंहदी लगाना पैगंबर मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की सुन्नत की याद दिलाता है. मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया कि औरत अपनी सजावट से हलाल तरीके से खुशी मनाए.

शादी से पहले मेंहदी की महफिल दुल्हन और उसके घरवालों के लिए नेमत और रौनक का सबब बनती है. यह रस्म न सिर्फ सुंदरता बढ़ाती है, बल्कि शादी को खुशियों और मोहब्बत से भर देती है.

मेहंदी की रस्म के बारे में कई रोचक मान्यताएँ हैं जो लोग मानते हैं-

गहरा रंग: दुल्हन की हाथों पर जितनी गहरी मेहंदी लगती है, उतना ही अधिक प्यार उसे ससुराल में मिलेगा।
नाम छुपाना: मेहंदी के डिज़ाइन में दूल्हे का नाम छुपाया जाता है। अगर दूल्हा अपना नाम ढूँढ़ ले तो उसे विवाह में सफल और चतुर माना जाता है।
अविवाहित लड़कियाँ: माना जाता है कि अगर कोई अविवाहित लड़की दुल्हन की मेहंदी का पत्ता ले ले, तो उसे जल्द ही अच्छा वर मिलता है।

पश्चिम में मेहंदी का प्रचलन बदल गया है।

आजकल मेहंदी केवल भारत में ही नहीं, बल्कि हॉलीवुड के चहेते चिह्नों के बीच भी लोकप्रिय हो गई है। डेमी मूर, ग्वेन स्टेफनी, मैडोना और ड्रू बैरीमोर जैसी मशहूर अभिनेत्रियाँ ने मेहंदी को एक फैशन बयान बना दिया है। वैनिटी फेयर और कॉस्मोपॉलिटन जैसी पत्रिकाएं इसे और भी लोकप्रिय बना चुकी हैं। अब यह पश्चिम में एक दर्दरहित और अस्थायी विकल्प के रूप में उपलब्ध है।

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