Jitiya 2025 Vrat Katha: आश्विन कृष्ण की अष्टमी तिथि पर 14 सितंबर को जितिया का व्रत रखा जाएगा. इसमें जीमूतवाहन की पूजा की जाती है. मान्यता है कि इनके कारण ही जीवित्पुत्रिका व्रत की शुरुआत हुई.

जीवितपुत्रिका 2025 व्रत कथा: जीवितपुत्रिका व्रत माताओं के लिए विशेष महत्व रखता है। हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर निर्जला व्रत रखकर माताएं जीवितपुत्रिका व्रत रखती हैं और संतान की लंबी उम्र की कामना करती हैं। इस साल जीवितपुत्रिका व्रत रविवार 14 सितंबर 2025 को रखा जाएगा.
जितिया व्रत का इतिहास
जितिया व्रत में माताएं जितिया माता और जीमूतवाहन की पूजा करती हैं. धार्मिक मान्यता है कि, द्वापर युग के अंत और कलियुग के आरंभ में इस व्रत की शुरुआत हुई थी. यह भी माना जाता है कि, जीवित्पुत्रिका व्रत की शुरुआत जीमूतवाहन देवता ने की थी. माताओं में जब इस बात को लेकर चिंता बढ़ने लगी कि कलियुग में उनके संतान का जीवन अगर संकट में रहेगा तो उसकी रक्षा कौन करेगा. इसी चिंता के समाधान के लिए स्त्रियां गौतम ऋषि के पास पहुंची. तब गौतम ऋषि ने उन्हें एक कथा सुनाई
जितिया व्रत कथा (जीवितपुत्रिका व्रत कथा)
कथा के अनुसार, एक बार जीमूतवाहन गंधमादन पर्वत पर घूम रहे थे, तब उन्हें किसी महिला की रोने की आवाज सुनाई दी। वह महिला अपने पुत्र (शंखचूड़ नाग) के वियोग में रो रही थी, जिसे गरुड़ उठा कर ले जाने वाला था। जीमूतवाहन ने उस महिला से कहा कि, आप चिंता ना करें, मैं आज स्वयं को गरुड़ के सामने प्रस्तुत कर उसका भोजन बनूंगा और आपके पुत्र की रक्षा करूंगा।
जब गरुड़ शंखचूड़ को लेने आया, तो जीमूतवाहन शंखचूड़ बनकर बैठ गया और गरुड़ उसे उठाकर ले गया। लेकिन कुछ दूर जाने के बाद, गरुड़ को यह एहसास हुआ कि ये शंखचूड़ नहीं, बल्कि कोई और है। गरुड़ ने पूछा, “तुम कौन हो और क्यों मेरा भोजन बनने के लिए चले आए?” तब जीमूतवाहन ने कहा, “मैंने शंखचूड़ की मां को पुत्र वियोग में रोते हुए देखा, उसे बचाने के लिए ही मैंने आपका भोजन बनने का निश्चय किया।” गरुड़ ने जीमूतवाहन की उपकारिता को देखकर उसे छोड़ दिया।
जीमूतवाहन के कारण ही शंखचूड़ की मां ने उसका पुत्र प्राप्त किया। कहा जाता है कि, जिस दिन यह घटना हुई, उस दिन आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि थी। इसी घटना के बाद से जितिया व्रत और जीमूतवाहन की पूजा का प्रथा भी शुरू हुआ। इसलिए हर साल माताएं इस दिन व्रत रखकर जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। कहा जाता है कि, जिस तरह से जीमूतवाहन ने शंखचूड़ के प्राण की रक्षा कर उसकी मां को पुत्र वियोग से बचाया, उसी तरह से वे सभी माताओं के संतान के जीवन की रक्षा करते हैं।