
Pakistan Imran Khan: इमरान खान जिस अदियाला जेल में बंद हैं, उसी रावलपिंडी शहर की एक पुरानी जेल में कभी पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री को फांसी दी गई थी। पिछले कुछ दिनों से इमरान खान की सेहत और उनके स्थानांतरण को लेकर फैली अफवाहों पर अब जेल प्रशासन ने स्थिति स्पष्ट कर दी है। अधिकारियों ने बताया कि इमरान खान को न तो कहीं शिफ्ट किया गया है और न ही उनकी सेहत को लेकर कोई आपातकालीन स्थिति है। PTI द्वारा लगाए गए सभी दावों को जेल प्रशासन ने खारिज कर दिया। फिलहाल इमरान खान रावलपिंडी की अदियाला जेल में ही कैद हैं।
किसे हुई थी फांसी
पाकिस्तान के इतिहास में सबसे विवादित राजनीतिक घटनाओं में से एक पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो की फांसी है। उन्हें रावलपिंडी की पुरानी जेल में मौत की सजा दी गई थी, जिसे बाद में ध्वस्त कर दिया गया। यह फांसी सिर्फ एक कानूनी फैसला नहीं, बल्कि पाकिस्तान की राजनीति और सेना के प्रभाव को दिशा देने वाला अहम मोड़ मानी जाती है।
जुल्फिकार अली भुट्टो कौन थे?
जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के सबसे प्रभावशाली नेताओं में शामिल थे। उन्होंने पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (PPP) की स्थापना की और 1971 के युद्ध के बाद देश को संभालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वे 1971–1973 तक राष्ट्रपति और 1973–1977 तक प्रधानमंत्री रहे। उनके कार्यकाल में पाकिस्तान के परमाणु कार्यक्रम की नींव रखी गई और कई सामाजिक-आर्थिक सुधार लागू किए गए।
फांसी तक पहुंचने वाली राजनीतिक पृष्ठभूमि
1977 के आम चुनावों में PPP ने बड़ी जीत का दावा किया, लेकिन विपक्ष ने परिणामों को धांधलीपूर्ण बताया। हालात बिगड़ते गए और 5 जुलाई 1977 को सेना प्रमुख जनरल जिया-उल-हक ने तख्तापलट कर भुट्टो सरकार को हटा दिया। इसके बाद भुट्टो को गिरफ्तार किया गया और उन पर 1974 में एक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगाया गया।
शुरू से विवादों में रहा मुकदमा
भुट्टो के खिलाफ चलाए गए मुकदमे को शुरू से ही राजनीतिक माना गया। गवाहों के बयान बदलते रहे और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसे “ज्यूडिशियल मर्डर” कहा गया। कई देशों ने सजा पर पुनर्विचार की अपील की, लेकिन हर चरण में फैसले उनके खिलाफ ही आते गए।
वह रात जिसने इतिहास बदल दिया
पुरानी रावलपिंडी जेल—जिसे बाद में ध्वस्त कर दिया गया—में 4 अप्रैल 1979 की तड़के भुट्टो को फांसी दी गई। परिवार से सीमित समय के लिए अंतिम मुलाकात कराई गई और उनकी लोकप्रियता के चलते फांसी की पूरी प्रक्रिया बेहद गोपनीय रखी गई। दफनाने तक की व्यवस्था सेना की निगरानी में तुरंत कर दी गई।
फैसले का प्रभाव
इस फांसी ने पाकिस्तान की राजनीति में सेना के बढ़ते दखल को उजागर कर दिया और आज भी इसे देश की न्यायिक व्यवस्था पर एक दाग माना जाता है।

