India Pollution:चीन ने बहुत लंबे समय तक प्रदूषण की समस्या से जूझा है। लेकिन एक दशक के भीतर ही उसने अपनी समस्या का समाधान करने में कामयाबता प्राप्त की है। हमें देखना चाहिए कि भारत प्रदूषण के मामले में चीन से क्या सीख सकता है।

India Pollution: भारत में प्रदूषण का संकट खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका है. उत्तर भारत में सर्दियां जहरीले धुएं, धूल भरी हवा और बढ़ती स्वास्थ्य परेशानियों के साथ जूझतीं हैं. वैसे तो भारत ने वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए कई कदम उठाएं हैं, लेकिन इसके बावजूद भी प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ रहा है. इससे पता चलता है कि इन प्रयासों को और भी मजबूती से लागू करने की जरूरत है. इसी बीच चीन जो कभी खतरनाक प्रदूषण से जूझ रहा था एक दशक के अंदर अपनी वायु गुणवत्ता में सुधार लाने में कामयाब रहा. आइए जानते हैं कि आखिर चीन ने ऐसा क्या अलग किया जिससे उसे मदद मिली और भारत ऐसी ही रणनीतियों को कैसे लागू कर सकता है.
भारत की प्रदूषण नियंत्रण को लेकर कोशिश
भारत ने प्रदूषण पर लगाम लगाने के लिए कई उपाय शुरू किए. लेकिन धीमी गति और जमीनी स्तर पर कमजोर प्रवर्तन की वजह से उनका प्रभाव सीमित ही रहा. राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम और स्वच्छ भारत मिशन जैसे सरकारी कार्यक्रमों का उद्देश्य प्रदूषण में सुधार लाना है. इसी के साथ इलेक्ट्रिक वाहनों को भी बढ़ावा दिया जा रहा है. लेकिन उसके बावजूद भी प्रदूषण लगातार बढ़ रहा है क्योंकि शहरी विकास, यातायात की मात्रा और पराली जलाना समाधान की तुलना में तेजी से बढ़ रहे हैं.
इसी के साथ भारत अब सौर ऊर्जा उत्पादन की तरफ तेजी से बढ़ रहा है. पवन और जल विद्युत परियोजना में भारी निवेश किया जा रहा है. इस बदलाव से कोयले पर निर्भरता कम होगी जिस वजह से देश के सबसे बड़े प्रदूषक को रोकने में मदद मिलेगी. इतना ही नहीं बल्कि सार्वजनिक स्तरों पर जागरूकता बढ़ रही है. नागरिक कचरा जलाने से बच रहे हैं, प्लास्टिक का इस्तेमाल कम कर रहे हैं और साथ ही स्थानीय वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए पेड़ भी लगा रहे हैं.
चीन से क्या सीख सकता है भारत
जहां भारत अभी भी टूटी-फूटी कार्रवाई से जूझ रहा है, वहीं चीन ने प्रदूषण को राष्ट्रीय आपातकाल मानकर तेज गति से काम किया है. चीन की इस सफलता में निगरानी ने एक बड़ी भूमिका निभाई. देश ने एक व्यापक रियल टाइम वायु निगरानी नेटवर्क बनाया जो शहर दर शहर और यहां तक की फैक्ट्री दर फैक्ट्री प्रदूषकों पर नजर रखता था. इससे उन्हें उत्सर्जन कहां से आया इसका एक सटीक डेटा मिला और उसी के मुताबिक कार्रवाई संभव हुई.
इसी के साथ चीन ने अपनी परिवहन प्रणाली में भी बदलाव किया. बीजिंग जैसे शहरों में मेट्रो नेटवर्क का विस्तार किया, चौड़े पैदल यात्री क्षेत्र बनाएं, निजी वाहन पर निर्भरता कम की और साथ ही सार्वजनिक परिवहन में निवेश किया. इसी के साथ प्रदूषणकारी उद्योगों के प्रति भी चीन ने सख्ती दिखाई. चीन ने उद्योगों को स्वच्छ ईंधन और रिन्यूएबल एनर्जी की तरफ मोड कर कोयल पर अपने निर्भरता को भी कम किया. गैस आधारित बॉयलरों ने अनगिनत कोयला इकाइयों की जगह ली, जिस वजह से सल्फर उत्सर्जन में काफी कमी आई. भारत में अभी भी कोयले पर निर्भरता काफी ज्यादा है. इसके अलावा 2017 तक शेन्जेन में 16000 से ज्यादा का पूरी तरह से विद्युतीकरण कर दिया गया था. शेन्जेन ऐसा करने वाला दुनिया का पहला शहर बन गया था.

