
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के हालिया बयान के बाद दुनिया में एक बार फिर परमाणु हथियारों को लेकर बहस छिड़ गई है। ट्रंप ने संकेत दिया कि अमेरिका करीब तीन दशक बाद दोबारा परमाणु परीक्षण शुरू कर सकता है। उन्होंने सीधे तौर पर पाकिस्तान पर आरोप लगाया कि वह गुप्त रूप से परमाणु परीक्षण कर रहा है। इस बयान के बाद अब कई देश परमाणु शक्ति संपन्न राष्ट्रों की स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं। लोग जानना चाहते हैं कि न्यूक्लियर पॉवर कंट्रीज इस पर कैसी प्रतिक्रिया देती हैं, क्योंकि दुनिया पहले ही हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए हमलों जैसी भयावह तबाही देख चुकी है।
दरअसल, पृथ्वी की बाहरी कक्षा में भी परमाणु परीक्षण किए जा चुके हैं। अमेरिका और रूस दशकों से परमाणु हथियारों की प्रतिस्पर्धा में शामिल रहे हैं। 1958 से 1962 के बीच दोनों देशों ने अंतरिक्ष की बाहरी परत में कई परीक्षण किए थे। इन खतरनाक गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए 1967 में ‘आउटर स्पेस ट्रिटी’ लागू की गई, जिसके तहत किसी भी देश को अंतरिक्ष में परमाणु हथियारों की तैनाती की अनुमति नहीं है। इसके बावजूद अमेरिका ने 2024 में दावा किया था कि रूस एंटी-सैटेलाइट न्यूक्लियर हथियार विकसित कर रहा है, हालांकि रूस ने इस आरोप से इनकार किया।
वर्तमान में दुनिया के केवल नौ देश ऐसे हैं जिनके पास परमाणु हथियार हैं — अमेरिका, रूस, चीन, भारत, ब्रिटेन, फ्रांस, पाकिस्तान, उत्तर कोरिया और इज़राइल। इनमें से अमेरिका, रूस, चीन और भारत स्पेस में युद्ध करने की क्षमता रखते हैं। ये सभी देश एंटी-सैटेलाइट मिसाइल का परीक्षण कर चुके हैं। भारत ने 2019 में ‘मिशन शक्ति’ के तहत लो-ऑर्बिट सैटेलाइट को मार गिराकर इस क्षमता का प्रदर्शन किया था।
अगर अंतरिक्ष में कभी परमाणु युद्ध छिड़ा तो इसकी तबाही पृथ्वी से कहीं ज्यादा भयानक होगी। एक बड़े विस्फोट से इलेक्ट्रोमैग्नेटिक पल्स पूरे ऊपरी वायुमंडल को ढक लेगा, जिससे सैकड़ों सैटेलाइट तुरंत निष्क्रिय हो जाएंगी। परिणामस्वरूप जीपीएस, मोबाइल नेटवर्क, इंटरनेट और बैंकिंग सिस्टम ठप पड़ सकते हैं। पूरी दुनिया तकनीकी रूप से अंधकार में डूब सकती है और रेडिएशन का खतरा लंबे समय तक बना रह सकता है।

