
India Paying British Debt: आजादी के 78 साल बाद भी भारत सरकार हर महीने एक ऐतिहासिक भुगतान करती है, जो अंग्रेजों के जमाने की निशानी है। यह कोई सामान्य खर्च नहीं, बल्कि अवध के नवाबों और ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए पुराने समझौते – वसीका – की वजह से जारी है। वसीका का मतलब फारसी में ‘लिखित समझौता’ होता है, और इसका उद्देश्य नवाबों के खानदान को उनके द्वारा दी गई धनराशि पर ब्याज के रूप में पेंशन देना था।
1817 में अवध के नवाब शुजाउद्दौला की पत्नी, बहू बेगम, ने ईस्ट इंडिया कंपनी को लगभग चार करोड़ रुपये का कर्ज दिया। उस समय यह राशि बेहद बड़ी मानी जाती थी। समझौते के अनुसार, इस कर्ज पर मिलने वाला ब्याज उनके परिवार और वंशजों को पीढ़ी-दर-पीढ़ी पेंशन के रूप में मिलता रहा।
1857 की क्रांति और ब्रिटिश राज के समय भी यह परंपरा कायम रही। आजादी के बाद 1947 में भारत सरकार ने इसे कानूनी दायित्व मानते हुए जारी रखा। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, आजादी के समय इस कोष में 30 लाख रुपये जमा थे, और अब इसका लगभग 26 लाख रुपये ब्याज के रूप में इस्तेमाल होता है। वर्तमान में करीब 1200 लोगों को वसीका प्राप्त हो रहा है।
राशि भले ही बहुत मामूली हो – कई बार केवल 10 रुपये या उससे भी कम – लेकिन इसका महत्व ऐतिहासिक और कानूनी रूप से बना हुआ है। नवाब गाजीउद्दीन हैदर और उनके बेटे नसीरुद्दीन हैदर ने भी ईस्ट इंडिया कंपनी को चार करोड़ रुपये का परपेचुअल लोन दिया था, जिसकी ब्याज राशि आज भी उनके वंशजों को मिलती है।
सरकार इसे बंद नहीं कर सकती क्योंकि यह ब्रिटिश शासन से हस्तांतरित वित्तीय दायित्व माना जाता है। जबकि कुछ लोग इसे सामंती दौर की बची-खुची निशानी मानते हैं, समर्थकों का कहना है कि यह परंपरा केवल पैसे का मामला नहीं, बल्कि इतिहास और सम्मान की जीवित याद है। यह याद दिलाती है कि उस समय भारत की धरती पर वसीका शब्द सत्ता और भरोसे का प्रतीक हुआ करता था।

