
Diwali 2025: भारत के एक राज्य में दिवाली का त्योहार क्यों है बेहद अलग? जानिए खास वजहें
दिवाली की जगमगाती रोशनी और खुशियों का त्योहार पूरे देश में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम तक हर घर सजावट, पूजा और पटाखों की गूंज से गूंज उठता है। इस साल सुप्रीम कोर्ट ने ग्रीन पटाखों की अनुमति दी है, जिससे दिल्ली-एनसीआर के लोग भी राहत महसूस कर रहे हैं। लेकिन भारत में एक ऐसा राज्य भी है जहाँ दिवाली का उत्सव बेहद सीमित या लगभग न के बराबर मनाया जाता है। वह राज्य है केरल।
केरल में दिवाली का अलग रंग
केरल अपने सांस्कृतिक और धार्मिक वैभव के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां के ज्यादातर हिंदू परिवार दिवाली को बड़े स्तर पर नहीं मनाते। इसका मुख्य कारण स्थानीय परंपराएं और मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि केरल के राजा महाबली की मृत्यु दिवाली के दिन हुई थी, इसलिए यहां के लोग इस दिन उल्लास से ज्यादा श्रद्धा और शांति का महत्व देते हैं। वे दीपक जलाते हैं और पूजा करते हैं, लेकिन पटाखों और शोर-शराबे से दूर रहते हैं।
ओणम है असली धूमधाम
कुछ लोगों का तर्क है कि केरल में दिवाली के समय बारिश का मौसम होता है, जिससे पटाखे जलाना मुश्किल होता है। हालांकि यह कारण पूरी तरह से पर्याप्त नहीं है क्योंकि यहां ओणम जैसे पर्व बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाए जाते हैं, जो राजा महाबली की कथा से जुड़ा है। इसलिए धार्मिक आस्था और परंपरा को इसके पीछे मुख्य वजह माना जाता है।
धीरे-धीरे बदलता नजरिया
केरल में लगभग 55% आबादी हिंदू है, फिर भी दिवाली का जश्न सीमित होता है। लेकिन कोच्चि, तिरुवनंतपुरम जैसे शहरों में आधुनिक प्रभाव के चलते दिवाली की हल्की-फुल्की झलक देखने को मिलने लगी है। वहीं ग्रामीण इलाकों में यह त्योहार अब भी शांतिपूर्ण तरीके से मनाया जाता है।
तमिलनाडु में भी अलग ढंग से मनाई जाती है दिवाली
केरल की तरह तमिलनाडु के कुछ हिस्सों में भी दिवाली का पारंपरिक स्वरूप अलग है। यहां लोग नरक चतुर्दशी को ज्यादा महत्व देते हैं, जो भगवान श्रीकृष्ण द्वारा राक्षस नरकासुर के वध की कथा से जुड़ा है। इसलिए तमिलनाडु में इसे ‘छोटी दिवाली’ के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।

