तेलंगाना विधानसभा में बीआरएस के बागी विधायकों गुडेम महिपाल रेड्डी और बंडला कृष्ण मोहन रेड्डी पर दल-बदल विरोधी याचिकाओं की सुनवाई तेज हो गई है. वाक्यांश की सुधार याचिकाओं की सुनवाई की तेज हो गई है।

तेलंगाना की राजनीति में दल-बदल का ज्वालामुखी फिर से फटने को तैयार है। विधानसभा स्पीकर गद्दम प्रसाद कुमार की अध्यक्षता में आज तीसरे दिन एमएलए अयोग्यता याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है, जहां भारतीय राष्ट्र समिति (बीआरएस) के दो प्रमुख ‘बागी’ विधायक – गुडेम महिपाल रेड्डी और बंडला कृष्ण मोहन रेड्डी – स्पीकर के दरबार में हाजिर होकर अपनी सफाई देने को मजबूर हैं। यह सुनवाई न केवल विधायी नैतिकता की परीक्षा है, बल्कि सत्तारूढ़ कांग्रेस और विपक्षी बीआरएस के बीच छिड़ी खींचतान का नया अध्याय भी साबित हो रही है। क्या ये ‘टर्नकोट’ विधायक अपनी कुर्सी बचा पाएंगे, या फिर दसवीं अनुसूची की कठोर धाराओं के हवाले हो जाएंगे? राजनीतिक गलियारों में यही सवाल गूंज रहे हैं।
पिछले दो दिनों से चली आ रही इस कानूनी जंग ने तेलंगाना विधानसभा को एक अदालत में तब्दील कर दिया है। 29 सितंबर को शुरू हुई सुनवाई में पहले चरण के चार विधायकोंटी – प्रकाश गौड़, काले यादय्या, गुडेम महिपाल रेड्डी और बंडला कृष्ण मोहन रेड्डी – के खिलाफ बीआरएस ने याचिकाएं दायर की थीं। इन विधायकों पर आरोप है कि उन्होंने पार्टी छोड़कर सत्ताधारी कांग्रेस में शामिल हो गए, जो दल-बदल विरोधी कानून का स्पष्ट उल्लंघन है। 1 अक्टूबर को प्रकाश गौड़ और काले यादय्या की कड़ी पूछताछ के बाद सुनवाई को 4 अक्टूबर के लिए स्थगित कर दिया गया था, ताकि आज गुडेम महिपाल रेड्डी और बंडला कृष्ण मोहन रेड्डी (जोगुलंबा गडवाल) पर याचिकाकर्ताओं के वकीलों की नजरें टिक सकें.
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकील, जिनमें काल्वाकुंतला संजय, चिंता प्रभाकर और पल्ला राजेश्वरी रेड्डी के प्रतिनिधि शामिल हैं। उन्होंने इन विधायकों को कठघरे में खड़ा करने का पूरा इंतजाम किया है। कल्पना कीजिए, स्पीकर के कक्ष में गूंजती तीखी बहसें, जहां वकील दल-बदल के ‘साक्ष्यों’ को उकेरते हुए विधायकों की नीयत पर सवाल ठोंक रहे हैं। बीआरएस के नेताओं का कहना है कि ये ‘विश्वासघात’ न केवल पार्टी की कमर तोड़ने का प्रयास है, बल्कि तेलंगाना की जनता के जनादेश का भी अपमान है। एक वरिष्ठ बीआरएस नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “ये विधायक सत्ता की चमक में अंधे हो गए हैं। स्पीकर साहब को अब फैसला लेना होगा—या तो लोकतंत्र की रक्षा, या सियासी सौदेबाजी को बढ़ावा!”
कांग्रेस की तरफ से चुप्पी बनाए रखना एक राजनीतिक चालाकी है।
दूसरी ओर कांग्रेस की ओर से चुप्पी साधे रहना रणनीतिक चालाकी का संकेत देता है. इन विधायकों को पार्टी में शामिल कर सत्ता मजबूत करने का ‘मास्टर स्ट्रोक’ खेला गया था, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के दबाव में स्पीकर को जल्द फैसला लेना पड़ रहा है. याद रहे, बीआरएस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाकर स्पीकर को निर्देश दिलवाया था कि ये याचिकाएं जल्द निपटाई जाएं. कुल 10 विधायकों के खिलाफ याचिकाएं लंबित हैं, जिनमें दनम नागेंद्र, कडियाम श्रीहरि और अन्य नाम भी शामिल हैं. यदि अयोग्यता सिद्ध हुई, तो कांग्रेस को विधानसभा में नुकसान हो सकता है, जो उपचुनावों का रास्ता खोल देगा. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह मामला तेलंगाना की सत्ता-संघर्ष को और तीखा बना देगा, जहां बीआरएस ‘पीड़ित’ बनकर जनता का समर्थन हासिल करने की कोशिश कर रही है.
विधानसभा परिसर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम
सुनवाई के मद्देनजर विधानसभा परिसर में सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं। प्रवेश पर सख्त पाबंदियां, मीडिया की सीमित पहुंच और विधायकों की गतिविधियों पर नजर – सब कुछ एक हाई-वोल्टेज ड्रामा की याद दिला रहा है। तेलंगाना विधानसभा के इतिहास में यह पहली बार है जब स्पीकर स्वयं इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहे हैं, जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया की मजबूती का संकेत तो है, लेकिन सियासी पूर्वाग्रहों के आरोपों को भी हवा दे रहा है।