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Saturday, September 20, 2025
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दुनिया में किसने सबसे लंबे समय तक भूख हड़ताल की थी, जिसने इतने साल तक अन्न का एक भी दाना नहीं खाया।

मराठा आरक्षण के लिए मनोज जरांगे ने हाल ही में भूख हड़ताल की शक्ति को चर्चा में लाया। वह अनशन करने वाले पहले व्यक्ति नहीं हैं, इतिहास में इरोम शर्मिला की 16 साल लंबी भूख हड़ताल दुनिया की सबसे लंबी मानी जाती है।

मराठा आरक्षण के लिए आंदोलन कर रहे मनोज जरांगे ने अंततः अपना अनशन तोड़ दिया है। नींबू पानी पीकर उन्होंने हड़ताल खत्म करने का ऐलान किया और कहा कि सरकार ने उनकी मांगों को मान लिया है। जरांगे बीते कई दिनों से भूख हड़ताल पर बैठे थे। सोमवार से उन्होंने पानी पीना भी छोड़ दिया था लेकिन मंत्रियों के साथ हुई बैठक के बाद उन्होंने इसे खत्म कर दिया। जरांगे का यह आंदोलन भूख हड़ताल की ताकत और असर को फिर से चर्चा में ले आया। भारत ही नहीं, दुनिया में कई बड़े आंदोलन भूख हड़ताल के सहारे लड़े गए हैं। इसी कड़ी में एक नाम सबसे अलग दिखाई देता है इरोम चानू शर्मिला का है।

16 साल तक भूखी रही आयरन लेडी 

मणिपुर की इरोम शर्मिला ने 5 नवंबर 2000 को भूख हड़ताल शुरू की थी। उनकी मांग थी कि पूर्वोत्तर राज्यों में लागू आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट को हटाया जाए। यह भूख हड़ताल दुनिया की सबसे लंबी मानी जाती है, क्योंकि उन्होंने पूरे 16 साल तक अन्‍न का एक भी दान नहीं खाया था। उन्हें नाक के जरिए जबरन लिक्विड डाइट दी जाती रही, लेकिन उन्होंने संकल्प नहीं तोड़ा। 9 अगस्त 2016 को उन्होंने अपनी भूख हड़ताल खत्म कर राजनीति में कदम रखने का फैसला किया। इसी कारण उन्हें आज भी आयरन लेडी ऑफ मणिपुर कहा जाता है।

इतिहास की अन्य लंबी भूख हड़तालें 

  • भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्‍त- ‌ 116 दिन तक जेल में भूख हड़ताल 
  • जतिन दास- 63 दिन की भूख हड़ताल के बाद शहादत 
  • महात्मा गांधी- भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान 21 दिन का उपवास 
  • सोनम वांगचुक- हाल ही में लद्दाख में 21 दिन का जलवायु उपवास


मनोज जब आंदोलन से जुड़ता है, तो उसे सबक सिखने का अवसर मिलता है।

मनोज जरंगे का आंदोलन दिखता है कि आज भी भूख हड़ताल विरोध का सबसे बड़ा अहिंसक हथियार है. फर्क सिर्फ इतना है कि मनोज जरांगे ने 5 दिनों में ही अपनी जीत का ऐलान कर दिया, जबकि इरोम ने अपने मुद्दे के लिए 16 साल तक संघर्ष किया था. वहीं भूख हड़ताल भले ही अलग-अलग समय और मुद्दों पर हुई हो लेकिन यह साफ है कि किसी भी आंदोलन को मजबूत करने में यह तरीका अब भी सबसे असरदार साबित होता है.

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