लिक्विड बायोप्सी एक नया तकनीक है जो बिना सर्जरी के फेफड़ों में कैंसर की पहचान और निगरानी को आसान बनाती है. भारत में यह तकनीक इलाज के लिए एक क्रांतिकारी कदम साबित हो रही है.फेफड़ों का कैंसर भारत में सबसे जानलेवा बीमारियों में से एक माना जाता है, लेकिन अब मरीजों को बार-बार दर्दनाक सर्जरी और जटिल प्रक्रियाओं से राहत मिलने की उम्मीद दिख रही है। इसकी वजह एक नई लिक्विड बायो बायोप्सी तकनीक है, जिसमें केवल ब्लड सैंपल लेकर कैंसर की पहचान की जाती है। इस तकनीक के माध्यम से कैंसर के इलाज में क्रांति लाने की संभावना है, जो वर्ल्ड लंग कैंसर डे के मौके पर बहुत महत्वपूर्ण है।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में कुल कैंसर मामलों में 5.9 प्रतिशत फेफड़ों के कैंसर है। जबकि इससे होने वाली मौतों का आंकड़ा 8.1 प्रतिशत है। डॉक्टरों के अनुसार शुरुआती लक्षण जैसे लगातार खांसी, थकान या सीने में दबाव आमतौर पर नजर अंदाज कर दिए जाते हैं। वहीं जब तक आप अस्पताल पहुंचते हैं तब तक कैंसर शरीर में फैल चुका होता है जिससे इलाज मुश्किल हो जाता है।
कपड़ों के कैंसर की पहचान के लिए अब तक टिशू बायोप्सी का उपयोग किया जा रहा है। इस प्रक्रिया में ट्यूमर से ऊतक निकालकर जांच की जाती है। हालांकि, कई बार ट्यूमर फेफड़ों के ऐसे हिस्सों में होता है जहां पहुंचना मुश्किल होता है और इस प्रक्रिया से वृद्धावस्था, हार्ट या डायबिटीज के मरीजों के लिए जोखिम पूरी तरह से बन सकता है। इसके अतिरिक्त, एक बार बायोप्सी की गई हर बार पूरी ट्यूमर की जानकारी नहीं देती है।
लिक्विड बायोप्सी एक आधुनिक और सरल तकनीक है, जिसमें मरीज के रक्त की जाँच करके यह देखा जाता है कि क्या उसमें कैंसर से संबंधित जीनेटिक अंश या ट्यूमर का डीएनए मौजूद है या नहीं। यह मरीजों को न केवल राहत देता है, बल्कि डॉक्टर को भी कैंसर के जीनेटिक प्रोफाइल को समझने में सहायता प्रदान करता है। इस तकनीक की विशेषता यह है कि यह वह जीन म्यूटेशन्स का पता लगा सकती है जो भारतीय मरीजों में सामान्य हैं। इससे डॉक्टर लक्षित चिकित्सा प्रणाली की शुरुआत कर सकते हैं, जो पारंपरिक कीमोथेरेपी से अधिक प्रभावशाली साबित हो सकती है।