Thursday, September 19, 2024
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Bangladesh Crisis: बांग्लादेश में अराजकता और हिंदुओं पर हमलों को लेकर अमेरिका ने क्यों साध रखी है चुप्पी? सामने आई असली वजह

America On Bangladesh Crisis: शेख हसीना के पीएम पद से हटने के बाद देशभर में हिंदुओं के घरों, मंदिरों और दुकानों पर हमले हुए, जिसके चलते हजारों हिंदू समुदाय के सदस्यों ने सड़कों पर प्रदर्शन किया.

US Silence On Bangladesh Crisis: दुनिया को अधिकारों और लोकतंत्र का पाठ पढ़ाने वाला अमेरिका बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों और हिंदुओं पर हो रहे हमलों को लेकर चुप है. उसकी ये चुप्पी बहुत गहरी है. इसका ताजा उदाहरण देखने को तब मिलता है जब पीएम मोदी और जो बाइडेन के बीच हुई बातचीत के विवरण में से बांग्लादेश में हो रहे अत्याचार का जिक्र हटा दिया गया. मोहम्मद यूनुस की कार्यवाहक सरकार में बांग्लादेश की स्थिति की आलोचना करने से अमेरिका बच क्यों रहा है?

इंडिया टुडे की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत और अमेरिका दो रणनीतिक सहयोगी हैं और विशेषज्ञों का मानना है कि बांग्लादेश के मामले में ये दोनों सहयोगी एकमत नहीं हैं. इन एक्सपर्ट्स ने सुझाव दिया है कि भारत को आगे बढ़ते हुए इस बात पर ध्यान रखना चाहिए. दरअसल, जब बांग्लादेश में भारत के हितों की बात आती है तो अमेरिका विपरीत खेमे में रहा है. इसने 1971 में पाकिस्तान से बांग्लादेश की मुक्ति को रोकने की कोशिश की और फिर पाकिस्तान समर्थक राजनीतिक दलों का साथ दिया.

शेख हसीना को रोकने के लिए अमेरिका ने सालों किया काम

उसने हमेशा बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) का समर्थन किया है, जिसके शासन के दौरान भारत विरोधी ताकतों को बांग्लादेश में सुरक्षित पनाह मिली थी. अमेरिका ने प्रधानमंत्री शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग के शासन को कमजोर करने के लिए सालों तक काम किया.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स

भू-रणनीतिज्ञ ब्रह्मा चेलानी कहते हैं, “अमेरिका ने बांग्लादेश के जन्म को रोकने की कोशिश की लेकिन आज भी वह बांग्लादेश के मामले में भारत के साथ एकमत नहीं है. उसने हाल ही में वहां हुए शासन परिवर्तन का स्वागत किया है और अल्पसंख्यकों पर हमले, मनमाने ढंग से गिरफ्तारियां, जबरन इस्तीफ़ा और राजनीतिक बंदियों पर शारीरिक हमले सहित चल रहे मानवाधिकार हनन पर चुप रहा है.”

26 अगस्त को अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने युद्धग्रस्त यूक्रेन की यात्रा से लौटे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फ़ोन किया. इस दौरान उन्होंने यूक्रेन और बांग्लादेश के संकट पर भी चर्चा की. भारतीय बयान में उल्लेख किया गया कि प्रधानमंत्री मोदी और बाइडेन ने “बांग्लादेश की स्थिति” पर अपनी साझा चिंता व्यक्त की, लेकिन व्हाइट हाउस का बयान इस मुद्दे पर चुप रहा और केवल यूक्रेन-रूस युद्ध पर ही केंद्रित रहा.

मोदी-बाइडेन वार्ता पर भारत के विदेश मंत्रालय के बयान के अनुसार, “उन्होंने (पीएम मोदी और बाइडेन) कानून और व्यवस्था की बहाली और बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों, विशेष रूप से हिंदुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने पर जोर दिया.”

बांग्लादेश पर अमेरिका की चुप्पी का कारण

बांग्लादेश में संकट और वहां हिंदुओं पर हो रहे हमलों पर अमेरिका की चुप्पी की क्या वजह हो सकती है? एक तो यह कि वह अधिकारों को लेकर भारत पर उंगली उठाने के हर मौके का फायदा उठाता है. बांग्लादेशी-अमेरिकी राजनीतिक विश्लेषक और डलास विश्वविद्यालय के संकाय सदस्य शफकत रब्बी कहते हैं, “पिछले दशक में अमेरिका ने शेख हसीना को व्यवस्थित रूप से कमजोर किया है.”

रब्बी ने इंडिया टुडे से कहा, “अमेरिकी आधिकारिक बयानों, अमेरिकी मानवाधिकार निगरानी संस्था (एचआरडब्ल्यू), एमनेस्टी इंटरनेशनल और अमेरिका से संबद्ध विभिन्न मीडिया और दुनिया भर के गैर सरकारी संगठनों की रिपोर्टों ने धीरे-धीरे शेख हसीना को महिला सशक्तिकरण के आदर्श से नीचे गिराकर दुनिया की दुर्लभ महिला तानाशाहों में से एक बना दिया है.”

वहीं, बांग्लादेश में अच्छा नेटवर्क रखने वाले रब्बी कहते हैं कि ढाका में अमेरिकी दूतावास नियमित रूप से नागरिक समाज, प्रवासी राय निर्माताओं, सोशल मीडिया प्रभावितों के साथ सत्र आयोजित करता है ताकि “लोकतांत्रिक कायाकल्प की उम्मीदों को जीवित रखा जा सके.”

रब्बी कहते हैं, “एक बार जब हसीना ने अपने सभी घरेलू राजनीतिक विरोधियों पर काबू पा लिया तो इस तरह के जुड़ाव के जरिए लोकतंत्र की इच्छा को जीवित रखना अमेरिका की दीर्घकालिक रणनीति थी, जिसका इस्तेमाल उसने बांग्लादेशी समाज और विदेशों में हसीना की स्थिति को व्यवस्थित रूप से कमजोर करने के लिए किया.” हसीना को कमजोर करके अमेरिका सही समय पर एक अनुकूल सरकार के लिए जमीन तैयार कर रहा है.

यह भी याद रखना चाहिए कि मुहम्मद यूनुस को ‘वन-इलेवन’ अराजनीतिकरण प्रक्रिया का हिस्सा माना गया था, जिसे बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन के लिए एक अमेरिकी योजना के रूप में देखा जाता है. शफकत रब्बी बताते हैं कि अमेरिकी नेटवर्क के कई लोग बांग्लादेश की कार्यवाहक सरकार तक पहुंच चुके हैं. ऐसे में हसीना प्रशासन को कमजोर करने के लिए काम करने और ऐसी सरकार को देखने के बाद जिसके लोग उसके हितों से जुड़े हुए हैं, अमेरिका बांग्लादेश में नई व्यवस्था की आलोचना करने से पहले दो बार सोचेगा.

अमेरिकी प्रशासन से पूछा गया सवाल

12 अगस्त को बाइडेन प्रशासन से पूछा गया कि वह बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ अत्याचारों को रोकने के लिए क्या कदम उठा रहा है. दरअसल, दो डेमोक्रेट सांसदों ने इस मुद्दे पर राष्ट्रपति बाइडेन को चिट्ठी लिखी थी. न तो अमेरिका की ओर से इसकी कड़ी निंदा की गई, न ही कार्रवाई का कोई वादा किया गया.

यह साफ है कि अवामी लीग सरकार के खिलाफ बोलने और काम करने के बाद, अमेरिका बांग्लादेश में संकट को आसानी से स्वीकार नहीं करेगा. चाहे वह अफगानिस्तान हो या इराक, अमेरिका ने 20वीं सदी में लोकतंत्र स्थापित करने की कोशिश की और उन देशों को बदहाल स्थिति में छोड़ दिया.

भारत को रहना होगा सतर्क

पड़ोसी देश होने की वजह से बांग्लादेश भारत के लिए रणनीतिक और सुरक्षा कारणों से बहुत महत्वपूर्ण है. वहां होने वाली किसी भी गड़बड़ी का असर भारत पर पड़ेगा, जबकि अमेरिका को ढाका में किसी भी तरह के संकट से कोई सरोकार नहीं है.

सुरक्षा विशेषज्ञ फरान जेफरी कहते हैं कि बांग्लादेश इतने सालों तक भारत के दायरे में रहा क्योंकि पाकिस्तान अकेले हालात को बदलने में सक्षम नहीं था. वे कहते हैं, “लेकिन जैसे ही अंकल सैम ने अचानक से तस्वीर में कदम रखा, सब कुछ बदल गया.”

अमेरिकी सहायक विदेश मंत्री डोनाल्ड लू ने मई के मध्य में ढाका का दौरा किया और राजनेताओं और नागरिक समाज के नेताओं से मुलाकात की। जून में ही बांग्लादेश में सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ अभूतपूर्व विरोध प्रदर्शन हुए थे. यह वही लू ही थे जिन पर इमरान खान ने उनकी सरकार को गिराने की कोशिश करने का आरोप लगाया था.

इस बारे में भी चर्चा हो रही है कि सीएनएन संवाददाता ने किस तरह बांग्लादेश में हाल ही में आई बाढ़ के पीछे भारत का हाथ होने की कहानी को हवा दी है. भारत सरकार ने पहले ही पुख्ता तथ्यों के साथ उन आरोपों को खारिज कर दिया है. सुरक्षा विशेषज्ञ ने चेतावनी दी है कि अगर अमेरिका भारत को “एक विश्वसनीय रणनीतिक सहयोगी के बजाय एक गुटनिरपेक्ष लेन-देन वाला साझेदार” मानता है तो भारत आंतरिक और बाह्य दोनों ही स्तरों पर कठिन स्थिति में होगा.

हालांकि, बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन में अमेरिका की भूमिका, क्षेत्र के अन्य देशों की तरह बहुत संदिग्ध है, लेकिन इस बात के पर्याप्त संकेत हैं कि उसने किस तरह काम किया. इस पृष्ठभूमि में, यह समझना मुश्किल नहीं है कि बांग्लादेश में हसीना के बाद की अराजकता और वहां हिंदुओं पर हमलों के बारे में अमेरिका चुप क्यों है.

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