Mangalsutra: एक धागे में सोने के पैंडेट के साथ काले मोतियों को पिरोया जाता है, जिसे मंगलसूत्र कहते हैं. यह मंगलसूत्र स्त्री के लिए सुहाग की निशानी है और यह उसके वैवाहिक जीवन के लिए खास महत्व रखता है.
Mangalsutra: मंगलसूत्र (Mangal sutra) का इतिहास काफी पुराना है. इसकी मान्याएं पौराणिक कथा-कहानियों में मिलती है. मंगलसूत्र का संबंध मां पार्वती और शिवजी (Shiv Parvati) से भी जुड़ा है. लेकिन हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने जब अपने भाषण में मंगलसूत्र का जिक्र तो यह चर्चा में आ गया.
मंगलसूत्र के बारे में हर विवाहित स्त्री को जानना चाहिए और इसके महत्व को समझना चाहिए. क्योंकि यह सुहाग का प्रतीक है. हिंदू धर्म में भी मंगलसूत्र का खास महत्व है. मंगलसूत्र केवल एक आभूषण मात्र नहीं बल्कि वैवाहिक जीवन का रक्षा कवच है.
मंगलसूत्र का अर्थ
मंगलसूत्र दो शब्दों से मिलकर बना है मंगल और सूत्र. इसमें मंगल का अर्थ ‘पवित्र’ से है और सूत्र का अर्थ ‘हार’ होता है यानी पवित्र हार. विवाहिताएं पति की दीर्घायु, जीवनरक्षा और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए विवाह के बाद मंगलसूत्र पहनती है. इसलिए हर विवाहित स्त्री को मंगलसूत्र से जुड़ी इन बातों के बारे में जरूर जानना चाहिए.
उत्तर से लेकर दक्षिण तक हर विवाहति हिंदू महिला के गले में मंगलसूत्र होता है, जोकि उसके सुहाग की निशानी है. लेकिन अहम सवाल यह है कि, जिस मंगलसूत्र को लेकर राजनीतिक माहौल गर्म है वह आखिर आया कहां से, इसे कब से पहना जा रहा है, इसका धार्मिक या पौराणिक महत्व क्या है और स्त्रियों को इसे क्यों और कैसे पहनना चाहिए. आइये जानते हैं इन सभी के बारे में-
मंगलसूत्र से जुड़ी 10 महत्वपूर्ण बातें
- शास्त्रों के अनुसार, हिंदू धर्म में मंगलसूत्र की शुरुआत शिव-पार्वती से हुई. जब शिवजी का विवाह पार्वती से हो रहा था, तब उन्हें सती की याद आई, उन्हें वह दृश्य याद आने लगे जब सती ने हवन की अग्नि में कूदकर अपनी जान दे दी. इसलिए भगवान शिव ने पार्वती की रक्षा के लिए पीले धागे में काले मोतियों का एक रक्षा सूत्र बांधा. इसका पीला भाग मां पार्वती और काले मोतियों को शिव का प्रतीक माना गया. इसके बाद से ही हिंदू धर्म में शादी के बाद मंगलसूत्र पहनने की परंपरा बन गई.
- मंगलसूत्र को वैवाहिक जीवन का रक्षा कवच भी माना जाता है. मंगलसूत्र का जिक्र आदि गुरु शंकराचार्य की पुस्तक ‘सौदर्य लहरी’ में भी मिलता है.
- मंगलसूत्र को लेकर अलग-अलग मान्यताएं प्रचलित हैं. एक मान्यता यह भी है कि, मंगलसूत्र में 9 मनके होते हैं, जोकि ऊर्जा का प्रतीक है और मां भगवती के नौ रूपों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इन 9 मनकों को पृथ्वी, जल, वायु और अग्नि का प्रतीक माना जाता है.
- वहीं इतिहासकारों की माने तो मंगलसूत्र पहनने की शुरुआत छठी शताब्दी से हुई. क्योंकि इसके साक्ष्य मोहन जोदाड़ों की खुदाई में भी पाए गए. कहा जाता है कि, मंगलसूत्र सबसे पहले दक्षिण भारत में पहने जाते थे और धीरे-धीरे पूरे भारत में इसे पहना जाने लगा. अब तो केवल भारत ही बल्कि दूसरे देशों में भी विवाह के बाद इसे पहनने का रिवाज है.
- हिंदू धर्म में विवाह के बाद हर स्त्री गले में मंगलसूत्र पहनती है. इसे पति की लंबी आयु और सुहाग की रक्षा से जोड़ा जाता है. साथ ही यह पति-पत्नी के रिश्ते को बुरी नजरों से भी बचाता है. लेकिन मंगलसूत्र का खोना या टूट जाना बहुत अपशकुन माना जाता है.
- यह भी माना जाता है कि स्त्री के मंगलसूत्र पहनने से कुंडली में मंगल ग्रह मजबूत होते हैं या मंगल दोष दूर होता है.
- मंगलसूत्र अधिकतर सोने का ही पहना जाता है. ज्योतिष के अनुसार सोने का संबंध बृहस्पति से होता है और गुरु सुखी व खुशहाल वैवाहिक जीवन के कारक ग्रह माने जाते हैं. वहीं सोना पहनने से सूर्य भी मजबूत होते हैं.
- मंगलसूत्र की काली मोतियों का संबंध शनि ग्रह से होता है. शनि जोकि स्थायित्व के प्रतीक हैं. ऐसे में सोने और काली मोतियों से बना मंगलसूत्र पहनने से सूर्य, गुरु और शनि का शुभ प्रभाव वैवाहिक जीवन पर पड़ता है.
- आजकल फैशन के तौर पर कई तरह के मंगलसूत्र बनने लगे हैं. लेकिन महिलाओं को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि, मंगलसूत्र में सोने का पैंडेट और काली मोतियां जरूर होनी चाहिए. साथ ही मंगलसूत्र को कभी छिपाकर नहीं पहनना चाहिए.
- सुहागिन महिलाएं इस बात का भी ध्यान रखें कि, हिंदू परंपरा में पति के जीवित रहते हुए मंगलसूत्र उतारने का कोई विधान नहीं है. आप सूतक, पातक, ग्रहण या माहवारी आदि के दौरान भी इसे गले में पहन सकते हैं. यह कभी अशुद्ध नहीं होता है.