Kuch Khattaa Ho Jaay Review: गुरू रंधावा की फिल्म कुछ खट्टा हो जाए सिनेमाघरों में रिलीज हो गई है. अगर आप इस फिल्म को देखने का मन बना रहे हैं तो पहले जान लीजिए इसका रिव्यू.
Kuch Khattaa Ho Jaay Review: बन जा तू मेरी रानी, तैनू महल दवा दांगा, गुरू रंधावा का ही गाना है जिसका मतलब है अगर तू मेरी गर्लफ्रेंड बन जाएगी तो तुझे महल दिला दूंगा…लेकिन अगर आपने अपनी गर्लफ्रेंड को इस फिल्म की टिकट दिल दी तो ब्रेकअप तय है. फिर मत कहिएगा कि वार्निंग नहीं दी…ये फिल्म इतनी खराब है कि अगर गुरू रंधावा ऑटो ट्यून पर गाते औऱ स्पीकर खराब हो जाते तो भी ज्यादा एंटरटेनमेंट होता. ये फिल्म इस साल की खराब फिल्मों की लिस्ट में नंबर 1 की मजबूत दावेदार बन गई. गुरू कमाल के सिंगर हैं….काफी क्यूट भी हैं ऐसा मेरे साथ फिल्म देख रही दो लड़कियां बार बार बोल रही थी कि बस इसी वजह से झेल रही हूं. लेकिन हर किसी में इतना दम नहीं होगा कि इस फिल्म को झेल पाए.
कहानी
वैसे तो कहानी बताने से फर्क नहीं पड़ेगा लेकिन फिर भी जान लीजिए कि कहानी किसी घिसी पिटी है. गुरू रंधावा यानि हीर को शादी नहीं करनी लेकिन उनके दादाजी अनुपम खेर को पोता या पोती चाहिए. सई को आईएएस बनना है लेकिन उसकी छोटी बहन को शादी करनी है तो बड़ी की शादी से पहले वो शादी कैसे कर ले. ऐसे में गुरू और सई एक डील करते हैं और शादी कर लेते हैं. फिर सई प्रेग्नेंट होने का नाटक करती है और फिर तो आप समझ गए होंगे. भांडा फूट जाता है, दादाजी को हार्ट अटैक आ जाता है और फिर वही सब ड्रामा जो हम चार लाख पांच सौ पच्चासी फिल्मों में देख चुके हैं. फिल्म की कहानी तीन लोगों ने मिलकर लिखी है और लगता है तीनों ने एक दूसरे पर काम डाल दिया वर्ना तीन लोग इतनी खराब फिल्म तो नहीं लिख सकते.
कैसी है फिल्म
बहुत बुरी…वैसे तो इतना काफी था लेकिन और सुन लीजिए …इस फिल्म में गाना है इशारे तेरे…मैं आपको इशारे से नहीं सीधे सीधे बता रहा हूं कि ये फिल्म देखने की गलती मत कीजिएगा. फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं है जो अच्छा लगे. जबरदस्त कॉमेडी करने की कोशिश की गई है जो काफी बेकार लगती है. फिल्म शुरू से ही काफी हल्की लगती है. गुरू जिस लेवल के सिंगर हैं उस लेवल की ये फिल्म बिल्कुल नहीं लगती. ऐसा लगता है जैसे आप कोई 40 साल पुरानी कहानी देख रहे हैं और कुछ सीन तो ऐसे हैं जो क्यों आते हैं आपकी समझ में नहीं आता. फिल्म के एक सीन में गुरू अपना और सई का शादी का एग्रीमेंट जला देते हैं. वहां लगता है कि काश फिल्म देखने के बाद इसकी रील जला दी गई होती और फिर से एक बेहतर फिल्म बनाने की कोशिश की गई होती तो दर्शकों को ये टॉर्चर ना झेलना पड़ता.
एक्टिंग
गुरू रंधावा की एक्टिंग में कोई दम नहीं दिखता. वो पंजाबी सिंगर है तो पंजाबी टच आथा है लेकिन डायलॉग डिलीवरी काफी खराब है. वो जिस क्यूटनेस की वजह से लड़कियों को पसंद हैं. इस फिल्म के बाद उनकी वो फैन फॉलोइंग भी कहीं कम ना हो जाए. सई मांजरेकर अच्छी लगती हैं लेकिन अकेली वो इस खराब फिल्म को ढो नहीं सकती. अनुपम खेर ने ये फिल्म क्यों की समझ से परे है. बाकी के कलाकारों से भी कोई खास काम नहीं लिया गया क्योंकि फिल्म का स्क्रीप्ले ही खराब था.
डायरेक्शन
अशोक जी ने फिल्म को डायरेक्ट किया है और शायद वही इस फिल्म के सबसे बड़े विलेन हैं. वो फिल्म में ऐसा कुछ नहीं डाल पाए जो फिल्म झेली जा सके. गुरू जैसे बड़े सिंगर को और बेहतर तरीके से लॉन्च किए जाने की जरूरत थी. फिल्म में आगे क्यों होगा ये कोई छोटा बच्चा भी बता देगा.
कुल मिलाकर ये फिल्म झेलने लायक नहीं है…बाकी अब क्या ही और कहा जाए.