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Wednesday, November 26, 2025
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सस्ता होगा होम-कार लोन? दिसंबर में फिर रेपो रेट में कटौती, RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा ने दिए संकेत

RBI Governor on Repo Rate: संजय मल्होत्रा ने कहा कि अंतिम निर्णय आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में लिया जाएगा. उनका यह बयान ठीक उस समय आया है जब 3 से 5 दिसंबर के बीच एमपीसी की बैठक होने जा रही है.

RBI Repo Rate Cut: आम जनता के लिए राहत की खबर हो सकती है, खासकर उनके लिए जो नया लोन लेने की योजना बना रहे हैं या जिनके घर, गाड़ी या पर्सनल लोन की ईएमआई चल रही है. आरबीआई इस साल के अंत तक रेपो रेट में एक और कटौती कर सकता है, जिससे ईएमआई में कमी आने की संभावना बढ़ जाएगी. आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने संकेत दिया है कि मौजूदा आर्थिक संकेतक रेपो रेट में कटौती की गुंजाइश दिखा रहे हैं.

MPC बैठक से पहले बड़ा संकेत

उन्होंने कहा कि इस पर अंतिम निर्णय आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक में लिया जाएगा. उनका यह बयान ठीक उस समय आया है जब 3 से 5 दिसंबर के बीच एमपीसी की बैठक होने जा रही है.

मल्होत्रा ने बताया कि अक्टूबर की बैठक में ही यह संकेत दिया गया था कि आगे दरों में कटौती संभव है, इसलिए आगामी बैठक में महत्वपूर्ण घोषणा हो सकती है. उल्लेखनीय है कि फरवरी से जून के बीच एमपीसी ने लगभग 100 बेसिस पॉइंट की कटौती की है, जबकि अगस्त और अक्टूबर में रेपो रेट को 5.5 प्रतिशत पर स्थिर रखा गया था.

रेट कटौती के अनुकूल माहौल

जानकारों का अनुमान है कि दिसंबर में 25 बेसिस पॉइंट तक की रेट कटौती हो सकती है. इस संभावित कटौती के पीछे प्रमुख वजह उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के अनुसार अक्टूबर में मुद्रास्फीति का गिरकर रिकॉर्ड 0.25 प्रतिशत पर आ जाना है, जो सितंबर में 1.44 प्रतिशत थी. रेपो रेट में बड़ी कटौती के सवाल पर गवर्नर ने कहा कि केंद्रीय बैंक का पहला लक्ष्य मूल्य स्थिरता है और दूसरा लक्ष्य विकास को समर्थन देना. इसलिए बैंक न तो आक्रामक तरीके से कटौती करेगा और न ही पूरी तरह रक्षात्मक रुख अपनाएगा.

जब संजय मल्होत्रा से लगातार गिरते रुपये के मूल्य पर सवाल पूछा गया, तो उन्होंने बताया कि ऐतिहासिक रूप से रुपये में हर साल लगभग तीन से साढ़े तीन प्रतिशत की गिरावट देखने को मिलती है. उन्होंने कहा कि आरबीआई का लक्ष्य रुपये के उतार–चढ़ाव को अधिक से अधिक स्मूथ और नियंत्रित रखना है, ताकि विनिमय दर में अचानक या तेज़ बदलाव से आर्थिक अस्थिरता न पैदा हो.

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