रूस ने खबरोव्स्क नाभिकीय पोती लॉन्च किया है: कई सुरक्षा विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि इन रूसी ‘अत्यधिक विनाशकारी’ हथियारों की उपस्थिति वैश्विक तनाव और परमाणु जोखिम को बढ़ा सकती हैं.

रूस ने हाल ही में एक के बाद एक बेहद खतरनाक हथियार दुनिया के सामने पेश किए हैं – हवा में परमाणु ऊर्जा से चलने वाली क्रूज मिसाइल बुरेवेस्तनिक, समुद्र के अंदर से हमलावर पोसाइडन अंडरवॉटर ड्रोन और इन्हें ले जाने के लिए बनी नई परमाणु पनडुब्बी खाबरोवस्क. रूस ने खाबरोवस्क की लॉन्चिंग बीते 2 नवंबर को ही की है. दरअसल, ये प्रणालियां रूस के दावे के अनुसार लंबी रेंज और भारी विनाश करने की क्षमता रखती हैं. अब सवाल यह है कि इन सबके साथ रूस का असली इरादा क्या है और उसका लंबा खेल किस तरफ है।
‘बुरेवेस्तनिक – ‘असीमित रेंज’ मिसाइल रूसी का दावा है कि बुरेवेस्तनिक (SSC-X-9 / स्काईफॉल) एक परमाणु रिएक्टर से चलने वाली क्रूज़ मिसाइल है, जिसे ईंधन की चिंता नहीं होती. रिपोर्टों के अनुसार यह छोटी होने के बावजूद बड़े परिमाण (लगभग 40 मेगाटन तक) के वारहेड को ले जा सकती है और समुद्र की सतह के पास उड़कर रडार से बचने की कोशिश करती है. रूस ने कहा है कि इसका परीक्षण 2024 में हुआ और इसे 2025 में सेना में शामिल किया जा रहा है; रूस का दावा है कि यह मिसाइल बहुत दूर तक पहुंच सकती है.
पोसाइडन – समुद्र के भीतर चलने वाली ‘डूम्सडे’ मशीन
पोसाइडन एक परमाणु-ऊर्जा संचालित अनमैनड अंडरवॉटर व्हीकल बताया जाता है. रूस के दावों के मुताबिक यह 100 मेगाटन तक का न्यूक्लियर वारहेड ले जा सकता है, बहुत गहराई तक डाइव कर सकता है और हजारों किलोमीटर तक चल सकता है. रूस ने कहा कि इसका सफल परीक्षण 5 नवंबर 2024 को हुआ और इसे जल्द सेवा में लाया जाएगा. पोसाइडन के जरिए बड़े तटों पर सुनामी जैसी तबाही पैदा करने की बात कही जाती है, इसलिए इसे ‘डूम्सडे वेपन’ भी कहा जाता है.
खाबरोवस्क पनडुब्बी – पोसाइडन का कैरियर
2 नवंबर 2025 को रूस ने खाबरोवस्क (प्रोजेक्ट 09851) नाम की नई परमाणु पनडुब्बी लॉन्च की. यह पनडुब्बी खासतौर पर पोसाइडन ड्रोन को ले जाने और खुले महासागर में छोड़ने के लिए बनी है. रूस के अनुसार इसमें 6–8 पोसाइडन रखे जा सकते हैं और इसे 2027 तक पूरी तरह तैनाती के लिए तैयार किया जाएगा. रूस का कहना है कि यह पनडुब्बी पोसाइडन को सुरक्षित और छिपा कर रखेगी, जिससे रणनीतिक पहुंच और बढ़ेगी.
रूस का असल प्लान क्या है?
विश्लेषकों के अनुसार, रूस इन हथियारों के जरिए कई मकसद पूरा करना चाहता है – नाटो और पश्चिम को डराना ताकि वे सीधे संघर्ष में न उतरें; पारंपरिक मुकाबले में अपनी कमजोरी छिपाने के लिए असंतुलित रणनीति क्षमताएं बढ़ाना; समुद्र और ओपन ओशन से दुश्मन के तटों पर तेज और अप्रत्याशित हमला करने की क्षमता हासिल करना; और अपने न्यूक्लियर ट्रायड (जमीन-हवा-समुद्र) को मजबूत कर के प्रतिशोध की गारंटी देना. इसके साथ ही यह रणनीतिक दबाव व कूटनीतिक बढ़त भी देने वाला कदम माना जा रहा है.
विशेषज्ञों की चेतावनी और अंतरराष्ट्रीय प्रभाव
कई सुरक्षा विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि इन ‘अत्यधिक विनाशकारी’ हथियारों की उपस्थिति वैश्विक तनाव और परमाणु जोखिम को बढ़ा सकती है. गलती, तकनीकी खराबी या गलतफहमी किसी बड़े हादसे का कारण बन सकती है. वहीं, रूस इन्हें रक्षात्मक कदम बताता है और कहता है कि उसका उद्देश्य कोई आक्रामकता नहीं बल्कि देश की सुरक्षा सुनिश्चित करना है.

