
पाकिस्तान में छात्र संघ की स्थिति: क्या भारत जैसा है माहौल?
भारत में छात्र राजनीति का एक लंबा और सशक्त इतिहास रहा है। समय-समय पर विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव होते रहते हैं, जो राजनीतिक जागरूकता और नेतृत्व विकास का एक महत्वपूर्ण माध्यम बन चुके हैं। हाल ही में दिल्ली विश्वविद्यालय छात्र संघ (DUSU) चुनावों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) ने चार में से तीन प्रमुख पदों पर जीत दर्ज की, जबकि नेशनल स्टूडेंट यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) को सिर्फ एक पद मिला।
जहाँ भारत में छात्र राजनीति लोकतांत्रिक प्रक्रिया का अहम हिस्सा मानी जाती है, वहीं सवाल उठता है कि क्या पाकिस्तान में भी ऐसी ही व्यवस्था है? क्या वहां छात्र संघ सक्रिय हैं और क्या वहां भी चुनाव होते हैं? चलिए जानते हैं पाकिस्तान में छात्र राजनीति और उसके मौजूदा हालात के बारे में।
पाकिस्तान में छात्र राजनीति की अहमियत
पाकिस्तान में छात्र संघों की भूमिका हमेशा से ही राजनीति में महत्वपूर्ण रही है। हालांकि, 1984 में जनरल ज़िया उल हक ने देशभर में छात्र संघों पर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने इसके पीछे कैंपस में बढ़ती हिंसा को कारण बताया। यह प्रतिबंध राजनीतिक अस्थिरता को रोकने के उद्देश्य से लगाया गया था, लेकिन इसके परिणामस्वरूप युवाओं का नेतृत्व विकास और लोकतांत्रिक भागीदारी लंबे समय तक दबकर रह गई।
छात्र राजनीति में आई नई हलचल
साल 2022 में सिंध प्रांत ने छात्र संघों पर लगे प्रतिबंध को हटाकर एक नई शुरुआत की। इस कदम की व्यापक सराहना हुई, क्योंकि लोगों का मानना था कि छात्र संघ विश्वविद्यालयों में उत्पीड़न, शोषण और लोकतंत्र की कमी जैसी समस्याओं के समाधान में मदद कर सकते हैं। हालांकि, पूरे पाकिस्तान में अब भी छात्र संघ सक्रिय रूप से काम नहीं कर पा रहे हैं और हर जगह चुनाव नहीं हो पाते।
छात्र राजनीति से निकले बड़े नेता
बावजूद प्रतिबंध के, पाकिस्तान की राजनीति में कई नामी चेहरों ने अपने करियर की शुरुआत छात्र नेता के तौर पर की। इनमें शेख रशीद अहमद का नाम प्रमुख है, जो रावलपिंडी से आठ बार संसद सदस्य चुने जा चुके हैं। वे गॉर्डन कॉलेज, रावलपिंडी में एक सक्रिय छात्र नेता थे और आगे चलकर लाहौर में कानून की पढ़ाई की।
इसी तरह, हुसैन हक्कानी ने भी राजनीति की शुरुआत छात्र आंदोलन से की थी। वे जमात-ए-इस्लामी के छात्र संगठन ‘जमीयत’ से जुड़े हुए थे और बाद में अमेरिका में पाकिस्तान के राजदूत भी बने।
एक और महत्वपूर्ण नाम जावेद हाशमी का है, जिन्होंने 20 साल की उम्र से ही छात्र राजनीति में सक्रिय भूमिका निभानी शुरू कर दी थी। उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी में कई छात्र चुनाव जीते और अनेक विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया।