GST रिकॉर्ड संग्रह: रिपोर्ट में इस बात का उल्लेख है कि कर दरों को कम करना राजस्व संग्रह को कम नहीं करता, बल्कि यह वृद्धि नीति का एक हिस्सा है। इससे खर्च में वृद्धि, बेहतर अनुपालन और राजस्व संग्रह में दीर्घकालिक वृद्धि संभव है।

GST संग्रह: जीएसटी सुधार के ऐलान के बीच भारत के लिए यह वो खबर है, जिसका बड़ी बेसब्री के साथ इंतजार था. इससे भारत के ऊपर 50 प्रतिशत हाई टैरिफ लगाने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को मिर्ची लगना तय है. उच्च घरेलू राजस्व के कारण अगस्त में सकल जीएसटी संग्रह 6.5 प्रतिशत बढ़कर 1.86 लाख करोड़ रुपये से अधिक हो गया. सोमवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों से यह जानकारी मिली. सकल वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह अगस्त 2024 में 1.75 लाख करोड़ रुपये था. पिछले महीने संग्रह 1.96 लाख करोड़ रुपये था. इस साल अगस्त में सकल घरेलू राजस्व 9.6 प्रतिशत बढ़कर 1.37 लाख करोड़ रुपये हो गया, जबकि आयात कर 1.2 प्रतिशत घटकर 49,354 करोड़ रुपये रहा. जीएसटी रिफंड सालाना आधार पर 20 प्रतिशत घटकर 19,359 करोड़ रुपये रह गया. शुद्ध जीएसटी राजस्व अगस्त 2025 में 1.67 लाख करोड़ रुपये रहा, जो सालाना आधार पर 10.7 प्रतिशत की वृद्धि है.
ये आंकड़े केंद्र और राज्यों की जीएसटी परिषद की बैठक से ठीक दो दिन पहले जारी किए गए. इस बैठक में दरों को युक्तिसंगत बनाने और कर स्लैब की संख्या कम करने पर विचार-विमर्श किया जाएगा.
जीएसटी रिफॉर्म के बड़े फायदे
माल और सेवा कर (जीएसटी) की दीर्घकालिक सफलता इस पर निर्भर करती है कि यह एकल देशव्यापी कर दर को कैसे अपनाती है और प्रस्तावित जीएसटी सुधार में पांच और 18 प्रतिशत की दो कर दरों को अपनाना एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है। एक रिपोर्ट के अनुसार, विचार समूह थिंक चेंज फोरम की सोमवार को जारी रिपोर्ट में यह आकलन किया गया है कि प्रस्तावित सुधारों में भले ही 40 प्रतिशत की दर को विलासिता और नुकसानदेह उत्पादों के लिए निर्धारित किया गया है, लेकिन ऐसा करने से दरों के विस्तार का रास्ता खुलेगा और कर प्रणाली को सरल बनाने का मकसद प्रभावित होगा। रिपोर्ट के मुताबिक, अधिकतम अप्रत्यक्ष कर दर को उपकर समेत 18 प्रतिशत पर ही सीमित रखा जाना चाहिए। ऐसा करने से उलट शुल्क ढांचे जैसी विसंगतियां दूर होंगी, गैर-कानूनी बाजारों पर अंकुश लगेगा, विवाद और अनुपालन का बोझ घटेगा और जीएसटी प्रणाली की साख बहाल होगी।775
केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की अध्यक्षता वाली जीएसटी परिषद की तीन-चार सितंबर को होने वाली बैठक में पांच और 18 प्रतिशत की दो-दर वाली कर प्रणाली की संभावनाओं पर विचार किया जाएगा। परिषद में सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के वित्त मंत्री एवं केंद्र सरकार के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। इस बैठक में मंत्रियों के समूहों (जीओएम) की तरफ से की गई अनुशंसाओं पर भी गौर किया जाएगा। ये मंत्री समूह कर दरों को युक्तिसंगत बनाने, क्षतिपूर्ति उपकरों और स्वास्थ्य एवं जीवन बीमा प्रीमियम पर छूट से संबंधित हैं।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कर दरों में कटौती करना राजस्व संग्रह में कमी नहीं, बल्कि वृद्धि रणनीति का हिस्सा है। इससे खपत में वृद्धि, बेहतर अनुपालन और राजस्व संग्रह में दीर्घकालिक बढ़ोतरी संभव है, जिससे भारत के विकसित अर्थव्यवस्था बनने के लक्ष्य को बल मिलेगा। विलासिता एवं अहितकर उत्पादों पर उपकरों और अधिभारों के संदर्भ में पारदर्शिता सुनिश्चित करने की सिफारिश करते हुए रिपोर्ट में उपकर नियमावली बनाने का प्रस्ताव दिया गया है, जो उपकर लगाने, समायोजित करने या समाप्त करने की प्रक्रिया को स्पष्ट करेगा.
GST 2.0 में पुरानी गलतियों से सीखें
रिपोर्ट में बताया गया है कि जीएसटी से अप्रत्यक्ष कर राजस्व के वैकल्पिक उपायों का उपयोग करके अधिकतम खुदरा मूल्य पर कर वसूलने या बीमा जैसे क्षेत्रों को इनपुट टैक्स क्रेडिट के बिना छूट देना, यह गरीबी और उपभोक्ताओं पर बोझ डालने जैसे अप्रत्यक्ष कर राजस्व के विकल्पिक उपाय जो तत्व कर प्रणाली को विकृत कर देते हैं।
थिंक चेंज फोरम के महासचिव रंगनाथ टी ने रिपोर्ट जारी करते हुए कहा, “जीएसटी सुधारों को केवल प्रतीकात्मक नहीं, बल्कि जनहितकारी रूप में क्रियान्वित किया जाना चाहिए। पारदर्शिता और अनुमान लगाने की दिशा में ठोस पहल जरूरी है।” रिपोर्ट के लेखक और महिंद्रा विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नीलांजन बनिक ने कहा, “जीएसटी 2.0 में पुरानी गलतियों को नहीं दोहराया जाना चाहिए। आज कर की दो दरें और कल को सिर्फ एक दर ही वास्तविक सुधार का रास्ता है। इससे बेहतर अनुपालन, कम विकृति और स्थायी राजस्व वृद्धि सुनिश्चित की जा सकेगी।”

