कोविड-19 के दौरान ऑनलाइन पढ़ाई की ओर हुए बदलाव ने बच्चों की लिखने, पढ़ने और सोचने की क्षमता को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है, जिससे उनकी शैक्षिक क्षमताएं प्रभावित हुई हैं।

कोरोना काल में जिस समय स्कूल बंद हो गए और बच्चों को घर से पढ़ाई करनी पड़ी, उस समय ऑनलाइन क्लासेस ही एकमात्र विकल्प बन गए थे। लेकिन अब जो परिणाम सामने आ रहे हैं, वे बहुत ही चिंताजनक हैं। एक रिसर्च के अनुसार, ऑनलाइन पढ़ाई ने बच्चों की बौद्धिक क्षमता को धीमा कर दिया है। उनके सोचने, लिखने और समझने की ताकत पहले से कम हो गई है।
जागरण की रिपोर्ट के अनुसार, गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने इस दिशा में गहन अध्ययन किया और पाया कि ऑनलाइन माध्यम से पढ़ाई करने वाले छात्रों में भाषा की पकड़, स्मरण शक्ति और विश्लेषण करने की क्षमता में गिरावट आई है। विश्वविद्यालय के शिक्षा विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ। भारती सिंह और उनके सहयोगी डॉ। आनंद सिंह ने इस शोध का नेतृत्व किया।
क्या शोध कहता है?
शोध के लिए आठवीं और बारहवीं कक्षा के छात्रों को चुना गया. अध्ययन में यह देखा गया कि इन बच्चों की लेखन शैली, पढ़ने की क्षमता, विषय को समझने और याद रखने की शक्ति पहले की तुलना में कमजोर हो गई है. जो बच्चे पहले आसानी से 300-400 शब्द लिख लेते थे, अब वे 100-150 शब्दों में ही थक जाते हैं.
केस स्टडी 1: आठवीं की छात्रा का अनुभव एक छात्रा ने बताया कि वह अब पहले की तरह पढ़ नहीं पाती. लंबे समय तक ध्यान केंद्रित करना मुश्किल हो गया है. लिखने में आलस आता है और शब्दों को याद रखने की शक्ति भी कमजोर हो गई है. उसने यह भी कहा कि जब से ऑफलाइन क्लास दोबारा शुरू हुई है, उसे विषयों को समझने में ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है.
केस स्टडी 2: बारहवीं का छात्र भी बोला – ध्यान भटकता है एक अन्य केस में बारहवीं कक्षा के छात्र ने बताया कि ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान उसका ध्यान मोबाइल और सोशल मीडिया की ओर ज्यादा जाता था. वह अब भी किताबों में ज्यादा समय नहीं दे पाता. लंबे उत्तर लिखना और गहराई से सोच पाना उसके लिए चुनौती बन गया है.
सोचने की क्षमता पर प्रभाव पड़ा।
शोधकर्ताओं ने बताया कि ऑनलाइन पढ़ाई के दौरान बच्चों को सिर्फ स्क्रीन के सामने बैठकर सुनने और देखने की आदत हो गई थी। उनका स्वयं से लिखने और विचार करने का अभ्यास कम हो गया था। इसी कारण से आजकल बच्चों में विश्लेषणात्मक सोच और रचनात्मकता में कमी नजर आ रही है। गौतमबुद्ध विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर डॉ. आनंद सिंह ने बताया कि बच्चों की मानसिक क्षमता को बेहतर बनाने के लिए हमें अब ऑफलाइन शिक्षा के साथ-साथ लिखने और पढ़ने का अभ्यास भी बढ़ाना होगा। उन्होंने बताया कि वे अब छात्रों को कक्षा में रोज 30 से 40 मिनट केवल हैंडराइटिंग और सोचने वाले कार्यों में लगाने का प्रयास कर रहे हैं।
छात्रों में आत्मविश्वास की भी कमी नजर आ रही है।
डॉ. भारती सिंह ने बताया कि उनके शोध में उज्जवल हुआ है कि ऑनलाइन पढ़ाई करते समय बच्चों का आत्मविश्वास कम हो जाता है। वे अब अपने विचार खुलकर नहीं बोल पाते और परीक्षा में कम अंक आने पर घबराते हैं। ऑनलाइन शिक्षा ने बच्चों को कम बोलने वाला और संकोची बना दिया है।