Saturday, August 2, 2025
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अमेरिका-रूस तनाव से कच्चे तेल की कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल तक जा सकती हैं : रिपोर्ट

मुंबई। अमेरिका-रूस तनाव से कच्चे तेल की वैश्विक आपूर्ति में व्यवधान पड़ने का खतरा पैदा हो गया है जिससे कारण ब्रेंट क्रूड की कीमतें 80 से 82 डॉलर प्रति बैरल के बीच पहुंच सकती हैं। यह जानकारी शनिवार को विश्लेषकों की ओर से दी गई। विश्लेषकों के अनुसार, ब्रेंट ऑयल के अक्टूबर फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट का शॉर्ट-टर्म टारगेट 72.07 डॉलर से बढ़कर 76 डॉलर हो गया है। 2025 के अंत तक, ब्रेंट क्रूड की कीमत 80-82 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती है। नीचे की ओर समर्थन 69 डॉलर पर है।
डब्ल्यूटीआई क्रूड ऑयल के सितंबर फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट, जो अभी 69.65 डॉलर पर है, का शॉर्ट-टर्म टारगेट 73 डॉलर है। 2025 के अंत तक, डब्ल्यूटीआई क्रूड की कीमत 76-79 डॉलर तक पहुंच सकती है। नीचे की ओर समर्थन 65 डॉलर पर है।
इस सप्ताह की शुरुआत में, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस को यूक्रेन में युद्ध समाप्त करने के लिए 10-12 दिन की समय सीमा दी थी। ऐसा न करने पर रूस के साथ व्यापार करने वाले देशों पर अतिरिक्त प्रतिबंध और सेकेंडरी टैरिफ लगाए जा सकते हैं, जिससे तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं।
ट्रंप ने पहले घोषणा की थी कि सेकेंडरी टैरिफ 500 प्रतिशत तक हो सकते हैं। रूस से कच्चे तेल के आयात पर निर्भर देशों को अब डिस्काउंटेड प्राइस और अमेरिका को निर्यात पर हाई टैरिफ के बीच संतुलन बनाना चाहिए।


वेंचुरा सिक्योरिटीज में कमोडिटीज और सीआरएम प्रमुख एनएस रामास्वामी ने कहा, “इससे अतिरिक्त उत्पादन क्षमता में कमी और आपूर्ति में कमी के कारण तेल बाजार में अचानक बदलाव आ सकता है, जिससे 2026 तक बाजार में कच्चे तेल का सरप्लस कम हो जाएगा।”
यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से रूस से भारत के कच्चे तेल के आयात में तेज वृद्धि हुई है। युद्ध से पहले, भारत की तेल खरीद में रूसी कच्चे तेल का हिस्सा केवल 0.2 प्रतिशत था, जो अब 35 से 40 प्रतिशत के बीच है, जिससे रूस भारत का शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ता बन गया है।
रामास्वामी ने कहा कि हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह तेल की कीमतों में कमी देखना चाहते हैं, लेकिन अमेरिका से आपूर्ति में किसी भी बड़ी वृद्धि को बाजार तक पहुंचने में समय लगेगा। प्रूवन तेल भंडार का दोहन करने में श्रम, पूंजी और इन्फ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता होती है।
उन्होंने आगे कहा, “इस आपूर्ति अंतर को पूरा करने के लिए सऊदी अरब और चुनिंदा ओपेक देशों से मिलने वाले समर्थन में भी कुछ समय लगेगा, जिसके परिणामस्वरूप निकट भविष्य में कीमतों में वृद्धि होगी। तेल संतुलन पर इसका प्रभाव महत्वपूर्ण होगा और अगर ओपेक+ आपूर्ति में कोई और कटौती नहीं भी करता है, तो भी तेल की कमी बनी रहेगी।”

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