
CBSE History: आज जिसे हम सीबीएसई (CBSE) के नाम से जानते हैं, वह आज़ादी से पहले एक अलग नाम और स्वरूप में मौजूद था। वर्तमान में देशभर के छात्र कक्षा 10वीं और 12वीं की बोर्ड परीक्षाएं सीबीएसई और राज्य बोर्डों के तहत देते हैं, लेकिन 1947 से पहले शिक्षा व्यवस्था काफी अलग थी। उस दौर में कोई एक राष्ट्रीय शिक्षा बोर्ड नहीं था और स्कूल स्तर की परीक्षाएं क्षेत्रीय बोर्डों तथा ब्रिटिश काल की यूनिवर्सिटीज के माध्यम से आयोजित की जाती थीं।
शुरुआती दौर में यूनिवर्सिटीज की भूमिका
औपनिवेशिक काल के शुरुआती वर्षों में स्कूल की अंतिम परीक्षाएं आयोजित करने की जिम्मेदारी प्रमुख विश्वविद्यालयों के पास थी। कलकत्ता, बॉम्बे और मद्रास यूनिवर्सिटी जैसे संस्थान मैट्रिकुलेशन और इंटरमीडिएट परीक्षाएं आयोजित करते थे। ये परीक्षाएं स्कूली शिक्षा के अंत में ली जाती थीं और उच्च शिक्षा में प्रवेश का आधार मानी जाती थीं।
भारत का सबसे पुराना स्कूल शिक्षा बोर्ड
1921 में उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की स्थापना के साथ स्कूल शिक्षा में एक बड़ा बदलाव आया। यूपी बोर्ड देश का पहला और सबसे पुराना स्कूल शिक्षा बोर्ड बना, जिसने हाई स्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षाओं की शुरुआत की। शुरुआती वर्षों में इसका दायरा वर्तमान उत्तर प्रदेश के साथ-साथ राजपूताना और मध्य भारत के कुछ हिस्सों तक फैला हुआ था।
आज़ादी से पहले CBSE का नाम क्या था
सीबीएसई आज़ादी से पहले भी अस्तित्व में था, लेकिन तब इसे बोर्ड ऑफ हाई स्कूल एंड इंटरमीडिएट एजुकेशन, राजपूताना के नाम से जाना जाता था। इसकी स्थापना 2 जुलाई 1929 को ब्रिटिश सरकार ने की थी। यह बोर्ड खास तौर पर उन छात्रों के लिए बनाया गया था, जिनके माता-पिता केंद्र सरकार की सेवा में थे और जिनका बार-बार स्थानांतरण होता रहता था।
कहां-कहां होती थीं परीक्षाएं
शुरुआत में यह बोर्ड राजपूताना (आधुनिक राजस्थान), अजमेर-मेरवाड़ा, मध्य भारत और ग्वालियर क्षेत्रों में परीक्षाएं आयोजित करता था। इसका उद्देश्य अलग-अलग क्षेत्रों में पढ़ने वाले, लेकिन एक समान पाठ्यक्रम का पालन करने वाले छात्रों के लिए शिक्षा और परीक्षा प्रणाली में एकरूपता लाना था।
आज़ादी के बाद CBSE का स्वरूप
आज़ादी के बाद शिक्षा प्रणाली में व्यापक सुधार किए गए। वर्ष 1952 में राजपूताना बोर्ड के संविधान में संशोधन कर इसका नाम बदलकर सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन कर दिया गया। इसके बाद 1962 में सीबीएसई का पुनर्गठन किया गया और इसे एक राष्ट्रीय स्तर के शिक्षा बोर्ड के रूप में विस्तार दिया गया।

