सोशल मीडिया ऐप्स पर अधिक समय बिताने से शरीर को लेकर असंतोष, ईटिंग डिसऑर्डर और आत्म-सम्मान में कमी जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं। यह स्थिति खासतौर पर टीनएज लड़कियों के लिए बेहद चिंता का विषय बनती जा रही है

आज के समय में सोशल मीडिया बच्चों की ज़िंदगी का एक अहम हिस्सा बन चुका है, लेकिन इसके इस्तेमाल से कई गंभीर नकारात्मक प्रभाव भी देखे जा रहे हैं। हाल ही में हुए अध्ययनों में पाया गया है कि कम उम्र के बच्चे जो इंस्टाग्राम और स्नैपचैट जैसे प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल करते हैं, उनमें समस्याग्रस्त डिजिटल व्यवहार विकसित होने की संभावना कहीं अधिक होती है
सोशल मीडिया पर बच्चों का समय सीमित करना या उन्हें इससे दूर रखना आसान नहीं है। एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के अनुसार, 11 से 15 साल की लगभग 33% लड़कियां खुद को सोशल मीडिया की लत से प्रभावित महसूस करती हैं, और आधे से ज्यादा किशोरों का मानना है कि सोशल मीडिया छोड़ना उनके लिए बेहद मुश्किल होगा। लेकिन सवाल यह है कि सोशल मीडिया इतना हानिकारक क्यों साबित हो सकता है? विशेषज्ञ और डॉक्टर इस प्लेटफॉर्म से जुड़ी संभावित मानसिक और भावनात्मक जोखिमों के बारे में हमें चेतावनी देते हैं
बॉडी इमेज से जुड़ी टेंशन
सोशल मीडिया ऐप्स पर अधिक समय बिताने से शारीरिक असंतोष, ईटिंग डिसऑर्डर और आत्म-सम्मान में कमी जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं। यह स्थिति विशेष रूप से किशोर लड़कियों के लिए चिंता का कारण बनती जा रही है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 13 से 17 साल की उम्र के 46% किशोरों ने स्वीकार किया कि सोशल मीडिया ने उन्हें अपनी शारीरिक बनावट को लेकर नकारात्मक महसूस कराया। बच्चों के विशेषज्ञ डॉ. विजय राठौर का कहना है कि यह समझना बेहद जरूरी है कि आजकल हाई-टेक स्मार्टफोन और तरह-तरह के फिल्टर वाले ऐप्स की मदद से “परफेक्ट” तस्वीरें लेना बेहद आसान हो गया है — लेकिन ये तस्वीरें अक्सर किसी की असली शक्ल या व्यक्तित्व को सही ढंग से नहीं दर्शातीं।
साइबरबुलिंग
साइबरबुलिंग का मतलब है किसी व्यक्ति को टेक्नोलॉजी, इंटरनेट या सोशल मीडिया के ज़रिए परेशान करना, धमकाना या शर्मिंदा करना। इसमें अपमानजनक भाषा, अनुचित तस्वीरें और वीडियो का इस्तेमाल आम बात है। एक सर्वे के अनुसार, 64% किशोरों का कहना है कि वे अक्सर या कभी-कभी हेट-बेस्ड कंटेंट के संपर्क में आते हैं। बच्चों के विशेषज्ञ डॉ. विजय राठौर बताते हैं कि साइबरबुलिंग की सबसे बड़ी चुनौती यह है कि यह कभी बंद नहीं होती — यह हर समय ऑनलाइन मौजूद रहती है, जिससे नकारात्मक बातचीत और प्रभावों से बचना बेहद मुश्किल हो जाता है
ऑनलाइन प्रेडेटर्स
दुर्भाग्यवश, सोशल मीडिया पर ऐसे लोग भी सक्रिय होते हैं जो बच्चों और किशोरों को निशाना बनाते हैं — चाहे वो यौन शोषण हो, पैसे के लिए उनका शारीरिक या मानसिक शोषण करना हो, या उन्हें गैरकानूनी ड्रग्स की ओर ले जाना हो। बच्चों और टीनएजर्स के लिए यह समझना अक्सर मुश्किल होता है कि उन्हें ऑनलाइन क्या शेयर करना चाहिए और क्या नहीं। विशेषज्ञों का मानना है कि माता-पिता को अपने बच्चों के साथ सोशल मीडिया से जुड़े संभावित खतरों के बारे में खुलकर और नियमित रूप से बातचीत करनी चाहिए, ताकि वे सतर्क रह सकें और सुरक्षित निर्णय ले सकें।
डेंजरस वायरल ट्रेंड्स
आपने शायद खतरनाक वायरल ट्रेंड्स के बारे में सुना होगा — और उन्हें अपनाने के खतरनाक नतीजों के बारे में भी, जैसे गिरफ्तारी, अस्पताल में भर्ती होना, या गंभीर मामलों में मौत तक हो जाना। विशेषज्ञ बताते हैं कि बच्चों और किशोरों के पास अभी वह संज्ञानात्मक (cognitive) और निर्णय लेने की (executive) क्षमता पूरी तरह विकसित नहीं होती है, जिससे वे यह समझ सकें कि कोई ट्रेंड कितना जोखिम भरा हो सकता है। इसी वजह से, वे कभी-कभी खुद को शारीरिक खतरे में डाल बैठते हैं, बिना उसके परिणामों को पूरी तरह समझे
डेली बिहेवियर में चेंजेस
समस्या केवल डिजिटल व्यवहार तक ही सीमित नहीं है — सोशल मीडिया का प्रभाव बच्चों के रोजमर्रा के व्यवहार में भी नजर आ सकता है। इसमें चिड़चिड़ापन बढ़ना, चिंता और अवसाद के लक्षणों में वृद्धि, नींद की समस्याएं, आत्म-सम्मान में कमी, और ध्यान तथा एकाग्रता में गिरावट जैसी समस्याएं शामिल हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, जब बच्चों से सोशल मीडिया से दूर रहने या अपना होमवर्क या कोई अन्य अप्रिय कार्य करने को कहा जाता है, तो वे अक्सर माता-पिता के प्रति झुंझलाहट या निराशा जैसी प्रतिक्रियाएं दिखा सकते हैं
नहीं लगाई रोक तो खराब होंगे हालात
डॉ. विजय का कहना है कि यदि बच्चों के सोशल मीडिया उपयोग पर समय रहते नियंत्रण नहीं किया गया, तो भविष्य में स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। वे बताते हैं कि आजकल बड़ी संख्या में किशोर और बच्चे नींद संबंधी समस्याएं, तनाव, चिंता और आक्रामक व्यवहार जैसी परेशानियों के साथ सामने आ रहे हैं — और इन मामलों के पीछे मुख्य रूप से स्मार्टफोन और सोशल मीडिया की अत्यधिक लत जिम्मेदार है
माता-पिता ध्यान रखें ये बातें
घर में स्मार्टफोन और इंटरनेट डिवाइसों के उपयोग को कम करना बेहद जरूरी है, और इस जिम्मेदारी का एक बड़ा हिस्सा माता-पिता पर ही आता है। छोटे बच्चों को व्यस्त रखने के लिए बार-बार फोन थमाने की आदत छोड़नी चाहिए। साथ ही, स्कूल जाने वाले बच्चों को बिना खास वजह फोन देने से बचना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि माता-पिता अपने बच्चों के डिजिटल कंटेंट पर लगातार नजर रखें। यह समझना जरूरी है कि फोन ही आपके बच्चों के लिए सबसे बड़ा नुकसान बन सकता है