एयर पॉल्यूशन मूड स्विंग का कारण बन सकता है. इसकी वजह से मेंटल हेल्थ बुरी तरह प्रभावित हो सकती है. स्ट्रेस-एंग्जाइटी, डिप्रेशन का खतरा कई गुना तक बढ़ सकता है.
Air Pollution : राजधानी दिल्ली-एनसीआर में वायु प्रदूषण का स्तर अब डराने लगा है. अब पूरा क्षेत्र प्रदूषण के सीवियर लेवल पर पहुंच गया है. जहरीली हवा सेहत पर बुरा असर डाल रही है. इसकी वजह से गई गंभीर बीमारियां बढ़ने का खतरा बढ़ रहा है. वायु प्रदूषण (Air Pollution) सबसे ज्यादा फेफड़े और सांस को प्रभावित करता है. लेकिन हाल में हुए एक अध्ययन में पाया या है कि यह डायबिटीज को भी बढ़ा सकता है. हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, इसका साइड इफेक्ट्स यहीं तक नहीं है, प्रदूषित हवा में ज्यादा समय तक रहने पर मेंटल हेल्थ भी प्रभावित हो रही है. इसकी वजह से मूड स्विंग हो रहा है और स्ट्रेस, डिप्रेशन, एंग्जायटी के साथ चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है.
मेंटल हेल्थ को प्रभावित कर रहा एयर पॉल्यूशन
अमेरिकन साइकेट्रिक एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, एयर पॉल्यूशन के साइड इफेक्ट्स को जानने के लिए हुई एक स्टडी में पाया गया कि यह मेंटल हेल्थ पर भी बुरा असर डाल सकती है. इसमें पाया गया है कि प्रदूषित हवा स्ट्रेस और एंग्जाइटी को भी ट्रिगर कर सकती है. इसकी वजह से डिमेंशिया और अल्जाइमर के साथ डिप्रेशन जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है.
प्रदूषण बढ़ा सकता है स्ट्रेस-एंग्जाइटी
अध्ययन में पाया गया है कि प्रदूषित हवा में रहने से कुछ समय के लिए स्ट्रेस और एंग्जाइटी की समस्या भी बढ़ सकती है. अगर पहले से ही इन समस्याओं की चपेट में हैं तो वायु प्रदूषण इन समस्याओं को और भी ज्यादा ट्रिगर कर सकती है.अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि लगातार प्रदूषक तत्वों और दूषित हवा के संपर्क में रहने से स्ट्रेस हार्मोन रिलीज बढ़ने लगता है, जिसका मानसिक स्वास्थ्य पर गलत असर हो सकता है.
मूड स्विंग और डिप्रेशन का खतरा
रिसर्च में एयर पॉल्यूशन को मूड स्विंग करने वाला बताया गया है. इसकी वजह से डिप्रेशन की समस्या भी कई गुना तक बढ़ सकती है. जिससे दिमाग का काम प्रभावित हो सकता है. जिससे मूड निगेटिव स्तर पर बदल सकता है. लंबे समय तक वायु प्रदूषण के संपर्क में रहने से मूड स्विंग की समस्या और डिप्रेशन का खतरा बढ़ सकता है. डिप्रेशन के मरीजों के लिए वायु प्रदूषण गंभीर समस्या वाला माना गया है. इतना ही नहीं प्रदूषण के सूक्ष्म कण यानी पीएम 2.5 के संपर्क में रहने से न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसऑर्डर का खतरा भी बढ़ सकता है.