Air India Flight 182: कनाडा सिख अलगाववादियों को सहारा देने के लिए भारत पर बेतुका आरोप लगा रहा है. इन सब के बीच भारत के दशकों पूराने जख्म ने एक नया मोड़ ले लिया है. आइए इतिहास के पन्ने पलटते हैं.
भारत और कनाडा के बीच तनाव देखने को मिल रहा है. इसके चलते 1985 में एयर इंडिया की एक उड़ान पर हुआ घातक बम विस्फोट फिर से चर्चा में आ गया है. पिछले हफ्ते कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने कहा था कि उनका देश विश्वसनीय आरोपों की जांच कर रहा है जो ब्रिटिश कोलंबिया में एक सिख अलगाववादी नेता की हत्या से भारत सरकार को जोड़ सकता है. भारत ने आरोपों को इनकार करते हुए उसे बेतुका बताया था. तब से भारत में 1985 के हमले को उठाया जाना शुरू हो गया है. उस हादसे को कनिष्क बमबारी भी कहा जाता है, क्योंकि बोइंग 747 का नाम सम्राट कनिष्क के नाम पर रखा गया था, जिसने उस समय दिल्ली-ओटावा संबंधों को भी तनावपूर्ण बना दिया था. आइए इतिहास का पन्ना पलटते हैं और उस कहानी को समझने की कोशिश करते हैं, जो आज के समय में सभी के जुबान पर है.
क्या हुआ था 1985 में?
23 जून 1985 को एयर इंडिया की फ्लाइट-182 ने उड़ान भरी. कनाडा के मॉन्ट्रियल शहर से लंदन होते हुए भारत जा रहे इस विमान में आयरिश तट के पास विस्फोट हो गया. विमान कभी भारत पहुंच ही नहीं पाई. इस हादसे में विमान में सवार सभी 329 लोगों की मौत हो गई. इसका कारण एक सूटकेस में रखा बम था, जिसे टिकट धारक के विमान में न चढ़ने के बावजूद उड़ान में रख दिया गया था. पीड़ितों में 268 कनाडाई नागरिक, जिनमें अधिकतर भारतीय मूल के थे, और बाकी के 24 भारतीय नागरिक उस फ्लाइट में यात्रा कर रहे थे. हैरानी की बात यह है कि तब कनाडा सरकार द्वारा समुद्र से केवल 131 शव बरामद किये गये थे. बता दें कि उस वक्त जब फ्लाइट हवा में थी, टोक्यो के नारीता हवाई अड्डे पर एक और विस्फोट हुआ, जिसमें दो जापानी सामान संभालने वालों की मौत हो गई. जांचकर्ताओं ने बाद में कहा कि यह बम फ्लाइट 182 पर हुए हमले से जुड़ा था और बैंकॉक जाने वाली एयर इंडिया की एक और फ्लाइट के लिए था, लेकिन यह समय से पहले ही फट गया.
इसने ली थी जिम्मेदारी
हादसे के बाद एक तरफ दुनिया भर की न्यूज एजेंसिया और देश इस हमले पर नजर बनाए हुए थे. वहीं अमेरिका के न्यूयॉर्क में मौजूद न्यूज एजेंसियों में इस हमले से अलग कॉल्स आ रहे थे. जब न्यूजपेपर्स ऑफिसेस के फोन की घंटियों को रिसीव किया गया तो पता चला कि वह कॉल हमले की जिम्मेदारी लेने के लिए किया गया था. कश्मीर लिबरेशन आर्मी, दशमेश रेजिमेंट और ऑल इंडिया सिख स्टूडेंट्स फेडरेशन ने हमले की जिम्मेदारी ली थी. भारत सरकार ने इसकी जांच के लिए एक टीम गठित की थी. जस्टिस बीएन कृपाल की अध्यक्षता में बनाई गई टीम ने अपने जांच में पाया कि ये आतंकी हमला ही था.
हमले के पीछे कौन था?
कनाडाई जांचकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि बम विस्फोटों की योजना सिख अलगाववादियों द्वारा बनाई गई थी, जो 1984 में पंजाब के अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर पर भारतीय सेना के घातक हमले का बदला लेना चाहते थे. हमले के कुछ महीने बाद, रॉयल कैनेडियन माउंटेड पुलिस (आरसीएमपी) ने बब्बर खालसा नामक चरमपंथी समूह के नेता तलविंदर सिंह परमार को गिरफ्तार कर लिया, जो अब कनाडा और भारत में बैन है. अगर कनाडा सरकार ने कोशिश किया होता तो हमले को रोका जा सकता था. यह एक सोची समझी साजिश थी. एक इलेक्ट्रीशियन जिसका नाम इंद्रजीत सिंह रेयात था. उसे विस्फोट करने तथा उसके लिए साजिश रचने के आरोप में विभिन्न हथियारों के साथ गिरफ्तार किया गया था. हमले के पीछे का मास्टरमाइंड परमार को इंडियन पुलिस ने 1992 में मार गिराया था.
2000 में पुलिस ने वैंकूवर के एक अमीर व्यापारी रिपुदमन सिंह मलिक और ब्रिटिश कोलंबिया के एक मिल मजदूर अजायब सिंह बागरी को सामूहिक हत्या और साजिश सहित कई आरोपों में गिरफ्तार किया, लेकिन 2005 में लगभग दो साल तक चले एक मुकदमे के बाद दोनों व्यक्तियों को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया. न्यायाधीश ने कहा था कि उन लोगों के खिलाफ गवाही देने वाले प्रमुख गवाहों के साथ तथ्यात्मक त्रुटियां और विश्वसनीयता के मुद्दे थे.
हुई थी 10 साल की जेल
रेयात दुनिया के सबसे भयानक विमानन आतंकवादी हमलों में से एक के संबंध में दोषी ठहराया जाने वाला एकमात्र व्यक्ति था. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 1991 में जापान बमबारी में शामिल होने के कारण उसे ब्रिटेन में 10 साल की जेल हुई थी. 2003 में उसने फ्लाइट 182 पर बमबारी के सिलसिले में कनाडा की एक अदालत में हत्या का दोष स्वीकार किया और उसे पांच साल की जेल की सजा सुनाई गई. बाद में उसे मलिक और बागरी के मुकदमे में झूठी गवाही का भी दोषी ठहराया गया और अतिरिक्त जेल की सजा दी गई.
दोषी को कनाडा की सरकार ने दिया सहारा
2010 में जांच रिपोर्ट जारी होने के बाद कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री स्टीफन हार्पर ने पीड़ितों के परिवारों से सार्वजनिक माफी की पेशकश की थी. 2016 में रेयात को नौ साल की दो-तिहाई सजा काटने के बाद कनाडा के जेल से रिहा कर दिया गया था. अगले साल उसे आधा घर छोड़ने और जहां वह चाहता था वहां रहने की अनुमति भी दी गई थी, इस फैसले की कुछ विशेषज्ञों ने आलोचना की थी.
अभी चर्चा क्यों?
एयर इंडिया बम विस्फोटों ने भारत में उस दर्दनाक याद को ताजा कर दिया है, जबकि पीड़ितों में से अधिकांश कनाडा के नागरिक थे, उनमें से अधिकांश भारतीय मूल के थे और उनके रिश्तेदार देश में थे. भारत में भारी भावना यह है कि पीड़ितों को न्याय नहीं मिला है. भारत सरकार ने मामले की निष्पक्ष जांच और दोषी पाए गए रेयात पर कार्रवाई करने की लगातार मांग की है.