
Hanuman Chalisa Against Bangladesh Violence: हनुमान चालीसा का सामूहिक पाठ धार्मिक स्वतंत्रता के दायरे में आता है, लेकिन सार्वजनिक स्थानों पर इसे बिना अनुमति करना कानूनन समस्या बन सकता है। हाल के दिनों में बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यकों पर हो रही हिंसा के विरोध में भारत के कई शहरों में लोगों ने सामूहिक रूप से हनुमान चालीसा का पाठ किया। इसे धार्मिक असहिष्णुता के खिलाफ एक प्रतीकात्मक विरोध और संवेदना प्रकट करने का माध्यम माना जा रहा है। हालांकि, देश के अलग-अलग हिस्सों में इस तरह के आयोजनों को लेकर कानून और सार्वजनिक व्यवस्था के नजरिए से भी चर्चा तेज हो गई है।
संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 25 प्रत्येक नागरिक को धर्म की स्वतंत्रता देता है, जिसमें पूजा-पाठ और धार्मिक अनुष्ठान शामिल हैं। व्यक्ति अपने निजी विश्वास के अनुसार पूजा कर सकता है, लेकिन यह अधिकार पूर्ण रूप से निरंकुश नहीं है। जब कोई धार्मिक गतिविधि सार्वजनिक स्थान पर और बड़े समूह के साथ की जाती है, तो इसके लिए स्थानीय प्रशासन से अनुमति लेना आवश्यक हो सकता है।
सार्वजनिक स्थान और कानूनी सीमाएं
कोलकाता हाईकोर्ट ने हाल ही में एक फैसले में स्पष्ट किया कि सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी धार्मिक आयोजन का अधिकार स्वतः नहीं मिल जाता। अदालत के अनुसार, यदि कोई समूह सड़क, पार्क या मैदान में सामूहिक हनुमान चालीसा पाठ करना चाहता है, तो उसे पहले प्रशासन से अनुमति लेनी होगी, ताकि यातायात, जनसुविधा और कानून-व्यवस्था प्रभावित न हो।
अनुमति क्यों जरूरी मानी जाती है
केंद्र और राज्य स्तर पर लागू कानूनों के तहत बड़ी सभाओं या आयोजनों के लिए पुलिस और प्रशासन की अनुमति आवश्यक होती है। इसका उद्देश्य सुरक्षा, भीड़ नियंत्रण और सार्वजनिक शांति बनाए रखना है। बिना अनुमति किसी भी बड़े धार्मिक आयोजन को प्रशासन कानून-व्यवस्था के उल्लंघन के रूप में देख सकता है।
क्या सजा का प्रावधान है?
यदि बिना अनुमति सार्वजनिक स्थान पर धार्मिक सभा, पाठ या प्रदर्शन किया जाता है, तो यह पुलिस अधिनियम और सार्वजनिक शांति से जुड़े कानूनों के तहत अपराध माना जा सकता है। ऐसी स्थिति में आयोजकों पर जुर्माना लगाया जा सकता है और विशेष परिस्थितियों में अस्थायी हिरासत जैसी कार्रवाई भी संभव है, खासकर तब जब प्रशासन ने पहले से स्पष्ट निर्देश जारी किए हों।
भावनाएं और कानून का संतुलन
सामूहिक प्रार्थना या पाठ अक्सर भावनात्मक समर्थन और विरोध जताने का माध्यम होते हैं, विशेषकर जब धार्मिक हिंसा जैसी संवेदनशील घटनाएं सामने आती हैं। संविधान इस भावना को मान्यता देता है, लेकिन जब ऐसी गतिविधियां सार्वजनिक शांति और कानून की सीमा लांघने लगती हैं, तो प्रशासन को हस्तक्षेप का अधिकार होता है।

