
Premanand Maharaj: श्रीराधा भक्त प्रेमानंद महाराज रोज़ाना भक्तों के सवालों के जवाब देकर उनकी दुविधाएं दूर करते हैं। उनके आश्रम में दूर-दूर से लोग अपनी समस्याओं का समाधान पाने पहुंचते हैं। हाल ही में एक भक्त ने उनसे सवाल किया कि यदि किसी मजबूरी या परिस्थिति के चलते किसी कर्मचारी को नौकरी से निकालना पड़े, तो क्या यह पाप माना जाता है। इस सवाल पर प्रेमानंद महाराज ने बेहद सरल और स्पष्ट शब्दों में अपनी बात रखी।
प्रेमानंद महाराज ने कहा कि यदि कोई कर्मचारी अपराधी नहीं है और केवल अपनी पसंद-नापसंद या निजी कारणों से उसे नौकरी से निकाला जाता है, तो भगवद् नियमों के अनुसार यह दोष की श्रेणी में आता है। उन्होंने कहा कि नौकरी करने वाले व्यक्ति से उसका पूरा परिवार जुड़ा होता है और कई कर्मचारी ईमानदारी से, बिना धर्मविरुद्ध कार्य किए अपना जीवन यापन करते हैं। ऐसे सच्चे और मेहनती कर्मचारी को नौकरी से निकालना पाप माना जाएगा और उसका फल व्यक्ति को भोगना पड़ता है।
हालांकि महाराज ने यह भी स्पष्ट किया कि हर स्थिति में नौकरी से निकालना पाप नहीं होता। यदि कोई कंपनी घाटे में चल रही हो और उसकी आर्थिक क्षमता सीमित हो, जिससे सभी कर्मचारियों का निर्वाह संभव न हो, तो ऐसी परिस्थिति में छंटनी पाप की श्रेणी में नहीं आती। इसी तरह, यदि किसी कर्मचारी की गलती माफ करने योग्य न हो या उसका आचरण गलत हो, तो उसे नौकरी से निकालना भी पाप नहीं माना जाता।

