Tuesday, July 1, 2025
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तीन साल की बच्ची ने लिया संथारा, दुनिया का सबसे कम उम्र का त्याग, माता-पिता दोनों IT प्रोफेशनल

इंदौर – इंदौर में एक तीन साल की बच्ची को संथारा दिलाने का मामला सामने आया है, जिसने पूरे जैन समाज और देशभर में चर्चा पैदा कर दी है। इस बच्ची को जनवरी 2025 में ब्रेन ट्यूमर हुआ और सर्जरी के बाद ठीक हो गई थी लेकिन मार्च में फिर से वह बीमार हो गई। उसका इलाज मुंबई में चल रहा था। अमर उजाला से बातचीत में बच्ची के माता-पिता पीयूष और वर्षा जैन ने बताया कि 21 मार्च को जैन मुनि श्री के सुझाव पर उसे संथारा दिलाया गया। धार्मिक प्रक्रिया के चंद मिनटों बाद ही बच्ची का निधन हो गया।
बच्ची के माता-पिता ने बताया कि वियाना उनकी इकलौती संतान थी और मात्र 3 वर्ष, 4 माह और 1 दिन की आयु में इस संसार से विदा हो गई। पिछले साल दिसंबर में उसके ब्रेन ट्यूमर का पता चला था। पहले इंदौर और फिर मुंबई में इलाज कराया गया, लेकिन कोई विशेष सुधार नहीं हुआ। डेढ़ माह पूर्व वे बच्ची को आध्यात्मिक संकल्प अभिग्रह-धारी राजेश मुनि महाराज के दर्शन कराने ले गए। वहां मुनिश्री ने बच्ची की स्थिति को गंभीर बताते हुए संथारा का सुझाव दिया। चूंकि परिवार मुनिश्री के अनुयायी हैं और मुनिश्री पूर्व में 107 संथारों का संचालन कर चुके हैं, इसलिए पूरे परिवार की सहमति से संथारा प्रक्रिया आरंभ की गई। आधे घंटे तक चली इस धार्मिक प्रक्रिया के 10 मिनट बाद ही वियाना ने प्राण त्याग दिए।

आईटी प्रोफेशनल दंपती ने निभाया कठिन धार्मिक निर्णय
वियाना के माता-पिता पीयूष और वर्षा जैन दोनों ही आईटी प्रोफेशनल हैं। उन्होंने बताया कि इस निर्णय की जानकारी उन्होंने केवल परिवार के कुछ करीबी सदस्यों दादा-दादी, नाना-नानी और कुछ रिश्तेदारों से ही साझा की थी। संथारा की यह धार्मिक विधि आध्यात्मिक संकल्प अभिग्रह-धारी राजेश मुनि महाराज और सेवाभावी राजेन्द्र मुनी महाराज साहब के सान्निध्य में पूरी की गई। इस अल्पायु में संथारा लेने की वजह से वियाना का नाम ‘गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में दर्ज किया गया है। बीते बुधवार को इंदौर के कीमती गार्डन में आयोजित एक सादे एवं गरिमामयी समारोह में इसके लिए माता-पिता को सम्मानित भी किया गया।

विश्व की सबसे कम उम्र की संथारा धारण करने वाली बालिका
वियाना के माता-पिता का कहना है कि उनकी बेटी जैन धर्म के सर्वोच्च व्रत “संथारा” को धारण करने वाली विश्व की सबसे कम उम्र की बालिका बन गई है। वे बताते हैं कि वियाना बहुत ही चंचल और प्रसन्नचित बच्ची थी। उसे प्रारंभ से ही धार्मिक संस्कार दिए जा रहे थे जैसे गोशाला जाना, पक्षियों को दाना डालना, गुरुदेव के दर्शन करना और पचखाण करना। यही धार्मिक वातावरण और परिवार की आस्था ने इस कठिन निर्णय को संभव बनाया। वियाना की यह आध्यात्मिक यात्रा आज पूरे समाज के लिए एक गहन विचार और प्रेरणा का विषय बन गई है।

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