Friday, September 20, 2024
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AI कंटेंट को लेबल करना जरूरी क्यों है? मेटा से लेकर यूट्यूब तक ने बनाए नियम

AI Content: यूट्यूब ने अपने वीडियो क्रिएटर्स के लिए एआई इमेज या फुटेज को लेबल करना जरूरी कर दिया है. आइए हम इस बात को समझते हैं कि आखिर एआई वाले कंटेंट को लेबल करना जरूरी क्यों है?

Artificial Intelligence: पिछले कुछ महीनों या सालों से आपने आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (Artificial Intelligence) नाम की टेक्नोलॉजी के बारे में काफी सुना होगा. इस मॉर्डन टेक्नोलॉजी को शॉर्ट में एआई टेक्नोलॉजी (AI Technology) के कहते हैं. आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस का हिंदी में सटीक अर्थ कृत्रिम बुद्धिमत्ता होता है. इसके नाम से आप समझ गए होंगे कि यह कृत्रिम यानी क्रिएट की गई बुद्धि यानी इंटेलीजेंस पर काम करता है.

पूरी दुनिया में छाया एआई का जलवा
आजकल एआई टेक्नोलॉजी की चर्चाएं पूरी दुनिया में इसलिए हो रही क्योंकि इस टेक्नोलॉजी की मदद से लोगों के बहुत सारे मुश्किल काम चुटकी में हो जाते हैं, जिसके लिए पहले उन्हें काफी वक्त लग करता था. इस टेक्नोलॉजी की मदद से एक नहीं बल्कि कई मुश्किल कामों को आसानी से किया जा सकता है.

फिर चाहे बात दुनिया के किसी भी सवाल का जवाब ढूंढने की हो या फिर एक काल्पनिक फोटो या वीडियो बनाने की, एआई ऐसे सभी कामों को बस कमांड सुनते ही पूरा कर सकता है. इस वजह से इस टेक्नोलॉजी को इंसानों के लिए काफी उपयोगी माना जा रहा है, लेकिन हर टेक्नोलॉजी अपने साथ कुछ नुकसान भी लेकर आती है और ऐसा ही एआई टेक्नोलॉजी के साथ भी हुआ है.

AI का दुरुपयोग शुरू
एआई टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग करना शुरू हो चुका है. भारत समेत दुनियाभर के कई देशों में एआई टेक्नोलॉजी की मदद से धोखाधड़ी, ऑनलाइन क्राइम, लार्ज लैंग्वेज मॉडल द्वारा दिए गए विवादित बयानों के बाद पैदा हुआ विवाद जैसे कई मामले सामने आ चुके हैं. इस वजह से अब दुनियाभर के सभी देश और सभी देशों की कंपनियां भी एआई के नुकसानों से बचने का उपाय सोचने लगी है और उसे लागू भी करने लगी है.

दुनिया की सबसे लोकप्रिय वीडियो स्ट्रीमिंग और क्रिएटिंग सर्विस देने वाली कंपनी यूट्यूब ने भी एआई टेक्नोलॉजी से होने वाले नुकसान को कम करने के लिए कुछ नए नियम बनाकर जारी किए हैं. आइए हम आपको सिलसिलेवार तरीके से यूट्यूब के इन नए नियमों के बारे में बताते हैं, जो उसने अपने प्लेटफॉर्म पर शॉर्ट्स और लॉन्ग वीडियो बनाने वाले डिजिटल क्रिएटर्स के लिए बनाए हैं.

दरअसल, यूट्यूब ने क्रिएटर्स के लिए एक नया नियम बनाया है, जिसके जरिए यूट्यूब पर शॉर्ट्स या लॉन्ग वीडियो बनाने वाले क्रिएटर्स को यह बताना होगा कि उन्होंने अपने कंटेंट को बनाने में एआई या किसी सिंथेटिक मीडिया का इस्तेमाल किया है या नहीं. इस नए नियम का उद्देश्य वीडियो देखने वाले दर्शकों के लिए पारदर्शिता को कायम करना है. इससे दर्शकों को यह स्पष्ट रूप से पता चल जाएगा कि वो जिस वीडियो को देख रहे हैं, उसमें क्या चीज असली है और क्या एआई से बनाई गई है.

यूट्यूब क्रिएटर्स के लिए एआई रूल्स
क्रिएटर्स ने अगर किसी वीडियो में एआई टूल्स की मदद से क्रिएट की गई किसी असली इंसान, घटना या स्थान की फोटो या वीडियो को दिखाया है तो उन्हें इसके बारे में जानकारी देनी अनिवार्य होगी.
क्रिएटर्स अपनी यूट्यूब शॉर्ट्स या लॉन्ग वीडियो में एआई फोटो या वीडियो को लेबल (एआई का पहचान बताकर) करके इसकी जानकारी दे सकते हैं.
क्रिएटर्स अपनी वीडियो के डिस्क्रिप्शन में भी एआई टेक्नोलॉजी से इस्तेमाल की गई फोटो या वीडियो की जानकारी दे सकते हैं.
क्रिएटर्स को इस नियम का ध्यान सिर्फ उन वीडियोज़ के लिए रखना है, जिसमें एआई का इस्तेमाल करके किसी इंसान का नकली चेहरा, किसी जगह की नकली पिक्चर, किसी घटना का नकली रूप या बिल्कुल असली दिखने वाली किसी काल्पनिक दृश्य को वीडियो में शामिल किया गया हो.
क्रिएटर्स ने अगर अपनी वीडियो में स्क्रिप्टिंग, कैप्शन, एनिमेटेड कंटेंट, फिल्टर्स या वीडियो प्रॉडक्शन के लिए एआई टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया है, तो उन्हें डिस्क्रिप्शन में इसकी जानकारी मेंशन करने की जरूरत नहीं है.
ChatGPT से हुई शुरुआत
अमेरिका की आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस की कंपनी ओपनएआई (OpenAI) ने चैटजीपीटी (ChatGPT) के रूप में दुनिया का पहला एआई मॉडल (AI Model) पेश किया है, जिसने पूरी दुनिया के लोगों को किसी भी चीज के बारे में कुछ भी सर्च करने का एक नया प्लेटफॉर्म दिया. उसके बाद गूगल (Google) ने भी बार्ड (Bard) नाम की अपनी एआई मॉडल सर्विस शुरू की, जिसे कंपनी ने बाद में बदलकर जेमिनी (Gemini) में बदल दिया.

भारत में भी ओला (Ola) कंपनी के मालिक भविष अग्रवाल ने भारत का पहला एआई मॉडल कृत्रिम (Krutrim) लॉन्च किया. भारत में और भी कई एआई कंपनियां अपने-अपने एआई मॉडल पर काम कर रही है और ऐसे ही दुनियाभर की हजारों-लाखों कंपनियां आने वाले कुछ सालों में बहुत सारे एआई मॉडल्स या रोबोट पेश करने वाली है.

दुनियाभर में पेश किए गए AI Robots
स्पेन के शहर बार्सिलोना में फरवरी के आखिरी हफ्ते में टेक्नोलॉजी का सबसे बड़ा इवेंट मोबाइल वर्ल्ड कांग्रेस (MWC 2024) आयोजित किया गया था. उस इवेंट में भी दुनियाभर की कई कंपनियों ने एआई टेक्नोलॉजी की मदद से बनाए गए रोबोट को पेश किया था, जो बिल्कुल इंसानों की तरह बात करता है, हाथ मिलाता है, हंसता है, रोता है, कुछ भी बताने के बाद उसे तुरंत याद कर लेता है.

हाल ही में भारत के केरल में भी एआई टेक्नोलॉजी पर बेस्ड भारत की पहली एआई टीचर को पेश किया गया है. एआई टीचर किसी असली टीचर की तरह साड़ी पहनकर क्लास में गई, बच्चों से बात की, उन्हें पढ़ाया, उनसे हाथ मिलाया. एआई की इन सभी चीजों को देखकर बहुत सारे फायदे नजर आते हैं, लेकिन भारत और पूरी दुनिया के सामने एक सवाल है कि इससे होने वाले नुकसानों से कैसे बचा जाए.

गूगल ने एआई की गलती मानकर मांगी मांफी
हाल ही में गूगल के एआई मॉडल जेमिनी में एक नया फीचर पेश किया गया था, जो किसी भी टेक्स्ट को देखकर इमेज क्रिएट कर सकता था. यह फीचर काफी अच्छा माना जा रहा था, लेकिन कुछ ही दिन में जेमिनी के इस फीचर की वजह से ऐसा विवाद खड़ा हुआ कि बात गूगल के सीईओ सुंदर पिचाई की नौकरी तक पर भी आ गई.

नतीजा यह हुआ कि गूगल ने जेमिनी एआई मॉडल से इस फीचर को तत्काल रिमूव किया और कंपनी ने सार्वजनिक तौर पर मांफी मांगी. कंपनी ने खुद इस बात को स्वीकार किया कि उनके एआई मॉडल ने गलती की है. उसके बाद गूगल ने कहा कि वो इस फीचर में सुधार कर रही है और इसे पूरी तरह से ठीक करने के बाद ही लागू किया जाएगा.

मेटा ने एआई कंटेंट को लेबल करने का किया ऐलान
मार्क ज़ुकरबर्ग की कंपनी मेटा भी इस बात का ऐलान कर दिया कि वो अपने प्लेटफॉर्म्स (इंस्टाग्राम, फेसबुक और व्हाट्सऐप) पर ओपनएआई के चैटबॉट, गूगल के जेमिनी एआई या किसी भी अन्य कंपनियों के द्वारा एआई से बनी इमेज और वीडियो को लेबल करेगा, ताकि लोगों को इस बात का पता चल सके कि वो उनके प्लेटफॉर्म्स पर जिस इमेज या वीडियो को देख रहे हैं, वो एआई से बनी हुई है या नहीं.

एआई की वजह से बढ़ा डीपफेक का खतरा
एआई टेक्नोलॉजी की मदद से डीपफेक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके भी लोगों को धोखा देने का काम किया जा रहा है. डीपफेक एक ऐसी टेक्नोलॉजी है, जिसके जरिए किसी भी असली इंसान का एक नकली रूप बनाया जा सकता है, जो दिखने, बोलने, बातचीत करने और हरेक एक्शन में बिल्कुल असली इंसान जैसा लगता है और उसे पहली नज़र में देखने के बाद कोई भी आम इंसान धोखा खा सकता है.

भारत में डीपफेक टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके बॉलीवुड की अभिनेत्री रश्मिका मंधाना, भारत रत्न पूर्व क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर और भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान विराट कोहली तक का नकली रूप बनाकर सोशल मीडिया पर वायरल किया गया. डीपफेक की मदद से क्रिमिनल्स लोगों को सचिन और विराट जैसे सेलिब्रेटी के नाम पर धोखा देने का काम कर रहे हैं.

भारत सरकार ने भी एआई लेबल को किया जरूरी
इस गंभीर समस्या को गंभीरता से लेते हुए भारत सरकार ने कुछ दिन पहले घोषणा की थी कि किसी भी एआई कंपनी को भारत में कोई भी एआई प्रॉडक्ट लॉन्च करने के लिए सरकार की अनुमति लेनी होगी. हालांकि, कुछ ही दिन के बाद सरकार ने अपने इस नियम में बदलाव किया और कहा कि कंपनियों को एआई मॉडल के सरकार की अनुमति लेने की जरूरत नहीं होगी.

हालांकि, सरकार ने टेक कंपनियों को कहा कि उन्हें अकल्पनीय और कम परीक्षण वाले एआई मॉडल को लेबल करना होगा ताकि पारदर्शिता को कायम किया जा सके और एआई द्वारा बनाए गए कंटेंट से उत्पन्न की गई गलत सूचनाओं को कम किया जा सके.

क्या एआई के लिए बनाई जाएगी रेगुलेटरी बॉडी?
एआई के द्वारा होने वाले इस तरह के तमाम नुकसानों से बचने के लिए दुनियाभर की सरकारें एआई टेक्नोलॉजी को रेगुलेट करने के लिए एक खास रेगुलेटरी बॉडी बनाने पर भी विचार कर रही है. कुछ लोगों का मानना है कि एआई टेक्नोलॉजी से उत्पन्न होने वाले खतरों से निपटने के लिए रेगुलेटरी बॉडी की जरूरत है. वहीं, कुछ लोगों का मानना है कि रेगुलेटरी बॉडी एआई टेक्नोलॉजी के भविष्य के लिए बाधा बनने का काम कर सकती है. भारत में भी इस विषय पर काफी चर्चाएं हो रही है.

हालांकि पिछले साल केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री राजीव चंद्रशेखर ने कहा था कि सरकार एआई ऐप्लिकेशन्स को विनियमित (Regulate) नहीं करेगी, लेकिन पिछले कुछ महीनों में एआई से बढ़ते जा रहे नुकसान को देखते हुए फिलहाल सरकार ने एआई कंपनियों के लिए गाइडलाइंस तो जारी कर दी है, और उम्मीद है कि आने वाले वक्त में एआई टेक्नोलॉजी से होने वाले तमाम संभावित नुकसानों को रोकने के लिए कोई रेगुलेटरी बॉडी या सख्त नियम-कानून बनाए जा सकते हैं.

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