चुनावी बॉन्ड स्कीम पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी. इस स्कीम को मोदी सरकार ने 2018 में शुरू किया था. इसकी वैधता पर सवाल उठाते हुए कोर्ट में चार याचिकाएं दाखिल की गई थीं.
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (15 फरवरी 2024) को चुनावी बॉन्ड स्कीम पर तत्काल प्रभाव से रोक लगा दी. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने इस स्कीम को असंवैधानिक और RTI का उल्लंघन करार दिया. सीजेआई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच ने एसबीआई को अप्रैल 2019 से अब तक मिले चंदे की जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को देने के लिए कहा है. आइए जानते हैं कि इस स्कीम के बंद होने से क्या कुछ बदल जाएगा और चंदा लेने और देने वाले पर इसका क्या असर पड़ेगा?
सवाल -1: चुनावी बॉन्ड स्कीम क्या थी, कब शुरू हुई?
जवाब- मोदी सरकार ने 2018 में चुनावी बॉन्ड स्कीम की शुरुआत की थी. तब सरकार ने दलील दी थी कि इससे राजनीतिक दलों को मिलने वाली फंडिंग में पारदर्शिता आएगी. इसे राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले नकद चंदे के विकल्प के रूप में देखा गया था.
सवाल- 2: चुनावी बॉन्ड स्कीम के जरिए किन पार्टियों को चंदा मिलता था?
जवाब- चुनावी बॉन्ड स्कीम के जरिए चंदा ऐसे राजीनीतिक दल हासिल कर सकते थे, जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 29ए के तहत रजिस्टर्ड हैं और जिन्हें पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में एक प्रतिशत से अधिक वोट मिले हों.
सवाल- 3: इस स्कीम के तहत कौन चंदा दे सकता था?
जवाब- कोई भी नागरिक, कंपनी या संस्था किसी पार्टी को चंदा दे सकती थी. ये बॉन्ड 1000, 10 हजार, 1 लाख और 1 करोड़ रुपये तक के हो सकते थे. खास बात ये है कि बॉन्ड में चंदा देने वाले को अपना नाम नहीं लिखना पड़ता था.
सवाल- 4: कहां मिलते थे चुनावी बॉन्ड?
जवाब- ये चुनावी बॉन्ड एसबीआई की 29 ब्रांचों में मिलते थे. यह बॉन्ड साल में चार बार यानी जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते थे. इसे ग्राहक बैंक की शाखा में या उसकी वेबसाइट पर ऑनलाइन खरीद सकता था.
सवाल- 5: चुनावी बॉन्ड के खिलाफ कितनी याचिका दाखिल की गईं?
जवाब- सुप्रीम कोर्ट में चुनावी बांड की वैधता पर सवाल उठाते हुए कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) समेत कुल चार याचिकाएं दाखिल की गई हैं.
सवाल- 6: याचिकाओं में क्या सवाल उठाए गए?
जवाब- याचिकाकर्ताओं का दावा किया था कि चुनावी बांड के जरिए हुई गुमनामी राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करती है और वोटर्स के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है. उनका दावा है कि इस योजना में शेल कंपनियों के माध्यम से दान देने की अनुमति दी गई है.
सवाल- 7: सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या-क्या कहा?
जवाब- सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक और RTI के खिलाफ बताया. कोर्ट ने कहा कि इनकम टैक्स एक्ट में 2017 में किया गया बदलाव (बड़े चंदे को भी गोपनीय रखना) असंवैधानिक है.साथ ही जनप्रतिनिधित्व कानून में 2017 में हुआ बदलाव भी असंवैधानिक है. कंपनी एक्ट में हुआ बदलाव भी असंवैधानिक है. लेन-देन के उद्देश्य से दिए गए चंदे की जानकारी भी इन संशोधनों के चलते छिपती है.
सवाल- 8: चंदा लेने वाले और देने वालों पर क्या असर पड़ेगा?
जवाब- सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉन्ड पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई है. ऐसे में अब कोई भी पार्टी चुनावी बॉन्ड के जरिए चंदा नहीं ले पाएगी. कोई भी व्यक्ति, कंपनी या संस्था चुनावी बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को चंदा नहीं दे पाएगी. इसके अलावा जिन राजनीतिक पार्टियों ने चुनावी बॉन्ड को कैश नहीं कराया है, उन्हें इन्हें बैंक में लौटाना पड़ेगा.
सवाल- 9- कोर्ट ने बैंक और चुनाव आयोग को क्या निर्देश दिए?
जवाब- सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि SBI अप्रैल 2019 से अभी तक सभी पार्टियों को मिले चंदे की जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को दे. चुनाव आयोग 13 मार्च तक यह जानकारी अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करे.