INDIA Alliance: इंडिया गठबंधन बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र और कर्नाटक के बूते बीजेपी के NDA को चुनौती दे रहा था. विपक्षी गठबंधन के ये मजबूत किले अब धीरे-धीरे दरकते हुए दिखाई दे रहे हैं.
INDIA Alliance: पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण के जिन किलों के बूते इंडिया गठबंधन सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को आंखें दिखा रहा था, उसके तीन मजबूत स्तंभ दरकते दिखाई दे रहे हैं. इंडिया गठबंधन के चार मजबूत किलों में पूरब का राज्य पश्चिम बंगाल, पश्चिम में महाराष्ट्र, उत्तर में बिहार तो दक्षिण में कर्नाटक शामिल थे. इन चार राज्यों में विपक्षी गुट मजबूत दिखाई दे रहा था और सीटों के लिहाज से भी ये चार राज्य बेहद महत्वपूर्ण हैं. हालांकि ये फ्रेम अब दरक रहा है और इसी के साथ इंडिया गठबंधन के खड़े हो पाने की संभावनाएं भी सुस्त होती नजर आ रही हैं.
INDIA Alliance: पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण के जिन किलों के बूते इंडिया गठबंधन सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी को आंखें दिखा रहा था, उसके तीन मजबूत स्तंभ दरकते दिखाई दे रहे हैं. इंडिया गठबंधन के चार मजबूत किलों में पूरब का राज्य पश्चिम बंगाल, पश्चिम में महाराष्ट्र, उत्तर में बिहार तो दक्षिण में कर्नाटक शामिल थे. इन चार राज्यों में विपक्षी गुट मजबूत दिखाई दे रहा था और सीटों के लिहाज से भी ये चार राज्य बेहद महत्वपूर्ण हैं. हालांकि ये फ्रेम अब दरक रहा है और इसी के साथ इंडिया गठबंधन के खड़े हो पाने की संभावनाएं भी सुस्त होती नजर आ रही हैं.
बंगाल में ममता का साफ संदेश
शुरुआत होती है पश्चिम बंगाल से. 42 लोकसभा सीटों वाले इस राज्य की सत्ता में तृणमूल कांग्रेस पार्टी की सरकार है और मुख्यमंत्री हैं ममता बनर्जी. जिन्होंने कांग्रेस को साफ-साफ मैसेज दे दिया है कि बंगाल में वो अकेले ही चुनाव लड़ने के मूड में हैं. दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव में TMC को राज्य की 42 में से 22 सीट मिली थीं. बीजेपी ने राज्य में अपने प्रदर्शन में अभूतपूर्व सुधार करते हुए 18 सीटें जीती थीं. वहीं कांग्रेस महज दो और सीपीआईएम का तो खाता ही न खुल सका. 2021 में राज्य में विधानसभा का चुनाव हुआ और इन चुनावों में भी TMC ने जीत हासिल करते हुए सरकार बनाई. बीजेपी के प्रदर्शन में यहां भी शानदार बढ़त दिखाई दी और पार्टी को 68 सीट मिलीं. वहीं कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी यहां भी खाता न खोल सकीं.
यानी संदेश साफ है कि सूबे में कांग्रेस और कम्युनिस्ट दल कमजोर हो रहे हैं और बीजेपी मजबूत. ऐसे में ममता बनर्जी हरगिज भी अपनी पार्टी को कमजोर नहीं करेंगी और वो अकेले ही कम से कम पश्चिम बंगाल में बीजेपी से टकराना चाहती हैं. एक महत्वपूर्ण पक्ष ये भी है कि ममता बनर्जी की पूरी राजनीति ही कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ रही है और अब राज्य में वो इन दोनों के साथ चुनाव में उतरती हैं तो जनता और कार्यकर्ताओं को गलत मैसेज जाएगा. इसलिए ममता देश में तो इंडिया गठबंधन के साथ हैं, लेकिन बंगाल में इससे दूर रहना चाहती हैं.
बिहार में नीतीश ने बिगाड़ दिया खेल
अब उत्तर भारत में इंडिया गठबंधन के मजबूत गढ़ों पर नजर डालें तो बिहार यहां एक मजबूत किला था. ये किला तब तक बीजेपी की पहुंच से दूर दिख रहा था, जब तक नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड, लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस पार्टी एकसाथ खड़े थे. लेकिन जैसे ही नीतीश कुमार ने यहां महागठबंधन का हाथ छोड़ा तो इंडिया गठबंधन बिहार में चरमरा गया.
बिहार में कुल 40 लोकसभा सीट हैं, जिनमें से पिछले चुनाव में 39 सीटें NDA गठबंधन ने जीती थीं. 17 सीटें बीजेपी और 16 सीटें JDU ने जीतीं. हालांकि बाद में JDU ने NDA का साथ छोड़ दिया और इसके मुखिया नीतीश कुमार इंडिया गठबंधन के सूत्रधार बने. लेकिन जैसे ही नीतीश नाम का सूत्र टूटा, वैसे ही ये गठबंधन बिखर गया. अब नीतीश कुमार NDA के साथ हैं और जितना फायदा वो इंडिया के साथ रहकर उसे पहुंचाते अब उससे ज्यादा नुकसान वो NDA के साथ जाकर इंडिया गठबंधन को पहुंचा सकते हैं.
किसका गुट किसके साथ, महाराष्ट्र में फंसा ये पेच
विपक्षी गुट के मजबूत किलों में से एक महाराष्ट्र भी है, लेकिन यहां भी अब गठबंधन में दरार की सुगबुगाहट सुनाई देने लगी है. लोकसभा सीटों के लिहाज से महाराष्ट्र काफी महत्वपूर्ण राज्य है. यहां कुल 48 लोकसभा सीटें हैं और उत्तर प्रदेश के बाद देश में सबसे ज्यादा लोकसभा सीट इसी राज्य में हैं. पिछले चुनाव में NDA ने यहां 48 में से 41 सीटें जीती थीं. तब NDA में बीजेपी के साथ शिवसेना गठबंधन में थी और विपक्षी UPA गठबंधन के हाथ सिर्फ पांच सीट ही लगी थीं. इनमें से भी चार राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी और सिर्फ एक कांग्रेस के हिस्से आई.
अब राज्य की मौजूदा राजनीतिक परिस्थितियों को देखा जाए तो शिवसेना और NCP दोनों ही दल दो धड़ों में टूट चुके हैं. शिवसेना में एकनाथ शिंदे ने बगावत कर BJP के साथ मिलकर सरकार बना ली और पार्टी का बड़ा संख्याबल उन्हीं के साथ है. बाद में अजित पवार NCP को दो हिस्सों में तोड़ते हुए मजबूत दस्ता अपने साथ ले गए और NDA सरकार में मिल गए. वहीं इंडिया गठबंधन के साथ शरद पवार के गुट वाली NCP और उद्धव ठाकरे के गुट वाली शिवसेना रह गई.
इस पर भी चुनावों के ऐन पहले शरद पवार से NCP का नाम और पार्टी का चुनाव चिन्ह छिन गया है. वहीं उद्धव ठाकरे ने हाल ही में ये कह कर कि ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी उनके दुश्मन नहीं हैं और बीजेपी ने ही उन्हें दूर किया है वो कभी उनसे दूर नही हुए,’ इंडिया गठबंधन की टेंशन बढ़ा दी है. रही कसर पहले ही प्रकाश अंबेडकर दूर कर चुके हैं, जिनके इंडिया गठबंधन में शामिल हुए चंद दिन नहीं हुए कि वो बोल गए कि इंडिया गठबंधन खत्म हो चुका है. कांग्रेस के कद्दावर नेता मिलिंद देवड़ा भी NDA के साथ हो लिए हैं. इन घटनाक्रमों से ये अंदाजा लग सकता है कि महाराष्ट्र में इंडिया गठबंधन अभी खुद को ठीक से खड़ा भी नहीं कर सका है तो लोकसभा चुनाव में उसके रेस लगाने की बात तो दूर की कौड़ी है.
बड़ा सवाल क्या कर्नाटक बचाएगा लाज?
अब विपक्षी गुट के चौथे किले की बात करें तो ये है कर्नाटक. इस राज्य में हाल ही में कांग्रेस पार्टी ने सरकार बनाई है और राजनीति के जानकार कर्नाटक में कांग्रेस और विपक्षी गुट के आगामी लोकसभा चुनाव मजबूत होने का यही कारण भी बताते हैं. उत्तर भारत का ये एक ऐसा राज्य है जहां बीजेपी मजबूत रही है. पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने कर्नाटक की 28 में से 25 सीटों पर जीत दर्ज की थी. वहीं कांग्रेस को सिर्फ एक सीट ही मिली. हालांकि अब राज्य के राजनीतिक हालात बदले हैं और कांग्रेस पार्टी सूबे की सत्ता में काबिज हो चुकी है. ऐसे में राजनीति के जानकारों का मानना है कि कांग्रेस काफी हद तक लोकसभा चुनाव में बीजेपी को नुकसान पहुंचाएगी. हालांकि ये नुकसान इतना बड़ा होगा कि राष्ट्रीय फलक पर इसका कोई विशेष प्रभाव पड़ेगा, इसकी संभावनाएं कम ही हैं.
क्या इंडिया गठबंधन में ‘ऑल इज वेल’?
कुल मिलाकर देखा जाए तो पूरब, पश्चिम, उत्तर और दक्षिण के जिन राज्यों के दम पर विपक्षी गठबंधन सत्तारूढ़ NDA और बीजेपी की आर्म ट्विस्टिंग की तैयारी में था, वहां वो खुद ही पटखनी खाते हुए दिखाई दे रहा है. उत्तर प्रदेश में भी अब राष्ट्रीय लोकतांत्रिक दल इंडिया गठबंधन से छिटकते हुए दिखाई दे रहा है. समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव तो पहले से ही सीटों को लेकर कांग्रेस से मोल-भाव का खेल, खेल ही रहे हैं. वहीं आम आदमी पार्टी से भी पंजाब और दिल्ली में गठबंधन को लेकर कांग्रेस के क्षेत्रीय नेता नाखुश हैं. यानी इंडिया गठबंधन के साथ फिलहाल तो सब कुछ सही सा नहीं दिख रहा है और ऐसा तब है जब चुनाव में बस चंद दिनों का ही वक्त बाकी है.
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