Rani Durgavati: रानी दुर्गावती के वीरता के किस्से आज भी जबलपुर में काफी प्रसिद्ध हैं. उन्होंने मुगलों की सेना से लोहा लेते हुए अपनी जान गंवाई. आइए आज उनकी कहानी जानते हैं.
देश में गोंड राजवंश की महानतम रानी दुर्गावती को उनके साहस और बलिदान के लिए याद किया जाता है. उन्होंने मुगल सेना से अपनी मातृभूमि और आत्मसम्मान की रक्षा हेतु अपने जान की कुर्बानी दी थी. उनके बलिदन के किस्से आज भी लोगों के मन में ताजा हैं. लोग उनकी तुलना महाराणा प्रताप से भी करते हैं.
केंद्र सरकार रानी दुर्गावती की 500वीं जयंती के मौके पर मध्य प्रदेश के जबलपुर में एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन कर रही है. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी शिरकत करने वाले हैं. वह यहां 100 करोड़ रुपये की लागत से बनने वाले वीरांगना दुर्गावती के स्मारक की आधारशिला रखेंगे.
रानी दुर्गावती का जन्म बांदा जिले के कालिंजर किले में 5 अक्टूबर 1524 में हुआ था. उनका जन्म दुर्गाष्टमी के दिन हुआ. इसलिए उन्हें दुर्गावती नाम दिया गया. दुर्गावती के पिता कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल थे और वह अपने पिता की इकलौती संतान थीं.
रानी दुर्गावती का विवाह गोंडवाना राज्य के राजा संग्राम शाह के बेटे दलपत शाह से हुआ. शादी के चार साल बाद ही राजा दलपत शाह ने दुनिया को अलविदा कह दिया. अब दुर्गावती अपने तीन साल के बेटे के साथ ही अकेले रह गई थीं. फिर उन्होंने राज्य की बांगडोर अपने हाथ में ली. वर्तमान जबलपुर उनके राज्य का केंद्र था.
1562 में अकबर की मुगल सेना ने गोंडवाना पर हमला किया. रानी दुर्गावती के पास सैनिकों की संख्या कम थी. मगर उन्होंने युद्ध जारी रखना चुना. युद्ध की शुरुआत में ही रानी दुर्गावती के सेनापति को वीरगति मिली. लेकिन उन्होंने अपना हौसला टूटने नहीं दिया. ये देखकर मुगल भी हैरान रह गए.
पहले दिन मुंह की खाने के बाद अगले दिन मुगल अत्यधिक सैनिकों के साथ पहुंचे. रानी दुर्गावती अपने सफेद हाथी पर सवार होकर मुगलों से लड़ रही थीं. इस युद्ध में उनका बेटा भी घायल हो गया, जिसे उन्होंने सुरक्षित स्थान पर भेजा. अब उनके पास 300 सैनिक ही बचे हुए थे, जबकि वह बुरी तरह घायल हो गई थीं.
रानी दुर्गावती को घायल अवस्था में देखकर उनके सैनिकों ने उन्हें जान बचाने को कहा. लेकिन उन्होंने पीछे नहीं हटने का फैसला किया. युद्ध जारी रहा और अब उनके सैनिक मारे जा रहे थे. ये देखकर रानी दुर्गावती को लगा कि अब वह युद्ध को नहीं लड़ पाएंगी.
रानी दुर्गावती ने अपने दीवान आधार सिंह को कहा कि वह उनकी जान ले लें. मगर दीवान को लगा कि वह अपने मालिक को नहीं मार सकता है. ये देखकर रानी दुर्गावती ने अपनी कटार उठाई और उसे सीने में उतार लिया. इस तरह वह मुगलों से लड़ते-लड़ते दुनिया को अलविदा कहकर चली गईं