
Delhi Pollution: इस साल दिल्ली में प्रदूषण ने पिछले कई वर्षों के रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। राजधानी हाल के समय के सबसे गंभीर पर्यावरणीय संकट का सामना कर रही है। 2025 की सर्दियों में जहां एक ओर कड़ाके की ठंड पड़ी, वहीं दूसरी ओर जहरीली हवा ने लोगों की मुश्किलें बढ़ा दीं। सुबह और शाम घने कोहरे व धुंध की चादर दिल्ली को ढके रही, जबकि ठंड बढ़ने के साथ-साथ प्रदूषण का स्तर भी लगातार ऊपर जाता गया। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस साल प्रदूषण इतना ज्यादा क्यों बढ़ गया।
दिसंबर की शुरुआत से ही बिगड़ी हवा
सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) के आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर की शुरुआत से ही दिल्ली की एयर क्वालिटी ‘खराब’ से ‘बहुत खराब’ श्रेणी में बनी हुई है। महीने के पहले 18 दिनों में ही दिल्ली ने पिछले 8 सालों में दिसंबर का सबसे खराब AQI दर्ज किया। 14 दिसंबर को राजधानी का एयर क्वालिटी इंडेक्स 461 तक पहुंच गया, जो ‘गंभीर’ श्रेणी में आता है।
स्थानीय प्रदूषण स्रोत बने बड़ी वजह
हवा की बिगड़ती गुणवत्ता के पीछे स्थानीय प्रदूषण स्रोतों की भूमिका सबसे अहम मानी जा रही है। 2025 के अनुमानों के मुताबिक, दिल्ली के कुल प्रदूषण में लगभग 35 प्रतिशत योगदान स्थानीय स्रोतों का है। इनमें वाहनों से निकलने वाला धुआं सबसे बड़ा कारण है, जो स्थानीय प्रदूषण का करीब 53 प्रतिशत हिस्सा बनाता है।
मौसम की मार और तापमान उलटना
इस साल प्रतिकूल मौसम परिस्थितियों ने प्रदूषण को और गंभीर बना दिया। हवा की रफ्तार कम रहने और तापमान गिरने के कारण ‘टेंपरेचर इनवर्जन’ की स्थिति बनी, जिसमें जमीन के पास ठंडी हवा प्रदूषकों को ऊपर फैलने नहीं देती और वे निचली सतह पर ही जमा हो जाते हैं।
दिवाली के बाद बढ़ा संकट
अक्टूबर में दिवाली के बाद से ही प्रदूषण का स्तर तेजी से बढ़ने लगा था। इस दौरान दिल्ली ने पिछले 4–5 वर्षों में सबसे खराब हवा की गुणवत्ता दर्ज की। कई इलाकों में पीएम2.5 का स्तर 1700 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया, जो सुरक्षित सीमा से लगभग 30 गुना अधिक है।
कंस्ट्रक्शन और इंफ्रास्ट्रक्चर का असर
दिल्ली-एनसीआर में बड़े पैमाने पर चल रहे निर्माण कार्य भी प्रदूषण बढ़ाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं। सड़कें, फ्लाईओवर, मेट्रो प्रोजेक्ट और रियल एस्टेट निर्माण से उड़ने वाली धूल ने हवा की गुणवत्ता को और खराब किया है।
पराली जलाने का असर अभी भी कायम
हालांकि पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने की घटनाएं 2024 की तुलना में कम हुई हैं, लेकिन इसका असर पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है। हवा के प्रतिकूल रुख के चलते पड़ोसी राज्यों से उठने वाला धुआं अब भी दिल्ली की ओर पहुंच रहा है और प्रदूषण को बढ़ा रहा है।

