हाल में आरबीआई ने रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है, जिससे यह 5.25 प्रतिशत पर आ गया. इससे उधारी सस्ती होती है और उपभोक्ताओं की खरीद क्षमता बढ़ती है, जिससे निवेश और मांग को प्रोत्साहन मिलता है.

RBI Monetary Policy Committee: आरबीआई की मोनेटरी कमेटी (MPC) की बैठक और उसके नीतिगत फैसले हर दो महीने में लिए जाते हैं, जिनका सीधा प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था, बाज़ार और आम लोगों पर पड़ता है. केंद्रीय बैंक का लक्ष्य महंगाई को नियंत्रित रखने, रुपये की स्थिरता सुनिश्चित करने और आर्थिक गति को बनाए रखना होता है. एमपीसी में कुल छह सदस्य होते हैं—तीन आरबीआई की ओर से और तीन केंद्र सरकार द्वारा नामित. इसका मुख्य उद्देश्य महंगाई को औसतन 4 प्रतिशत के दायरे में रखना है.
क्या काम करती है एमपीसी?
अक्सर लोगों के मन में सवाल उठता है कि एमपीसी की बैठक में लिए गए फैसले बाज़ार और कर्ज से लेकर ईएमआई व रोजगार तक को कैसे प्रभावित कर देते हैं. दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्यभट्ट कॉलेज की प्रोफेसर डॉ. आस्था अहूजा बताती हैं कि जब केंद्रीय बैंक पॉलिसी बनाता है, तो इसका सीधा असर ब्याज दरों, बाजार में उपलब्ध तरलता (लिक्विडिटी) और निवेशकों की भावनाओं पर पड़ता है. ब्याज दरों में बदलाव मूल रूप से रेपो रेट के उतार-चढ़ाव पर आधारित होता है.
हाल में आरबीआई ने रेपो रेट में 25 बेसिस प्वाइंट की कटौती की है, जिससे यह 5.25 प्रतिशत पर आ गया. इससे उधारी सस्ती होती है और उपभोक्ताओं की खरीद क्षमता बढ़ती है, जिससे निवेश और मांग को प्रोत्साहन मिलता है. हालांकि, ऐसी स्थिति में पूंजी बहिर्गमन (कैपिटल आउटफ्लो) का जोखिम बढ़ सकता है, क्योंकि विदेशी बाजारों में ब्याज दरें अधिक हैं. इसका असर रुपये, महंगाई और भुगतान संतुलन (BOP) पर पड़ता है. फिलहाल रुपया पहले ही डॉलर के मुकाबले कमजोर होकर 90 के पार जा चुका है.

