
अमेरिका रूस से तेल खरीद को लेकर भारत पर दबाव बना रहा है, लेकिन पुतिन का कहना है कि प्रधानमंत्री मोदी उन नेताओं में से नहीं हैं जो किसी बाहरी दबाव में आते हों। मौजूदा वैश्विक हालात दो धुरियों में बंटते दिख रहे हैं—एक ओर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और दूसरी ओर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप। अमेरिका की टैरिफ नीतियों और पश्चिमी देशों के रूस-विरोधी रुख ने तनाव बढ़ाया है। इस बीच भारत और चीन जैसे देशों का रूस को मिला समर्थन पश्चिमी देशों की चिंता का कारण बना हुआ है, जिससे पुतिन की भारत यात्रा और भी महत्वपूर्ण हो गई है।
चीन की नज़र में भारत–रूस की साझेदारी रणनीतिक रूप से बेहद मज़बूत है। ग्लोबल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार दोनों नेता रक्षा, ऊर्जा, व्यापार, तकनीक और नई क्षमताओं पर अहम समझौते कर सकते हैं। 10 सरकारी MoUs और 15+ बिज़नेस डील्स पर हस्ताक्षर की संभावना है। यूरोपीय आयोग द्वारा रूस पर कड़े प्रतिबंधों के बीच यह यात्रा पश्चिमी देशों के लिए सीधे संदेश के तौर पर देखी जा रही है।
चीन के विदेश मामलों के विशेषज्ञ ली हाईडोंग के अनुसार भारत–रूस संबंध इतने रणनीतिक हैं कि बाहरी दबाव का उन पर कोई असर नहीं पड़ता। उनका कहना है कि न भारत और न ही रूस अमेरिकी या पश्चिमी दबाव में झुकने वाले हैं। यह साझेदारी दिखाती है कि रूस अब भी प्रभावशाली शक्ति है और पश्चिमी प्रतिबंध उसे कमजोर नहीं कर पाए हैं। साथ ही भारत अपनी ऊर्जा और विदेश नीति राष्ट्रीय हितों के आधार पर तय करता है, न कि किसी देश के दबाव में आकर।

