
मोटापे से बढ़ती वैश्विक स्वास्थ्य चुनौती को देखते हुए WHO ने पहली बार GLP-1 हार्मोन आधारित दवाओं को वजन घटाने के लिए प्रभावी विकल्प मानते हुए अनुमति दी है। ओजेम्पिक और मौन्जारो जैसी दवाएं इसी थैरेपी पर काम करती हैं और हाल के वर्षों में तेज़ी से लोकप्रिय हुई हैं। WHO का कहना है कि मोटापा अब केवल लाइफस्टाइल समस्या नहीं, बल्कि एक क्रॉनिक और दोबारा होने वाली बीमारी है, जिसके लिए लंबे समय तक इलाज की जरूरत होती है। संस्था ने सुझाव दिया है कि वयस्क मरीजों में GLP-1 दवाओं का नियमित उपयोग मददगार हो सकता है, हालांकि गर्भवती महिलाओं को इससे बाहर रखा गया है। रिपोर्ट के मुताबिक 2022 में बढ़े वजन से जुड़ी बीमारियों के कारण 37 लाख से अधिक मौतें हुईं, जो मलेरिया, टीबी और HIV से होने वाली कुल मौतों से भी अधिक हैं। WHO ने चेतावनी दी है कि 2030 तक मोटापे के मामलों में दोगुनी बढ़ोतरी हो सकती है। हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि GLP-1 थैरेपी मोटापे से जुड़े जोखिमों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, लेकिन इसके दीर्घकालिक असर और सुरक्षा को लेकर और अनुसंधान की आवश्यकता है।
WHO ने स्पष्ट किया है कि GLP-1 दवाओं को ‘जादुई इलाज’ की तरह नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि इन्हें संतुलित आहार, नियमित व्यायाम और व्यवहारगत बदलावों के साथ मिलाकर उपयोग करना सबसे प्रभावी रहता है। रायपुर के शहीद अस्पताल के एंडोक्राइनोलॉजिस्ट डॉ. शैलेश जेना का कहना है कि WHO की नई गाइडलाइन मोटापे के इलाज की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। उनके अनुसार, GLP-1 दवाओं ने भूख नियंत्रण, मेटाबॉलिज्म सुधारने और इंसुलिन संवेदनशीलता बढ़ाने में बेहतरीन परिणाम दिए हैं। यह उन मरीजों के लिए खासतौर पर सहायक हो सकती हैं, जिन पर डाइट और एक्सरसाइज का सीमित असर होता है। डॉ. जेना का मानना है कि मोटापा सिर्फ वजन बढ़ने की समस्या नहीं, बल्कि एक मेटाबॉलिक डिसऑर्डर है, जिसकी लंबी अवधि तक मैनेजमेंट की आवश्यकता होती है।

