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Thursday, November 13, 2025
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“दक्षिण भारत के मंदिरों में केसरी प्रसाद क्यों है खास? जानिए शांति और पवित्रता का रहस्य!”

दक्षिण भारत के मंदिरों में केसरी प्रसाद: भक्ति और शुद्धता का प्रतीक

दक्षिण भारत के मंदिरों में पूजा के बाद भक्तों को जो प्रसाद दिया जाता है, वह केवल मिठाई नहीं, बल्कि भक्ति और परंपरा का प्रतीक होता है। इसमें सबसे प्रमुख है केसरी प्रसाद, जिसे श्रद्धा से भगवान को अर्पित किया जाता है और फिर भक्तों में बांटा जाता है।

केसरी नाम का रहस्य
‘केसरी’ शब्द ‘केसर’ से लिया गया है, जिसका अर्थ है सुनहरा या नारंगी रंग। यह रंग धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। केसर या हल्दी के माध्यम से इसका पीला-नारंगी रंग भक्ति, ऊर्जा और शुभता का प्रतीक माना जाता है। इसी कारण दक्षिण भारत के मंदिरों में इसे केसरी प्रसाद कहा जाता है।

आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध तिरुपति बालाजी मंदिर में इसे केसरी पोंगल या सूजी केसरी कहा जाता है। तमिलनाडु के वेंकटेश्वर, मुरुगन, अय्यप्पा और दुर्गा देवी मंदिरों तथा कर्नाटक के महालक्ष्मी मंदिरों में भी यह प्रमुख प्रसाद के रूप में तैयार किया जाता है। यह परंपरा सदियों पुरानी है और आज भी श्रद्धा के साथ निभाई जाती है।

केसरी प्रसाद कैसे बनता है
केसरी प्रसाद में इस्तेमाल होने वाली हर सामग्री का अपना धार्मिक महत्व है:

  • सूजी और घी: शुद्धता और सात्त्विकता का प्रतीक
  • केसर/हल्दी: रंग, सुगंध और आध्यात्मिक ऊर्जा का संचार
  • इलायची: मिठास और ताजगी का प्रतीक
  • काजू और किशमिश: समृद्धि और शुभ फल का संकेत

घी में सूजी को सुनहरा भूनकर उसमें केसर या हल्दी घोला हुआ पानी और चीनी मिलाई जाती है। इसकी सुगंध मंदिर के वातावरण को भक्ति से भर देती है और प्रसाद स्वाद के साथ श्रद्धा का अनुभव कराता है।

केसरिया खीर
दक्षिण भारत के कई मंदिरों में केसरिया खीर भी भोग के रूप में बनाई जाती है। इसमें दूध, चावल, केसर और मेवे शामिल होते हैं। इसका सुनहरा रंग और स्वाद भक्तों के लिए आंतरिक शांति और प्रसन्नता का प्रतीक बन जाता है।

हर घटक में छिपा आध्यात्मिक अर्थ
केसरी प्रसाद सिर्फ भोजन नहीं, बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक प्रतीक है।

  • केसर का रंग: आध्यात्मिक चेतना और ऊर्जा
  • घी और सूजी: संयम, शुद्धता और सादगी
  • मीठा स्वाद: भक्ति की मधुरता और आंतरिक शांति

माना जाता है कि केसरी प्रसाद भगवान को प्रसन्न करता है और घर में सौभाग्य, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा लाता है। शायद यही कारण है कि दक्षिण भारत के हर मंदिर में पूजा के बाद यह प्रसाद बांटना अनिवार्य माना जाता है।

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