
जयपुर। राजस्थान में शहरी विकास से जुड़े एक बड़े टेंडर घोटाले का पर्दाफाश हुआ है, जहां महज 30 करोड़ की बिड कैपेसिटी वाली फर्म MVR टेक्नोलॉजी को 862.05 करोड़ रुपये के ठेके दिए गए। यह ठेके बिना बजट स्वीकृति, प्रशासनिक मंजूरी और तकनीकी अनुमोदन के जारी किए गए, जो वित्तीय अनियमितता का गंभीर मामला है।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, टेंडर प्रक्रिया में नियमों को दरकिनार कर पहले 25 शहरों में 261.81 करोड़ रुपये का ठेका दिया गया, फिर बिना टेंडर जारी किए 114.87 करोड़ का ठेका और अंत में 55 अन्य शहरों के लिए 485.42 करोड़ रुपये का ठेका MVR टेक्नोलॉजी को सौंप दिया गया।
जांच समिति गठित, जिम्मेदार अधिकारियों पर शक शहरी विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने इस मामले की गंभीरता को देखते हुए रुक्मणी रियाड कमेटी को जांच के निर्देश दिए हैं। प्रारंभिक जांच में RUDSICO-DLB के चीफ इंजीनियर प्रदीप गर्ग, वित्तीय सलाहकार महेंद्र मोहन और अन्य अधिकारियों की संलिप्तता सामने आई है, जिन्होंने नियमानुसार स्वीकृत हुए बिना ही भुगतान जारी कर दिए।
टेंडर प्रक्रिया में धांधली के प्रमुख आरोप :
टेंडर की शर्तों में हेराफेरी कर अयोग्य फर्म को ठेका दिया गया। प्रशासनिक और वित्तीय स्वीकृति के बिना 862 करोड़ रुपये की निविदा स्वीकृत। 56.71 करोड़ रुपये की अधूरी डिजाइन-ड्राइंग के आधार पर भुगतान कर दिया गया। एक ही फर्म से DPR बनवाकर DLB और RUIDP ने दो बार भुगतान किया। ठेकेदार को समय विस्तार देने के बहाने जांच को प्रभावित करने का प्रयास।
क्या RTPP गाइडलाइन की उड़ाई गई धज्जियां?
राजस्थान सरकार द्वारा जारी RTPP (राजस्थान ट्रांसपेरेंसी इन पब्लिक प्रोक्योरमेंट) गाइडलाइन के अनुसार, किसी भी ठेकेदार को उसकी बिड कैपेसिटी से अधिक का ठेका नहीं दिया जा सकता। इसके बावजूद अधिकारियों ने नियमों को ताक पर रखते हुए MVR टेक्नोलॉजी को अनुचित तरीके से ठेके दिए।