Saturday, March 22, 2025
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Chandrayaan-3: जब चांद की सतह पर लैंडर विक्रम ने रखा कदम तो 108.4 वर्ग मीटर में फैल गई दो टन लूनर मिट्टी

Chandrayaan-3 Update: इसरो ने शुक्रवार (27 अक्टूबर 2023) को माइक्रो ब्लॉगिंग साइट पर लिखा, 23 अगस्त को चांद पर लैंडिंग के बाद वहां पर एक इजेक्ट हेलो बन गया है.

Chandrayan 3: 23 अगस्त 2023 को भारत के चंद्रयान-3 के लैंडर विक्रम ने चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुप पर सॉफ्ट लैंडिंग करके इतिहास रच दिया था, लेकिन उस दिन लैंडर के लैंड करते ही दक्षिणी ध्रुप पर एक घटना और हुई थी. विक्रम लैंडर के लैंड करते ही चंद्रमा की सतह पर इतनी लूनर मिट्टी उड़ी कि उसने चांद पर ही एक इजेक्ट हेलो तैयार कर दिया. ये इजेक्ट हेलो क्या होता है हम आपको इसके बारे में विस्तार से बताएंगे.

इसरो ने शुक्रवार को एक्स पर लिखा, चंद्रयान-3 ने 23 अगस्त को चांद पर लैंडिंग करते ही चांद की सतह पर एक इजेक्ट हेलो बना दिया. वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया कि विक्रम लैंडर के लैंड करते ही लगभग 2.06 टन लूनर मिट्टी चांद पर फैल गई.

ISRO Tweets Chandrayaan 3 Is Set To Land On Moon On 23 August After Vikram  Lander Completed Second Deboosting | Chandrayaan 3: चांद से महज कुछ किमी की  दूरी पर चंद्रयान-3 का

क्या होता है इजेक्ट हेलो और क्या है एपिरेगोलिथ?
वैसे तो इसरो ने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट एक्स पर चांद की धरती पर चंद्रयान-3 के लैंडर द्वारा बनाए गए इस‌ इजेक्ट हेलो के बारे में जानकारी दी है, लेकिन आपके दिमाग में यह सवाल जरूर दस्तक दे रहा होगा कि आखिरकार यह इजेक्ट हेलो होता क्या है? या एपिरेगोलिथ भी क्या चीज है? हम आपको सिंपल भाषा में इसके बारे में बताते हैं.

दरअसल चंद्रयान-3 के लैंडर ने जब चांद की धरती पर लैंडिंग की प्रक्रिया शुरू की थी तो इसकी सतह के करीब आते ही वहां मौजूद मिट्टी आसमान में उड़ने लगी थी. चांद की सतह से उड़ने वाली इसी मिट्टी और उसमें मौजूद चीजों को साइंटिफिक भाषा में एपिरेगोलिथ कहते हैं. चांद की धरती की मिट्टी टेलकम पाउडर से भी अधिक पतली है, जो चांद के सतह पर लैंडिंग के समय चंद्रयान-3 के लैंडर में लगे रॉकेट बूस्टर के ऑपोजिट डायरेक्शन में फायर करते ही उड़ने लगी थी. इसी मिट्टी को लूनर मैटेरियल या साइंटिफिक भाषा में एपिरेगोलिथ कहते हैं.

क्यों करनी पड़ी थी रॉकेट बूस्टर की फायरिंग
चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण की वजह से चंद्रयान-3 का लैंडर तेज गति से चंद्रमा की सतह की ओर बढ़ रहा था, क्रैश लैंडिंग से बचाने के लिए इसकी गति धीमी करनी जरूरी थी. इसके लिए इसमें लगे रॉकेट बूस्टर को फायर किया गया था, जिससे वह चंद्रयान-3 के लैंडर को एक खास गति पर ऊपर की ओर धकेल रहा था और दूसरी ओर चांद का गुरुत्वाकर्षण लैंडर को नीचे खींच रहा था.

हालांकि गुरुत्वाकर्षण खिंचाव गति थोड़ी अधिक थी जिसकी वजह से लैंडर सतह की ओर बढ़ रहा था और रॉकेट फायरिंग से ऊपर की ओर धकेले जाने के कारण गति धीरे-धीरे शून्य की ओर बढ़ रही थी. सतह तक पहुंचते-पहुंचते धीरे-धीरे रॉकेट बूस्टर की फायरिंग के जरिए लैंडर की गति शून्य की गई थी और इस दौरान जितना समय लगा था उतनी देर तक चांद की मिट्टी सतह से ऊपर उड़ती रही और लैंडिंग साइट से दूर जाकर फिर चांद के गुरुत्वाकर्षण की वजह से धीरे-धीरे सतह पर गिरती रही.

लैंडिंग के वक्त तक चांद की जमीन पर 108.4 वर्ग मीटर क्षेत्र की करीब 2.5 तन मिट्टी उड़कर अपनी जगह से दूसरी जगह गिरी है. इसकी वजह से इस 108.4 वर्ग मीटर दायरे की जमीन की मिट्टी लगभग उड़ गई है और चांद की सतह का ठोस हिस्सा बचा है जो एक खास स्ट्रक्चर की तरह दिख रहा है. इसका आकार गोल है, इसलिए इसरो ने इसे “इजेक्ट हेलो” नाम दिया है. इसकी तस्वीर चंद्रयान दो के कैमरे से खींची गई है.

प्रज्ञान रोवर-विक्रम लैंडर ने की अहम रिसर्च
23 अगस्त को चांद के दक्षिणी ध्रुवीय हिस्से पर चंद्रयान-3 के लैंडर मे सफल लैंडिंग का इतिहास रचा था. इसके बाद एक चंद्र दिवस यानी धरती के 14 दिनों तक लैंडर से बाहर निकले रोवर प्रज्ञान ने अपने पेलोड्स के जरिए चांद की मिट्टी और सतह पर होने वाली खगोलीय घटनाओं का अध्ययन कर शानदार रिपोर्ट भेजी है.

इसने चांद की मिट्टी में सल्फर, ऑक्सीजन जैसे दुर्लभ तत्वों की मौजूदगी की पुष्टि की है. इसे एक चंद्र दिवस तक काम करने के लिए ही बनाया गया था. उसके बाद फिलहाल चांद की धरती पर लैंडर और विक्रम सुसुप्ता अवस्था में हैं.

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