ईटी-क्रिसिल इंडिया प्रोग्रेस रिपोर्ट में कहा गया है कि कैपिटल एक्सपेंडीचर और प्रोडक्टिविटी में बढ़ोतरी होने की वजह से भारत की सालाना जीडीपी में ये तेजी का रुझान देखा जाएगा.
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए एक रिपोर्ट जारी की है जिसमें इसने कहा है कि भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 2031 तक 7 ट्रिलियन डॉलर का हो जाएगा. इस दौरान देश की जीडीपी की सालाना विकास दर 6.7 फीसदी पर आ जाएगी. इसमें ये भी बताया गया है कि वित्त वर्ष 2025 से लेकर वित्त वर्ष 2031 तक की सालाना जीडीपी कोविड महामारी से पहले के दशक (10 सालों) की औसत विकास दर 6.6 फीसदी के जैसी ही होगी.
इन कारणों से भारत की अर्थव्यवस्था पर दिख सकता है असर
ग्लोबल स्थितियों और जियो-पॉलिटिकल टेंशन में किसी भी तरह की बढ़ोतरी से सप्लाई चेन में बाधा पैदा हो सकती है.
देशों के बीच कारोबार-व्यापार में रुकावट हो सकता है और कच्चे तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं.
वैश्विक परेशानी से देश की महंगाई दर पर असर पड़ सकता है और इनपुट लागत बढ़ सकती है.
केंद्र सरकार की तरफ से राजकोषीय घाटे को कम करने के लिए किए जा रहे कोशिशों का असर भी विकास पर दिखना चाहिए.
रिपोर्ट में मौसम की स्थिति और जियो-पॉलिटिकल अनिश्चितताओं को विकास और महंगाई के लिए प्रमुख रिस्क माना गया है.
इस वित्त वर्ष में कैसी रहेगी भारत की जीडीपी
ईटी-क्रिसिल इंडिया प्रोग्रेस रिपोर्ट के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में भारत की जीडीपी 6.8 फीसदी पर रहने का अनुमान है. इसके पीछे सख्त लेंडिंग नियमों और उच्च ब्याज स्तर के असर से अर्बन डिमांड पर असर देखे जाने का कारण प्रमुख है. रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि मजबूत सर्विस एक्सपोर्ट और रेमिटेंस इनफ्लो की वजह से भारत का करेंट अकाउंट डेफिसिट सेफ जोन में रहेगा, हालांकि साल 2024-25 के दौरान CAD के जीडीपी का 1 फीसदी तक बढ़ने की उम्मीद है जो कि साल 2023-24 में 0.7 फीसदी की तुलना में बढ़ा था.
महंगाई को लेकर क्रिसिल का अनुमान
CPI (कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स) पर आधारित महंगाई दर चालू वित्त वर्ष 2024-25 में ऐवरेज 4.5 फीसदी पर रहने का अनुमान है. पिछले साल के औसत से यानी 5.4 फीसदी से कम का अनुमान है.
कृषि को लेकर ईटी-क्रिसिल इंडिया प्रोग्रेस रिपोर्ट में क्या कहा गया
इस साल खरीफ की बुआई ज्यादा तो हुई लेकिन उम्मीद से ज्यादा बारिश और बेमौसम बरसात के असर का पता लगाया जाना अभी बाकी है और इसकी बड़ी जरूरत है. चालू वित्त वर्ष के बाकी समय में प्रतिकूल मौसम की स्थिति खाद्य महंगाई और कृषि आय के लिए लगातार जोखिम के तौर पर बनी हुई है.