Bastar News: बस्तर में नवमी के दिन मनाई जाने वाली मावली परघाव की रस्म को देखने के लिए बड़ी संख्या लोग पहुंचे. इस दिन दंतेवाड़ा से मावली देवी की डोली को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है.
मावली देवी परघाव की रस्म निभाते बस्तरवासी.
छत्तीसगढ़ के ‘बस्तर दशहरा’ पर्व की महत्वपूर्ण मावली परघाव की रस्म नवरात्रि के नवमी के दिन शिनवार (12 अक्तूबर) को की गई. दो देवियों के मिलन की ये रस्म जगदलपुर दंतेश्वरी मंदिर के परिसर में की गई. परंपरा के अनुसार, इस रस्म में शक्तिपीठ दंतेवाड़ा से मावली देवी की क्षत्र और डोली को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर लाया जाता है, जिसका स्वागत बस्तर के राजकुमार और बस्तरवासियों द्वारा किया जाता है.
हर साल की तरह इस साल भी यह रस्म धूमधाम से मनाई गई. नवरात्रि के नवमी के दिन मनाई जाने वाली इस रस्म को देखने के लिए बड़ी संख्या लोग पहुंचे. मान्यता के अनुसार बीते 600 सालों से इस रस्म को धूमधाम से मनाया जा रहा है. बस्तर के तत्कलीन महाराजा रूद्र प्रताप सिंह द्वारा माई के डोली का भव्य स्वागत किया जाता था, वो परंपरा आज भी वैसे ही निभाई जाती है.
परंपरा के अनुसार देवी मावली कनार्टक राज्य के मलवल्य गांव की देवी हैं, जो छिंदक नागवंशीय राजाओं द्वारा उनके बस्तर के शासन काल में आई थीं. छिंदक नागवंशी राजाओं ने नौंवी से चौदंहवी शताब्दी तक बस्तर में शासन किया. इसके बाद चालुक्य राजा अन्नम देव ने जब बस्तर में अपना नया राज्य स्थापित किया, तब उन्होंने देवी मावली को अपनी कुलदेवी माना.
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मावली देवी का यथोचित सम्मान और स्वागत करने के लिए मावली परघाव रस्म शुरू की गई. इतिहासकारों के मुताबिक, नवमी के दिन दंतेवाड़ा से आई मावली देवी की डोली का स्वागत करने राजा, राजगुरू और पुजारी नंगे पांव राजमहल से मंदिर के प्रांगण तक आते हैं.
इसके बाद उनकी अगुवाई और पूजा अर्चना के बाद देवी की डोली को कंधे पर उठाकर राजमहल में स्थित देवी दंतेश्वरी के मंदिर में लाया जाता है. दशहरे के समापन पर इनकी ससम्मान विदाई होती है.
दंतेवाड़ा में विराजमान मावली माता का जगदलपुर में विराजमान दंतेश्वरी देवी से मिलन कराने वाली इस परंपरा को कई सदियों से बस्तर के राजाओं द्वारा निभाया जाता रहा है. दोनों देवियों के मिलन के बाद यह रस्म पूरी होती है. इस रस्म की खास बात यह होती है कि स्थानीय लोग अपने हाथों में दीये रख मावली माता कि डोली का स्वागत करते हैं.
इस रस्म का मुख्य सार दंतेश्वरी देवी द्वारा मावली माता को दशहरा पर्व के लिए जगदलपुर बुलाना होता है. सदियों से चली आ रही इस रस्म में दोनों देवियों के मिलन के बाद प्रसिद्ध दशहरा पर्व रस्म की शुरूआत की जाती है.