Himachal Pradesh News: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 155वीं जयंती पर पूरा देश ने याद कर रहा है. हिमाचल और खासकर शिमला में बापू से जुड़ी का स्मृतियां हैं.
Gandhi Jayanti 2024: देश भर में आज राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की 155वीं जयंती मनाई जा रही है. पूरा देश आज ‘बापू’ को याद कर रहा है. देश की आजादी में राष्ट्रपिता की महत्वपूर्ण भूमिका रही. हिमाचल प्रदेश के लोगों के लिए राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती और भी ज्यादा खास है.
आजादी से पहले राष्ट्रपिता 10 बार शिमला यात्रा पर आए. वह पहली बार साल 1921 में 12 मई और आखिरी बार साल 1946 में 2 मई शिमला आए थे. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने शिमला में ब्रिटिश हुक्मरानों के साथ कई महत्वपूर्ण वार्ताएं की, जिसका जिक्र इतिहास के पन्नों में दर्ज है.
जनसभा में बारिश के बावजूद जुटे थे 10 हजार लोग
‘गांधी इन शिमला’ नामक पुस्तक के लेखक विनोद भारद्वाज बताते हैं कि साल 1931 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने शिमला के रिज मैदान पर एक जनसभा को संबोधित किया था. यह पहली बार था, जब किसी राष्ट्रवादी नेता ने रिज मैदान पर जनसभा को संबोधित किया हो. इससे पहले सिर्फ ब्रिटिश हुकूमत से जुड़े हुए कार्यक्रम ही रिज पर हुआ करते थे. उस समय के तत्कालीन कांग्रेस नेताओं ने अनुमति लेकर राष्ट्रपिता की जनसभा रिज मैदान पर आयोजित करवाई थी.
भारी बारिश के बावजूद रिज मैदान पर 10 हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ उमड़ी थी. इस जनसभा ने शिमला के लोगों में भी स्वराज के लिए एक नई अलख जगाने का काम किया था. इससे पहले महात्मा गांधी ने जब शिमला में जनसभा की थी, तो वह जनसभा ईदगाह में हुई थी. इसमें 15 हजार से ज्यादा लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी थी.
महात्मा गांधी का लेख- 500वीं मंजिल
साल 1921 में जब महात्मा गांधी पहली बार शिमला आए, तो उन्होंने यहां से जाने के बाद एक लेख लिखा. ‘500वीं मंजिल’ नामक इस लेख में राष्ट्रपिता ने शिमला और पहाड़ों के दर्द को बयां किया था. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी शिमला में चलने वाले मानव रिक्शा से बेहद देख बेहद व्याकुल हो उठे थे. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का मानना था कि यहां इंसान ही इंसान को खींच रहा है और इंसानों के साथ पशुओं जैसा व्यवहार किया जा रहा है. महात्मा गांधी को जो मजबूरी में मानव रिक्शा में बैठना पड़ा, तो वे बहुत दु:खी मन के साथ इसमें सवार हुए थे.
500वीं मंजिल लेख में महात्मा गांधी ने क्या कहा था?
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी यहां सुविधाओं के अभाव को लेकर भी चिंतित थे. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ब्रिटिश शासनकाल के दौरान शिमला को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने के भी पक्षधर नहीं थे. महात्मा गांधी का मानना था कि यह ब्रिटिश हुकूमत के लिए सिर्फ ऐश-ओ-आराम की ही जगह है.
राष्ट्रपिता का कहना था कि यह ठीक वैसा ही है, जैसे बंबई (अब मुंबई) में कोई दुकान 500वीं मंजिल पर खोल दी जाए. राष्ट्रपिता का कहना था कि ब्रिटिश हुक्मरानों को 500वीं मंजिल से पहली मंजिल पर लाना है, ताकि उन्हें वास्तविकता के बारे में पता चल सके.