Monday, November 18, 2024
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खुफिया एजेंसी रोजमर्रा की चीजों को कैसे बना रहीं हथियार, लेबनान पेजर ब्लास्ट पर एक्सपर्ट ने किया बड़ा खुलासा

Pager Blast: लेबनान के अंदर हजारों पेजर फटे, इसके दूसरे दिन वॉकी-टॉकी फटने लगे. इस तरह से किए गए हमले इतने खतरनाक थे कि पूरे लेबनान में अफरा-तफरी मच गई. एक्सपर्ट ने इस हमले पर अपनी राय रखी है.


Lebanon Pager Blast: लेबनान में हुए पेजर ब्लास्ट और वॉकी-टॉकी धमाकों की इस समय पूरी दुनिया में चर्चा है. लेबनान के भीतर हिजबुल्लाह के लड़ाके जिस पेजर को सुरक्षित समझ रहे थे, वही उनकी मौत का सामान बन गए. जब देशभर में एक साथ हजारों पेजर में विस्फोट हुआ तब लोगों को पता चला कि ये पेजर विस्फोटक से भरे थे. माना जा रहा है कि इजरायल की जासूसी एजेंसियां इस हमले के लिए असली जिम्मेदार हैं, क्योंकि हिजबुल्लाह और इजरायल एक-दूसरे के पर लंबे समय से हमला कर रहे हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि यह पहली बार नहीं है, जब किसी रोजमर्रा की वस्तु को हथियार बनाया गया, इसके पहले भी इस तरह के एक से बढ़कर एक मामले सामने आ चुके हैं. 

ब्रिटेन के पूर्व खुफिया अधिकारी फिलिप इनग्राम ने द सन से बातचीत में इस बात का खुलासा किया है कि किस तरह से खुफिया एजेंसियां रोजमर्रा की वस्तुओं को हथियार बनाती हैं. उन्होंने कहा कि हमने अपने समय में खिलौनों को विस्फोटक से लैस देखा है. इसके अलावा लंदन की सड़कों पर जहरीली गोलियों वाले छाते देखे हैं. उन्होंने कहा कि युद्ध में इस तरह के हथियार नई बात नहीं है. जासूसी एजेंसियां इसी तरीके से अपने दुश्मनों को निशाना बनाती हैं. 

इजरायल की एजेंसी किस तरह करती है काम?
इजरायली एजेंसियों को फिलिस्तीन में इस तरह के ऑपरेशन के लिए जाना जाता है. साल 1996 में इजरायल ने हमास के याह्या एयाश को एक बम-जाल डिवाइस से मारा था. उस समय इजरायल की खुफिया एजेंसी शिन बेट ने याह्या एयाश तक मोटोरोला का एक सेलफोन पहुंचाया था, जिसमें हुए विस्फोट में वह मारा गया था. फोन के अंदर 50 ग्राम विस्फोटक था, याह्या के कॉल उठाने पर वह फट गया था. इसी तरह से साल 2008 में इजरायल ने हिजबुल्लाह के इमाद मुगनीह को उसकी सीट के हेडरेस्ट में विस्फोटक लगाकर उड़ा दिया था. 

अमेरिका की ‘हार्ट अटैक गन’
खुफिया हत्या के मामले में अमेरिका की एजेंसियों का भी काफी नाम है. साल 1975 में अमेरिकी एजेंसी सीआईए के पास एक ऐसा हथियार था, जो हत्या करने बाद अपना निशान तक नहीं छोड़ता था. इस डिवाइस से मौत के बाद जांच रिपोर्ट में मौत की वजह हार्टअटैक आती थी, जबकि शख्स की हत्या की जाती थी. 

किस ऑफ डेथ वाली लिपिस्टिक
इसके अलावा किस ऑफ डेथ वाली लिपिस्टिक की भी एक समय काफी चर्चा में थी. साल 1965 में पश्चिम बर्लिन की चौकी पर अमेरिका ने एक केजेबी एजेंट को लिपिस्टिक ट्यूब ले जाते पकड़ा था. यह लिपिस्टिक ट्यूब वास्तव में बंदूक थी. इस डिवाइस को लिपिस्टिक ट्यूब के साथ फिट किया जाता था. इसी वजह से इस डिवाइस का नाम ‘किस ऑफ डेथ’ पड़ गया. शीत युद्ध के दौरान की इस डिवाइस को वाशिंगटन डीसी के जासूसी संग्रहालय में रखा गया है. 

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