UP News: यूपी में नेम प्लेट लगाने के आदेश के लगातार विपक्षी नेता इस पर सवाल उठा रहे थे. एनडीए की सहयोगी दल रालोद ने भी इस आदेश का खुलकर विरोध किया था. वहीं इस विरोध के कई सियासी मायने निकाले जा रहे.
Name Plate Controversy: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कार्यालय द्वारा कावड़ यात्रा में कांवड़ियों को लेकर दुकानों और ढाबों के आगे नेम प्लेट लगाने के आदेश के बाद उत्तर प्रदेश में सियासत तेज हो गई थी. विपक्षियों ने योगी आदित्यनाथ पर खूब निशाना साधा था तो वहीं सहयोगी दलों के नेता भी इस बारे में बोलते नजर आए. सहयोगी दलों की ओर से बड़े-बड़े बयान आए. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (22 जुलाई) को कांवड़ रूट नेम प्लेट वाले आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि दुकानदार दुकानों पर सिर्फ खाने का नाम लिखें. कांवड़ रूट नेम प्लेट वाले मामले पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यूपी, एमपी और उत्तराखंड सरकार को नोटिस भी जारी किया.
एनडीए के सहयोगी दलों में से एक रालोद पार्टी ने भी इसका विरोध किया था. लरालोद पार्टी के अध्यक्ष के इस तरह बयान देने के सियासी मायने भी तलाशे जा रहे है. पश्चिमी यूपी में जाट और सैनी वोट के बाद मुस्लिम मतदाताओं की भी बड़ी भूमिका रहती है. यही कारण है कि रालोद इन मतदाताओं को नाराज नहीं करना चाहती है. बता दें कि मीरापुर और खैर विधानसभा सीट पर उपचुनाव होना है. जिसको लेकर पार्टी तैयारी भी कर रही है. ऐसे में रालोद मुस्लिम मतदाताओं को भी नाराज नहीं करना चाहती.
‘यह हमारा विरोध नहीं बल्कि सुझाव’
वहीं इस मामले पर रालोद पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री त्रिलोक त्यागी ने कहा कि फल,चाय , खाने की दुकानों पर नाम लिखने का आदेश ठीक नहीं है. यह हमारा विरोध नहीं बल्कि सुझाव है. क्योंकि जाति और धर्म के आधार पर लोगों को बांटना ठीक नहीं है. हम इसके पक्ष में नहीं है. महात्मा गांधी और चौधरी चरण सिंह भी हिंदू किसान और मुसलमान किसान में भेद नहीं करते थे. हम एनडीए और सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ है. लेकिन यह फैसला अधिकारियों का है और गलत भी है. दुकानें शाकाहारी या मांसाहारी इसकी पहचान होनी चाहिए.
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