दुनिया की आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है. एक अनुमान के अनुसार, पृथ्वी पर इंसान 2050 तक 9.8 अरब तक हो जाएंगे. ऐसे में हर इंसान की प्रोटीन की जरूरत को पूरा करना लगभग असंभव हो जाएगा.
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए इंसानों को प्रोटीन की जरूरत होती है. खासतौर से जो लोग बॉडी बिल्डिंग करते हैं और मसल्स ज्यादा ग्रो करने की कोशिश करते हैं, उन्हें तो रोजाना प्रोटीन की मात्रा आम इंसान से ज्यादा चाहिए होती है. ऐसे में लोग प्रोटीन पाउडर का सहारा लेते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि अब कुछ देशों में प्रोटीन पाउडर बनाने के लिए कीड़ों का इस्तेमाल हो रहा है.
कौन बना रहा कीड़ों से प्रोटीन पाउडर
दरअसल, इजरायल की एक कंपनी अब टिड्डों की मदद से प्रोटीन पाउडर और प्रोटीन बार बना रही है. इस कंपनी को चलाने वाले बिजनेस मैन तामीर बीबीसी से बातचीत करते हुए कहते हैं कि इन टिड्डों से बने प्रोडक्ट का स्वाद अखरोट, मशरूम, कॉफी या चॉकलेट जैसा होता है. तामीर कहते हैं कि ऐसा नहीं है कि टिड्डे खाने की हम कोई नई परंपरा लेकर आ रहे हैं. अरब के लोग इसे लंबे समय से खाते रहे हैं. इसके अलावा एशिया, अफ्रीका और मध्य अमेरिका के लोग भी लंबे समय से प्रोटीन के लिए कीड़े खाते रहे हैं.
बढ़ती आबादी के लिहाज से बेहतर
एक्सपर्ट्स दावा करते हैं कि प्रोटीन का इस तरह का सोर्स इंसानियत और पर्यावरण दोनों के लिए बेहतर है. दरअसल, दुनिया की आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है. एक अनुमान के अनुसार, पृथ्वी पर इंसान 2050 तक 9.8 अरब तक हो जाएंगे. ऐसे में हर इंसान की प्रोटीन की जरूरत को पूरा करना लगभग असंभव हो जाएगा. अगर इतने लोगों के लिए जानवरों को काटा गया तो इससे पर्यावरण में कार्बन फुटप्रिंट बढ़ेंगे और मेथेन का उत्सर्जन भी बढ़ेगा जो धरती के लिए किसी भी लिहाज से बेहतर नहीं है. ऐसे में प्रोटीन के लिए इन कीड़ों को सहारा लेना गलत नहीं होगा.
कीड़ों की खेती
ऐसा नहीं है कि प्रोटीन बनाने के लिए सिर्फ टिड्डियों का इस्तेमाल हो रहा है. बल्कि, इसके लिए अब अन्य तरह के कीड़ों का भी इस्तेमाल होने लगा है. सबसे बड़ी बात कि इस तरह का प्रोटीन तैयार करने वाली कई कंपनियां अब इन कीड़ो की खेती करने लगी हैं. जो हर महीने कई गुना कीड़े अपने लैब में तैयार करती हैं और फिर उन्हें प्रोसेस कर के उनसे प्रोटीन पाउडर, बार और अन्य तरह के प्रोडक्ट तैयार कर लेती हैं. अब तक इस तरह के प्रोडक्ट भारत जैसे देश में लोकप्रिय नहीं हुए हैं, लेकिन पश्चिम और कुछ एशियाई देशों में इनकी डिमांड बढ़ने लगी है.