लोकसभा चुनाव के लिए अब 15 से भी कम दिन बचे हैं. लगभग सभी पार्टियां अपनी तैयारियां पूरी कर चुकी हैं. मगर अखिलेश यादव इस मामले में थोड़ा पीछे दिख रहे हैं.
क्या अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव को लेकर इस बार ज्यादा प्रेशर में हैं? यूपी के सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा 3 वजहों से चल रही है. पहली वजह पिछले 60 दिन के भीतर अखिलेश यादव अपने 9 उम्मीदवार बदल चुके हैं.
अखिलेश यादव ने अब तक मुरादाबाद, मेरठ, बिजनौर, बागपत, बदायूं, मिश्रिख, नोएडा, संभल और खजुराहो में प्रत्याशी बदल चुके हैं. मेरठ, नोएडा, मिश्रिख और मुरादाबाद में तो 3-3 बार नाम घोषित किए गए हैं?
चर्चा की दूसरी वजह सपा का चुनावी कैंपेन का शुरू न होना है. समाजवादी पार्टी ने अब तक लोकसभा चुनाव को लेकर कैंपेन की शुरुआत नहीं की है. न ही पार्टी की ओर से कोई टाइटल सॉन्ग जारी किया गया है.
तीसरी और बड़ी वजह बड़े सीटों पर उम्मीदवार घोषित नहीं करना है. सपा ने जौनपुर, कन्नौज जैसी सीटों पर अब तक उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं.
अखिलेश बार-बार उम्मीदवार क्यों बदल रहे?
सपा ने उम्मीदवार बदलने का सिलसिला तीसरी लिस्ट से शुरू किया. तीसरी लिस्ट में सपा ने पहले बदायूं से धर्मेंद्र यादव का टिकट काटकर शिवपाल यादव को मैदान में उतारा था. धर्मेंद्र को पार्टी ने उस वक्त आजमगढ़ का प्रभारी बनाया था.
इसके बाद सपा ने मेरठ, मुरादाबाद, मिश्रिख, बागपत और बिजनौर जैसी अहम सीटों पर भी उम्मीदवार बदलने का एलान कर दिया.
सबसे ज्यादा ड्रामा मेरठ और मुरादाबाद सीट को लेकर देखने को मिला. मुरादाबाद में सपा ने पहले एसटी हसन को उम्मीदवार बनाया, लेकिन आजम खान के दबाव में उनका टिकट काटकर रुची वीरा को टिकट देने का ऐलान कर दिया.
हालांकि, अखिलेश यादव ने फिर से रुचि वीरा के बदले एसटी हसन को उम्मीदवार बनाने की घोषणा की, लेकिन आखिर में रुचि वीरा टिकट लेने में कामयाब रहीं.
इसी तरह मेरठ में पहले पार्टी ने भानु प्रताप सिंह को उम्मीदवार बनाया, लेकिन स्थानीय कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद अतुल प्रधान को टिकट दिया गया. हालांकि, आखिर वक्त में योगेश वर्मा अपनी पत्नी सुनीता के लिए सिंबल लेने में सफल रहे.
कहा जा रहा है कि कम से कम 2 सीटों पर अभी और उम्मीदवार बदला जा सकता है. इनमें बदायूं जैसी हाई-प्रोफाइल सीट शामिल हैं. ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर अखिलेश एक बार में ही टिकट को लेकर फैसला क्यों नहीं कर पा रहे हैं?
कन्नौज-जौनपुर जैसी सीटों पर अब तक कैंडिडेट नहीं
समाजवादी पार्टी ने अब तक कन्नौज और जौनपुर जैसी परंपरागत सीटों पर उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है. कन्नौज से अखिलेश यादव के चुनाव लड़ने की चर्चा है. अखिलेश यहां से लोकसभा के सांसद भी रह चुके हैं.
हाल ही में अखिलेश यादव ने कन्नौज का दौरा भी किया था, लेकिन उसके बाद भी पार्टी प्रत्याशी यहां घोषित नहीं कर पा रही है?
इसी तरह का हाल जौनपुर में है. जौनपुर सपा का मजबूत गढ़ माना जाता है, लेकिन आंतरिक गुटबाजी की वजह से पार्टी ने अब तक यहां उम्मीदवार नहीं उतारे हैं.
बलिया, कैसरगंज और संत कबीरनगर में भी सपा ने अब तक उम्मीदवार घोषित नहीं किए हैं.
अब तक कैंपेन की शुरुआत भी नहीं की, 14 दिन बाद वोटिंग
अखिलेश यादव ने अब तक कैंपेन की शुरुआत भी नहीं की है, जबकि पहले चरण के मतदान में सिर्फ 14 दिन बाकी है. यूपी में 8 सीटों पर पहले चरण में ही मतदान प्रस्तावित है.
पिछली बार सपा ने मार्च में ही कैंपेन शुरू कर दिया था. इतना ही पिछले चुनाव के दौरान अप्रैल के पहले हफ्ते में मायावती और अजित सिंह के साथ अखिलेश यादव ने संयुक्त रैली की थी.
अखिलेश इस बार कांग्रेस के साथ गठबंधन में हैं, लेकिन संयुक्त रैली की कोई सुगबुगाहट नहीं है. यूपी की जिन 8 सीटों पर पहले चरण का चुनाव प्रस्तावित है, वहां पिछली बार सपा गठबंधन में बेहतरीन परफॉर्मेंस किया था.
घर की लड़ाई भी नहीं संभाल पा रहे अखिलेश
सपा की अंदरुनी झगड़ा फिर से बाहर आ गया है. रामपुर और मुरादाबाद में तो पार्टी की आंतरिक लड़ाई सोशल मीडिया पर भी दिखने लगी. मुरादाबाद से जब एसटी हसन का टिकट कटा तो राज्यसभा सांसद जावेद अली ने एक पोस्ट सोशल मीडिया पर कर दिया.
अली ने अपने एक्स पर लिखा- नवाबों के दौर में भी मुरादाबाद रामपुर का गुलाम नहीं रहा.
अली का यह पोस्ट सोशल मीडिया पर खूब वायरल हुआ. इसकी 2 वजहें थी. पहला अली अखिलेश यादव के काफी करीबी माने जाते हैं और दूसरा आजम खान के खिलाफ अली की यह खुली बगावत थी.
दूसरी तरफ आजम गुट के असीम राजा ने भी शक्ति दिखाने के लिए रामपुर से पर्चा दाखिल कर दिया. पूरे विवाद में अखिलेश की कार्यशैली पर खूब सवाल उठे.
यूपी की 62 और एमपी की एक सीटों पर चुनाव लड़ रही है सपा
समाजवादी पार्टी इंडिया गठबंधन में शामिल है और समझौते के तहत पार्टी उत्तर प्रदेश की 62 और मध्य प्रदेश की एक सीट पर चुनाव लड़ रही है. यूपी में समझौते के तहत सपा ने 17 सीटें कांग्रेस और एक सीट तृणमूल को दी है.
मध्य प्रदेश में उसे खजुराहो की सीट मिली है. खजुराहो यादव बाहुल्य इलाका है. सपा ने यहां से मीरा यादव को उम्मीदवार बनाया है, लेकिन उनका पर्चा खारिज हो चुका है.
कहा जा रहा है कि अब सपा यहां किसी निर्दलीय उम्मीदवार को टिकट दे सकती है.