Wednesday, November 13, 2024
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 भारतीय संगीत में घरानों का इतिहास और इनका क्या है मतलब?

हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के गायन के लिये प्रसिद्ध घरानों में आगरा, ग्वालियर, इंदौर, जयपुर, किराना, और पटियाला शामिल है.

अक्सर जब हम संगीत की बात करते हैं तो ‘घराना’ का नाम सबसे पहले आता है. आज भारत में ग्वालियर घराना, पंजाब घराना जैसे संगीत से जुड़े कई अलग अलग घराने मशहूर हैं.

आमतौर पर अगर किसी भी गायक, वादक के नाम के साथ किसी समृद्ध घराने का नाम जुड़ा होता है तो संगीत की जगत में उसका सम्मान बढ़ जाता है. 

लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर ये घराना है क्या और इसका संगीत की दुनिया से क्या ताल्लुकात है. इस रिपोर्ट में विस्तार से समझते हैं कि यह घराना है क्या और अस्तित्व में कैसे आया…

क्या होता है घराना
घराने को आमतौर पर संगीत के स्कूल या कलाकारों के समूह को कहा जाता है. दरअसल संगीत ऐसी कला है जिसे कोई भी व्यक्ति एक दिन, एक महीने या एक साल में नहीं सीख सकता. यह वर्षों का संघर्ष मांगता है और जब गायक या वादक की उम्र बीतने लगती है, तो उनके साथ ही उनका संगीत भी अनुभवी और उम्रदराज होने लगता है.  

बाद में उनकी इसी विशिष्ट शैली को उनके शिष्य अपना लेते हैं और फिर वे उनके शिष्यों को भी उसी विशिष्ट शैली में शिक्षा देते हैं. धीरे-धीरे यह एक चेन बन जाता है और इसी को घराने की संज्ञा दी गई है. हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत के गायन के लिये प्रसिद्ध घरानों में आगरा, ग्वालियर, इंदौर, जयपुर, किराना, और पटियाला शामिल है.

इसे उदाहरण के तौर पर ऐसे समझे की हर एक्टर के एक्टिंग का एक अपना स्टाइल होता है. ठीक वैसे ही हर संगीतकार का धुन बनाने का भी अपना अलग अंदाज होता है. अगर आप संगीत प्रेमी है तो कई बार आपको सुनकर ही समझ आ जाता होगा कि ये धुन किस संगीतकार की हो सकती है. क्योंकि हर संगीतकार का अपना अलग अंदाज होता है. 

ऐसे ही अलग अलग घराने भी अपना अंदाज समेटे होते हैं, भारत के अलग अलग संगीत घरानों ने अपना ही एक अलग गायन और वादन शैली का निर्माण किया है.

एक घराना स्थापित होने में लग जाती है कई पीढ़ियां 

महान संगीतकारों, गायक और वादकों पर लिखी गई एक पुस्तक वाह उस्ताद में लेखक प्रवीण कुमार ने घराने को लेकर कहा कि ऐसा नहीं है कि किसी भी घराने में कुछ एक सालों में ही परिपक्वता आ जाती है. बल्कि उन्हें स्थापित करने में कई पीढ़ियां लग जाती हैं. 

उन्होंने इसी किताब में लिखा कि घरानों में मर्यादा का खास ख्याल रखा जाता है और यहां अनुशासन का काफी महत्व भी होता है. अगर अनुशासन भंग हो तो जीवन भर के लिए किसी संगीत साधक को उस घराने से दूर होना पड़ सकता है. 

आज के विपरीत 18वीं शताब्दी से पहले लोग संगीत सिर्फ अपने मनोरंजन के लिए नहीं सुनते थे, बल्कि इस कला का सम्मान सबसे ज्यादा किया जाता था , उस वक्त इन घरानों की काफी प्रतिष्ठा थी और एक घराना अपनी विशिष्ट गायकी को दूसरे घराने के प्रभाव से बचाकर रखते थे. 

पहले एक गायक गलती से भी किसी और के घराने की गायकी नहीं गाते थे. न ही वे अपने गुरु के अलावा किसी और घराने के गुरु से संगीत सीखने की कोशिश करते थे. घरानों में यह नियम भी हुआ करता था कि एक शिष्य केवल एक ही घराने के गुरु से शिक्षा ले सकते है.  

घराने का गंड़ बंधन रस्म 

संगीत घराने में गुरु और शिष्यों से बीच गंडा बंधन रस्म हुआ करता था. इस रस्म के दौरान एक छोटा-सा संगीत सम्मेलन आयोजित किया जाता था और उस सम्मेलन में अन्य घराने के सारे संगीतज्ञ मौजूद होते थे. इस रस्म के दौरान गुरु अपने शिष्य की बांह पर एक ताबीज़ बांधा करते थे, जिसे गंडा बांधन कहा जाता था.  

इस ताबीज या धागे को बांधने के बदले शिष्य अपने गुरु को दक्षिणा भेंट करत थे. हालांकि गुरु ये रस्म तभी करते थे जब उन्हें लगता था कि उनका शिष्य उनकी कला को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी उठा सकता है.

इस गंडा को बांधने का अर्थ होता है कि अब शिष्य एक ही गुरु से संगीत शिक्षा ग्रहण करें. इसके बाद अगर कोई शिष्य अपने गुरु को बदलने की कोशिश करता है तो उसे कोई भी अपना शिष्य नहीं बनाता था.

कैसे होता था घराने का निर्माण 

किसी भी संगीत सिखाने वाले जगह को घराना तब ही माना जा सकता है, जब उसमें कम से कम तीन पीढ़ियों तक संगीत की धारा का प्रवाह हो.

इसके साथ ही संगीत के सभी घराने का एक अपना एक अलग कलात्मक अनुशासन होता है. अलग अलग घरानों में विशेष गायन-शैलियां, विशेष राग और उनकी विशेष बंदिशें अलग-अलग होती हैं. 

कुछ घरानों ने ख़्याल शैली को अपनाया तो कुछ घरानों ने ध्रुपद-धमार गायन शैली को अपनी विशेषता बना ली. कुछ घराने धमार तो कुछ ठुमरी शैली को अपनाते हैं. 

क्यों जरूरी है ये घराने 

वर्तमान में संगीत के घराने हमारे संगीत को सुरक्षित रखने का एक मात्र स्तम्भ हैं, इन घरानों की वजह से ही आज भी हम उस तरह की संगीत को सीख या समझ पा रहे हैं तो हमारे पूर्वजों ने शुरू की थी. 

देशी राज्य और रजवाड़े संगीत के पोषक और संरक्षक रहे हैं. इस विषय में कुछ राज्यों और रियासतों ने अधिक ख्याति पाई है, जैसे पटियाला, बड़ौदा, इंदौर, जयपुर, ग्वालियर, मैसूर, रामपुर, लखनऊ, बनारस आदि. 

प्रसिद्ध गायकी के कुछ प्रमुख शैलियां

हिंदुस्तानी संगीत में गायन की दस मुख्य शैलियाँ हैं. इन शैलियों के नाम हैं- ध्रुपद, धमार, होरी, ख्याल, टप्पा, चतुरंग, रस सागर, तराना, सरगम  और ठुमरी. 

ध्रुपद

हिंदुस्तानी संगीत की ये शैली अब तक की सबसे पुरानी और भव्य शैली में से एक है. यह नाम ध्रुव और पद शब्दों से मिलकर बना है. कहा जाता है कि अकबर के शासनकाल में तानसेन ने अपनी इसी संगीत की शैली का प्रदर्शन किया था. इसके अलावा बैजू बावरा से लेकर ग्वालियर के राजा मान सिंह तोमर के दरबार तक ध्रुपद गाने वाले प्रवीण गायकों के साक्ष्य मिलते हैं. 

मध्यकाल में ध्रुपद शैली गायन की प्रमुख विधा बन गई थी लेकिन 18वीं शताब्दी तक आते आते ये हाशिये की स्थिति में पहुंच गई. ध्रुपद शैली के गानों में संस्कृत के अक्षरों का उपयोग किया जाता है और इसका उद्गम मंदिरों से हुआ है. 

डागरी घराना

संगीत की इस शैली में आलाप पर पर ज्यादा जोर दिया जाता है. इस घराने से प्रशिक्षित संगीतकार डागर वाणी में गायन करते हैं. डागर मुसलमान गायक होते हैं, लेकिन सामान्यतः हिंदू देवी-देवताओं के पाठों का गायन करते हैं.  

दरभंगा घराना

इस घराने में ध्रुपद खंडार वाणी और गौहर वाणी में गाना गाया जाता है. इस शैली के संगीतकार रागालाप पर बल देते है और साथ ही तात्कालिक आलाप पर गीतों की रचना करते हैं 

इस शैली का प्रतिनिधि मलिक परिवार है. इस घराने के मशहूर गायकों में राम चतुर मलिक, प्रेम कुमार मलिक और सियाराम तिवारी का नाम शामिल है.  

बेतिया घराना

यह घराना सिर्फ परिवार के भीतर प्रशिक्षित लोगों को ज्ञात कुछ अनोखी तकनीकों वाली ‘नौहर और खंडार वाणी’ शैलियों का प्रदर्शन करता है. इस शैली का प्रतिनिधि मिश्र परिवार है. 

ख्याल शैली के घराने 

ग्वालियर घराना- यह सबसे पुराने और सबसे बड़े खयाल घरानों में शामिल है. यहां सीखने आए शिष्यों को काफी कठोर नियमों का पालन करता है क्योंकि यहां रागमाधुर्य और लय पर समान बल दिया जाता है. इस घराने के सबसे ज्यादा लोकप्रिय गायक नाथू खान और विष्णु पलुस्कर हैं. 

किराना घराना- इस घराने का नाम राजस्थान के ‘किराना’ गांव के नाम पर रखा गया है और इसके स्थापक नायक गोपाल थें. हालांकि 20वीं सदी की शुरुआत में इसे लोकप्रिय बनाने का श्रेय अब्दुल करीम खान और अब्दुल वाहिद खान को जाता है.

इस घराने में धीमी गति वाले राग की प्रशिक्षण दी जाती है.  इस शैली के कुछ प्रसिद्ध गायकों में पंडित भीमसेन जोशी और गंगू बाई हंगल जैसे महान कलाकार शामिल हैं. 

आगरा घराना- इतिहासकारों की मानें तो इस घराने की स्थापना 19वीं सदी में खुदा बख्श ने की थी, लेकिन संगीतविदों का मानना है कि इसके संस्थापक हाजी सुजान खान थे. हालांकि इस घराने को फैयाज खान पुनर्जीवित करने का काम किया था, जिसके बाद इसका नाम रंगीला घराना पड़ गया. वर्तमान में इस शैली के प्रमुख गायकों में सी.आर. व्यास और विजय किचलु जैसे महान गायक आते है. 

पटियाला घराना- 19वीं सदी में बड़े फतेह अली खान और अली बख्श खान ने इस घराने की शुरुआत की थी. इस घराने को पंजाब में पटियाला के महाराजा का समर्थन भी मिला हुआ है. इस घराने में बृहत्तर लय के उपयोग पर बल का प्रशिक्षण दिया जाता है. 

इस घराने के सबसे प्रसिद्ध संगीतकार बड़े गुलाम अली खान साहब थे. उन्हें भारत के प्रसिद्ध हिन्दुस्तानी शास्त्रीय गायकों में से एक कहा जाता है.  यह घराना तराना शैली के अद्वितीय तान, गमक और गायकी के लिये प्रसिद्ध है.

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