Friday, September 20, 2024
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 दिल्ली, लखनऊ और पटना वालों पानी को लेकर संभल जाओ; झीलों के शहर बेंगलुरु जैसा हाल न हो जाए

बेंगलुरु में पानी का यह संकट अचानक से नहीं आया है. इसके पीछे 50 साल की लापरवाही और माफियाओं का अनैतिक गठजोड़ है.  इसी गठजोड़ की वजह से झीलों का शहर बेंगलुरु आज जल संकट की वजह से चर्चा में है. 

गर्मी बढ़ते ही पानी की कमी ने कर्नाटक के बेंगलुरु में हाहाकार मचा दिया है. शहरवासियों को पीने के पानी के लिए 24-24 घंटे का इंतजार करना पड़ रहा है.  हालांकि, यह इंतजार भी पानी की कमी को पूरा कर पाने में असमर्थ है. 

बेंगलुरु प्रशासन के मुताबिक जल संकट आने वाले वक्त में और ज्यादा बढ़ेगा क्योंकि दक्षिण के इस राज्य में जुलाई के आखिर तक गर्मी रहती है और बारिश से पहले इस संकट को दूर करना लगभग असंभव है.

बेंगलुरु में पानी का यह संकट अचानक से नहीं आया है. इसके पीछे 50 साल की लापरवाही, सरकार और माफिया का अनैतिक गठजोड़ है.  इसी की वजह से कभी झीलों का शहर कहा जाने वाल बेंगलुरु आज जल संकट की वजह से चर्चा में है. 

इस स्टोरी में यह संकट कितना बड़ा है और क्यों आया इसे विस्तार से जानेंगे, लेकिन बेंगलुरु में पानी संकट है, वो पटना, दिल्ली और लखनऊ जैसे बड़े शहरों के लिए एक चेतावनी है. इस चेतावनी को अगर समय रहते नहीं समझा गया तो आने वाले वक्त में इन शहरों का हाल भी बेंगलुरु जैसा हो सकता है. 

बेंगलुरु में कितना बड़ा है जल संकट?
कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु पिछले 15 दिनों से जल संकट से जूझ रहा है. रोटेशनल तरीके से लोगों को टैंकर के जरिए पानी पहुंचाया जा रहा है. मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के आवास में भी टैंकर से ही पानी पहुंचाया जा रहा है.

होली के मौके पर सरकार ने पानी को लेकर एडवाइजरी जारी किया था. रिपोर्ट्स के मुताबिक एडवाइजरी के उल्लंघन की वजह से 22 लोगों पर 1-1 लाख का जुर्माना लगाया गया है.

स्थानीय मीडिया के मुताबिक पानी की कमी की वजह से टैंकर के भाव दिनों-दिन बढ़ गए हैं. बेंगलुरु में एक टैंकर पानी की कीमत करीब 12 हजार रुपए हैं, जो पहले 800-1000 रुपए था. 

बेंगलुरु में क्यों आया जल संकट?
बड़ा सवाल है कि कभी लेक सिटी (झीलों का शहर) कहा जाने वाला बेंगलुरु कैसे पानी के संकट से जूझ रहा है. आइए इसे विस्तार से समझते हैं-

1. झीलों के हालात काफी खराब-  1970 के दशक में बेंगलुरु को झीलों का शहर कहा जाता था. इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के मुताबिक 1961 तक बेंगलुरु में 271 छोटी-बड़ी झीलें थीं, जो अब सिर्फ 100 के करीब बची हैं वो भी प्रदूषण की वजह से खराब स्थिति में है. 

2023 में बेंगलुरु प्रदूषण बोर्ड ने एक रिपोर्ट जारी की थी. इसके मुताबिक 19 झीलें ऐसी थीं, जिसके पानी को ई-कैटेगरी (बिल्कुल भी पीने लायक नहीं) में रखा गया था. 79 झीलों की स्थिति ठीक थी, लेकिन उसका पानी ई-कैटेगरी के करीब ही था. 

जानकारों का कहना है कि 2 वजहों से बेंगलुरु में झीलों के ये हालात बने हुए हैं- 

  • भू-माफिया द्वारा अधिकांश झील पर अतिक्रमण कर लिया गया है, जिसे हटाने में बेंगलुरु प्रशासन अब तक नाकाम रहा है. 
  • जो झीलें बच गई हैं, वहां सीवेज का पानी जा रहा है. बेंगलुरु ऑथोरिटी सीवेज को रोकने के लिए कोई खास इंतजाम नहीं कर पाई है.

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के मुताबिक झीलों के न होने की वजह से भू-जल का स्तर काफी गिर गया है, जिस वजह से बेंगलुरु शहर में पीने की पानी का संकट आ गया है.

2. मॉनसून की वजह से कावेरी का जलस्तर घटा- बेंगलुरु में पानी का मुख्य स्रोत कावेरी नदी है, लेकिन इस बार मॉनसून की वजह से इसका जलस्तर काफी घट गया है. बेंगलुरु शहर को कावेरी का पानी कृष्णा राजा सागर (केआरएस) के जरिए मिलता है. 

डाउन टू अर्थ के मुताबिक कावेरी में पानी कम होने की वजह से केआरएस से सिर्फ 75 प्रतिशत पानी का प्रवाह बेंगलुरु शहर में हो रहा है. बेंगलुरु शहर में पहले कावेरी से 145 करोड़ लीटर पानी प्राप्त होता था, जो अब करीब 100 करोड़ लीटर के आसपास ही मिल रहा है. 

मौसम विभाग के मुताबिक बेंगलुरु शहर में 1973 के बाद पहली बार सबसे कम बारिश हुई है. जानकारों का कहना है कि सरकार ने पहले से पानी को स्टोर करने के लिए कोई खास तरीका नहीं अपनाया, जिससे यह स्थिति बन गई.

3. बोरवेल से भी नहीं आ रहा है पानी- बेंगलुरु में भू-जल स्तर में कमी होने की वजह से बोरवेल में भी सही से पानी नहीं आ रहा है. बेंगलुरु और उसके आसपास करीब 4 लाख बोरवेल है, जिससे 55 करोड़ लीटर पानी की आपूर्ति अब तक हो रही थी. 

पानी की कमी को देखते हुए बेंगलुरु जल आपूर्ति और सीवरेज बोर्ड ने सभी बोरवेल को नियंत्रण में लेने का फैसला किया है. डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार के मुताबिक बेंगलुरु शहर में करीब 7 हजार बोरवेल सूख गए हैं, जिससे पानी की समस्या और गहरी हो गई है. 

बेंगलुरु जल आपूर्ति बोर्ड ने पानी की समस्या को ठीक करने के लिए एआई टेक्नोलॉजी का सहारा लेने का ऐलान किया है. बोर्ड का कहना है कि बोरवेल के लिए हम इस तकनीक का सहारा लेंगे, जिससे पानी की आपूर्ति निर्बाध रहे. 

4. शहरीकरण भी बड़ी समस्या- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के मुताबिक 1951 में जब मैसूर रियासत थी, उस वक्त बेंगलुरु का कुल क्षेत्र 60 स्कॉयर किलोमीटर था, जो 2011 तक स्कॉयर 741 किलोमीटर हो गया.

यानी बेंगलुरु के शहरीकरण में पिछले 60 सालों में करीब 1005 गुना की बढ़ोतरी हुई है. 

बेंगलुरु शहर देश का सबसे बड़ा आईटी हब है और यहां करीब 67 हजार कंपनियां कार्य करती है. शहर में निवासियों की संख्या वर्तमान में करीब 1.5 करोड़ है.

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