प्रदूषण का खतरनाक स्तर नाक, कान के जरिए हमारे ब्लड तक पहुंचता है और उसे बीमार कर देता है. यह फेफड़े, हार्ट और सांस के लिए जानलेवा है.दुनिया भर में प्रदूषण से मौत का आंकड़ा भी काफी ज्यादा है.
Pollution Side Effects : दिल्ली की हवा एक बार फिर जहरीली होती जा रही है. रविवार को 6 साल में सबसे ज्यादा प्रदूषण राजधानी की हवा में घुली हुई मिली. इससे हर किसी की चिंता बढ़ गई है. एक सवाल तेजी से उठ रहा है कि आखिर प्रदूषण में जाना या सांस लेना क्यों खतरनाक (Pollution Side Effects) है. यह सबसे ज्यादा शरीर के किस हिस्से को प्रभावित करता है. दरअसल, प्रदूषण का खतरनाक स्तर नाक, कान के जरिए हमारे ब्लड तक पहुंचता है और उसे बीमार कर देता है. यह फेफड़े, हार्ट और सांस के लिए जानलेवा है. दुनियाभर में हुई कई स्टडी में पता चला है कि दुनिया में बीमारियों से मरने वालों में प्रदूषण से मौत का आंकड़ा भी काफी ज्यादा है. आइए जानते हैं प्रदूषण शरीर के किन हिस्सों पर सबसे ज्यादा अटैक करता है…
प्रदूषण क्यों खतरनाक
दरअसल, एक सामान्य व्यक्ति के बाल की मोटाई 50-70 माइक्रॉन्स होती है. जबकि हवा में घुले पार्टिकुलेट मैटर (PM) 10 और उससे भी छोटे 2.5 माइक्रॉन्स के होते हैं. ये धूल, धुआं और धातुओं के मिश्रित कण हवा को जहरीला बनाने का काम करते हैं. जब ये हवा में घुलते हैं तो शरीर पर इनका हानिकाकर प्रभाव पड़ता है.
प्रदूषण में पाए जाने वाले पार्टिकल्स के नुकसान
पीएम 2.5
ये इतने छोटे होते हैं कि आसानी से शरीर में पहुंचकर खून में घुल सकते हैं. प्रदूषित हवा में पीएम की कितनी मौजदूगी है, इसका पता लगा पाना आज भी काफी चुनौती वाला है. हवा में इनकी मात्रा बढ़ने से सबसे पहले श्वसन तंत्र पर अटैक होता है. इससे आंखों में खुजली और जलन, नाक में सूखापन और खुजली, गले में खराश, खांसी, दमा या सांस लेने में परेशानी, अस्थमा, क्रोनिक ब्रोन्काइटिस, फेफड़े के ऊतकों को नुकसान. किडनी के डैमेज का खतरा, लिवर के टिश्यू को नुकसान, कार्डियोवस्कुलर डिजीज और यहां तक की कैंसर का खतरा हो सकता है.
नाइट्रोजन ऑक्साइड के साइड इफेक्ट्स
प्रदूषित हवा में कई जहरीली गैसें घुली होती हैं, जो सेहत के लिए खतरनाक होती हैं. इनमें से एक नाइट्रोजन डाइ ऑक्साइड है जो धुंध पैदा करता है. पराली से लेकर गाड़ियों के फ्यूल और फैक्ट्रियों के धुएं से निकलकर ये गैस हवा में घुल जाती है. इसकी वजह से फेफड़े के ऊतकों को नुकसान पहुंच सकता है. स्किन कैंसर की समस्या बन सकती है. यह रोम छिद्रों को ब्लॉक कर सूजन बना सकता है. इसके साथ ही नर्व्स को भी डैमेज कर सकता है.
कॉर्बन मोनोऑक्साइड
ये गैस वाहनों के फ्यूल से निकलकर हवा में घुल जाता है. ये काफी खतरनाक गैस मानी जाती है. इसी वजह से आंखों की रोशनी कम होती है. इसके कण नजर को धुंधला बनाने का काम करते हैं. ज्यादा मात्रा में शरीर तक पहुंचने की वजह से सुनने की क्षमता भी प्रभावित हो सकती है. ये कण सांस के जरिये खून में पहुंचकर कई खतरनाक बीमारियों को जन्म दे सकते हैं. इसकी वजह से सीने में तेज दर्द भी हो सकता है.
सल्फर डाई आक्साइड (SO2)
हवा को प्रदूषित करने वाले कारकों में एक सल्फर डाई आक्साइड भी है. ये गैसें पानी की तरह हवा में घुलकर उसे एसिडिक बना देती हैं. फ्यूल के जलने, फ्रिज, माइक्रोवेव, एसी के ज्यादा चलने और फैक्ट्रियों के धुएं से निकलकर ये गैस हवा में घुलती है और फेफड़ों को बीमार बना देती है. इसकी वजह से खांसी, सांस से घरघराहट जैसी समस्याएं हो सकती हैं. यह सांस को भी काफी नुकसान पहुंचाता है.
ओजोन (O3)
हवा को प्रदूषित बनाने में ओजोन का भी अहम रोल है. कार, बिजली संयंत्र, औद्योगिक बॉयलरों, रिफाइनरियां, रासायनिक संयंत्रों और अन्य स्रोतों से उत्सर्जित होकर सूर्य के प्रकाश से प्रतिक्रिया करता है और हवा को प्रदूषित बना देता है. इसकी वजह से सांस लेने में कठिनाई होती है. अस्थमा के मरीज, बच्चे और बुजुर्ग के साथ बाहर काम करने वालों के लिए यह खतरनाक होता है. इसकी वजह से गले में खराश, कुछ गटकने में परेशानी, फेफड़ों में इंपेक्शन जैसी कई बीमारियां हो सकती हैं.